Nepal violent protests:
काठमांडू, एजेंसियां। नेपाल में सोमवार (8 सितंबर 2025) को सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए Gen-Z प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया, जिसके चलते देशभर में हालात बिगड़ गए हैं। राजधानी काठमांडू से लेकर कई प्रमुख शहरों में हजारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और कई जगह पुलिस से भिड़ंत हो गई। इन झड़पों में अब तक 19 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हालात काबू से बाहर होने पर सरकार को काठमांडू में सेना तैनात करनी पड़ी और संसद भवन समेत कई इलाकों का नियंत्रण आर्मी ने अपने हाथ में ले लिया।
इसके साथ ही काठमांडू, ललितपुर, पोखरा, बुटवल और ईटहरी में कर्फ्यू लागू कर दिया गया तथा किसी भी तरह की सभा, जुलूस या रैली पर पूरी तरह रोक लगा दी गई। बढ़ते जनाक्रोश के बीच गृह मंत्री रमेश लेखक ने हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया, हालांकि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने स्पष्ट किया कि वह पद नहीं छोड़ेंगे।
प्रधानमंत्री ओली ने मृतकों पर जताया दुख
प्रधानमंत्री ओली ने मृतकों पर दुख जताते हुए कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को असामाजिक तत्वों ने हिंसक बना दिया और सरकार ने सिर्फ सोशल मीडिया को नियमों के तहत नियंत्रित करने की कोशिश की थी, न कि उसे स्थायी रूप से बंद करने की। उन्होंने हिंसा की जांच के लिए एक समिति गठित की है, जो 15 दिनों में रिपोर्ट देगी। दूसरी ओर, सूचना मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने घोषणा की कि सरकार मृतकों के परिवारों को मुआवजा देगी और घायलों का मुफ्त इलाज कराया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों का आरोप
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट जैसे गंभीर मुद्दों पर विफल रही है। सोशल मीडिया पर “Nepo Kid” ट्रेंड चलाकर युवाओं ने नेताओं के बच्चों पर ऐशोआराम करने का आरोप लगाया, जबकि आम जनता महंगाई और नौकरी की कमी से जूझ रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान और दक्षिण कोरिया ने हिंसा की निंदा की है, वहीं संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार इकाई ने निष्पक्ष जांच की मांग की है। हालात को देखते हुए ओली सरकार पर गंभीर राजनीतिक संकट मंडरा रहा है।
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