लारेंस विश्नोई से भी हैं इसके संबंध
वाराणसी। इस लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की राजनीति एक नाम की वजह से गरमाई रही।
यह नाम है जौनपुर जिले के बाहुबली नेता धनंजय सिंह का। बीते अप्रैल में धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली थी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के बागी विधायक अभय सिंह ने धनंजय पर जुबानी हमला बोलते हुए उन्हें उत्तर भारत का सबसे बड़ा डॉन तक कह डाला।
अभय सिंह के मुताबिक, “राजस्थान, पंजाब और यूपी में आज धनंजय से बड़ा कोई माफिया नहीं है। उनको किसी से नहीं बल्कि हर किसी को उन्हीं से खतरा है।
अभय ने यह भी कहा कि धनंजय के इशारे पर ही लॉरेंस बिश्नोई ने उन पर हमला करने की कोशिश की थी।
साल 2022 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने लॉरेंस बिश्नोई ग्रुप के शूटर दिव्यांश शुक्ला को पकड़ा था।
पुलिस के मुताबिक शुक्ला चुनाव प्रचार के दौरान अभय सिंह की हत्या करने की प्लानिंग कर रहा था।
कोर्ट के आदेश बाद दर्ज हुए मुकदमे
साल 2018 में धनंजय सिंह के बारे में कोर्ट ने एक सख्त टिप्पणी करते करते हुए कहा था कि ऐसे व्यक्ति को जेल से बाहर रहने का कोई अधिकार नहीं है और बेल को कैंसल कर उसे तुरंत जेल भेजा जाना चाहिए।
इसके बाद धनंजय पर कई सारे मुकदमे दर्ज किए गए थे। लेकिन पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता जन्में यूपी के बाहुबली धनंजय सिंह हैं कौन?
जिसकी जमानत से इतनी सियासी हलचल मच गई थी। पूरे चुनाव के दौरान इस नाम की इतनी चर्चा क्यों रही।
1990 से अपराध की दुनिया में रखा कदम
साल 1998 में यूपी पुलिस ने भदोही जिले में मिर्जापुर रोड पर एक पेट्रोल पंप में लूट योजना बना रहे 4 लोगों को ढेर कर दिया था।
खबर यह भी आई कि एनकाउंटर में माफिया धनंजय भी मारा गया। लेकिन, इस घटना के लगभग 4 महीने बाद खुलासा हुआ कि धनंजय जिंदा है।
उसने साल 1999 में सरेंडर कर दिया था। बाद में इस फेक एनकाउंटर के आरोप में यूपी पुलिस के 30 जवानों पर मुकदमा चला।
हालांकि इस चर्चित मामले से पहले धनंजय का नाम एक हत्याकांड में सामने आ चुका था।
साल 1990 में धनंजय का नाम स्कूल टीचर की हत्या में सामने आया। उस वक्त धनंजय 10वीं क्लास में था।
हालांकि इस मामले में उस पर आरोप साबित ना हो सका। इस वारदात के बाद धनंजय के तार आपराधिक मामलों से जुड़ते चले गए।
दो साल बाद ही 1992 में जौनपुर में 12वीं की परीक्षा के वक्त भी उस पर एक युवक की हत्या का आरोप लगा।
लखनऊ यूनिवर्सिटी से बढ़ा दायरा
12वीं के बाद धनंजय का दाखिला लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुआ और वहां पर भी उसने अपने सजातीय ‘ठाकुरों’ के साथ वर्चस्व बढ़ाना शुरू कर दिया।
यूनिवर्सिटी जीवन के दौरान भी धनंजय पर मार-पीट और अपहरण जैसे कई आरोप लगते रहे। लेकिन अब उसने लखनऊ के अलावा दूसरे जिलों में भी अपने पैर पसारने शुरू कर दिए।
रेल के ठेकों से चमका सितारा
साल 1990 और 2000 के बीच में माफियाओं की कमाई का सबसे बड़ा जरिया रेलवे के ठेके हुआ करते थे।
वे रेलवे स्क्रैप के ठेकों को मैनेज करवाते और बदले में अच्छी-खासी रकम वसूलते, जिसे आम भाषा में गुंडा टैक्स भी कहा जाता।
उसी दौर में लखनऊ के ही एक और दबंग अजीत सिंह का दबदबा हुआ करता था, जिसके रहते राजधानी के इलाके में रेलवे ठेकों में किसी और की एंट्री लगभग नामुमकिन थी।
लेकिन 2004 में एक एक्सीडेंट में अजीत की मौत के बाद धनंजय सिंह और उसके मित्र अभय सिंह का ठेकों पर कब्जे की राह आसान हो गई।
इसी बीच धनंजय का नाम एक और हाई-प्रोफाइल वारदात में उछला। लखनऊ में बन रहे आंबेडकर पार्क से जुड़े लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या की खबर सामने आयी।
हत्यारों ने श्रीवास्तव को उनके लखनऊ के इंदिरा नगर आवास से कुछ ही दूर पर गोली मारी थी। भले ही गोली चलाने वालों में धनंजय शामिल ना हों मगर हत्या में उनको नामजद बनाया गया और 50 हजार रुपये का इनाम भी घोषित हुआ।
अभय सिंह से पुरानी है दुश्मनी
इस वारदात के बाद धनंजय फरार हो गया।अब तक उसपर हत्या, डकैती और दूसरे अपराधों में 12 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे।
हालांकि अब तक धनंजय और उसके मित्र अभय सिंह के बीच भी दरार आनी शुरू हुई। इस दरार का नतीजा सामने आया अक्टूबर 2002 में। तब तक धनंजय विधायक बन चुका था।
एक दिन बनारस से गुजरते हुए उनके काफिले पर हमला हुआ। इसे बनारस का पहला ‘ओपन शूटआउट’ भी कहा गया। दोनों तरफ से खुलेआम फायरिंग हुई।
बनारस के टकसाल सिनेमा के सामने अभय सिंह और धनंजय सिंह गुट के बीच ताबड़तोड़ गोलियां चलीं।
इसमें धनंजय के गनर और उनके सचिव समेत चार लोग घायल भी हुए। धनंजय सिंह ने इस मामले में अभय सिंह पर एफआईआर भी दर्ज करवाई।
धनंजय जितनी तेजी से अपराध की सीढ़ियां चढ़ रहा था, उतनी ही तेजी से वो राजनीति में भी अपना दबदबा कायम करने में जुटा था।
2002 से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
साल 2002 में धनंजय ने जौनपुर से बतौर निर्दलीय अपना पहला विधायकी चुनाव लड़ा और जीता भी।
इसके बाद उन्होंने अगला चुनाव जनता दल यूनाइटेट की तरफ से लड़ा और दोबारा से जीत हासिल की।
फिर 2009 के चुनाव में वह बसपा में शामिल हुआ और पहली बार सांसद बना। हालांकि दो साल के भीतर ही मायावती ने उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए पार्टी से निकाल दिया।
इसके बाद धनंजय अपनी राजनीतिक चमक ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सका। 2014 में उसने दोबारा से लोकसभा में अपनी किस्मत आजमानी चाही पर इसमें निराशा हाथ लगी।
2017 का विधानसभा चुनाव भी वह हार गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी धनंजय को निराशा ही हाथ लगी।
तीन शादियां की
निजी जिंदगी की बात करें तो धनंजय ने तीन शादियां की हैं। उनके पहली पत्नी की मौत शादी के 9 महीनों बाद ही संदिग्ध हालात में हो गई थी।
उनकी पहली पत्नी मीनू सिंह बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली थीं और उनकी लाश लखनऊ के गोमती नगर स्थित आवास से बरामद हुई थी।
इसके बाद धनंजय ने दूसरी शादी डॉक्टर जागृति सिंह से की जिनपर उनकी हाउस हेल्प की हत्या का आरोप लगा।
हालांकि, इनसे भी धनंजय का तलाक हो गया। 2017 में धनंजय ने तीसरी शादी दक्षिण भारत के बड़े कारोबारी परिवार की लड़की श्रीकला रेड्डी से की।
वक्त की नजाकत ऐसी है कि जिस बसपा ने कभी धनंजय को पार्टी से निकाल दिया था उसी पार्टी ने बीते लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी को जौनपुर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बना दिया था, लेकिन बाद में टिकट वापस ले लिया।
इससे पहले खुद धनंजय इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था, लेकिन 5 मार्च 2024 को धनंजय 2020 के एक किडनैपिंग मामले में दोषी पाये गए और 6 मार्च को उन्हें पहली बार किसी आपराधिक मुकदमे में सजा सुनाकर जेल भेजा गया।
धनंजय को ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ के मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण के मामले में सजा सुनाई गई थी। इसी के साथ धनंजय का दूसरी बार सांसद बनने का सपना भी टूट गया।
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