Bihar voter verification:
नई दिल्ली, एजेंसियां। सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR यानी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर बुधवार को भी सुनवाई हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने SIR को वोटर फ्रेंडली बताया है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग ने 11 में से कोई एक डॉक्यूमेंट मांगा है। शीर्ष कोर्ट ने ये भी कहा- SIR में 11 दस्तावेज मांगे गए हैं, जबकि राज्य में पहले किए गए छोटे से वोटर रिवीजन में 7 डॉक्यूमेंट्स मांगे गए थे। याचिकाकर्ताओं के इस तर्क के बावजूद कि आधार को स्वीकार न करना लिस्ट से बाहर करने जैसा रवैया था। लेकिन, इसमें दस्तावेजों की बड़ी संख्या (11) का मकसद लोगों को लिस्ट में रखना है।
बिहार में 1-2% लोगों के पास स्थायी निवास प्रमाणपत्रः
याचिकाकर्ताओं की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने मांगे गए दस्तावेजों की संख्या से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि बिहार में 1-2% लोगों के पास स्थायी निवास प्रमाणपत्र होगा। अगर राज्य में जनसंख्या के आधार पर डॉक्यूमेंट्स की उपलब्धता की बात करें तो यह काफी कम है।
वहीं प्रशांत भूषण ने कहा कि लगभग 8 करोड़ मतदाता हैं। मैं गारंटी दे सकता हूं कि जिन लोगों के गणना फॉर्म प्राप्त हुए हैं, उनमें से 25% से अधिक लोगों ने एक भी दस्तावेज नहीं दिया है। BLO ने गणना फॉर्म भर दिए हैं और उन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। ये 11 दस्तावेज नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं।
बड़ी संख्या में लोगों के पास एक भी दस्तावेज नहीः
भूषण ने कहा कि बड़ी संख्या में लोगों के पास एक भी दस्तावेज नहीं है। लगभग 40% लोगों के पास केवल मेट्रिकुलेशन का प्रमाणपत्र है, लेकिन कुल मिलाकर 50 फीसदी से ज्यादा लोगों के पास एक भी दस्तावेज नहीं है।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में सुनवाई चल रही है।
राज्य में 36 लाख लोगों के पास पासपोर्टः
कोर्ट ने ये भी कहा, राज्य में 36 लाख लोगों के पास पासपोर्ट है। इसे अच्छी संख्या कहा जा सकता है। बिहार को इस तरह पेश न करें। अखिल भारतीय सेवाओं में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व इसी राज्य से है। ज्यादातर आईएएस, आईपीएस, आईएफएस यहीं से हैं। अगर युवा आबादी प्रेरित नहीं होगी तो यह संभव नहीं हो सकता।
कल EC की दलील- कुछ गलतियां स्वाभाविक थीः
बीते मंगलवार की सुनवाई में RJD सांसद मनोज झा की तरफ से पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल ने कहा था- बिहार की वोटर लिस्ट में 12 जीवित लोगों को मृतक बताया गया है।
चुनाव आयोग की तरफ से सीनियर वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था-इस प्रकार की एक्सरसाइज में कुछ गलतियां स्वाभाविक थीं। यह दावा करना कि मृतकों को जीवित और जीवित को मृत घोषित किया गया, यह सही किया जा सकता है, क्योंकि यह एक मसौदा था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा-तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार रहें, क्योंकि प्रक्रिया शुरू होने से पहले वोटरों की संख्या, प्रोसेस से पहले और अब मृतकों की संख्या समेत अन्य कई सवाल उठेंगे।
योगेंद्र यादव ने 2 जिंदा लोगों को पेश कियाः
स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान दो लोगों को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। एक पुरुष और एक वृद्ध महिला के साथ वो कोर्ट में पहुंचे थे और बताया- इन्हें चुनाव आयोग की ओर से जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मृत घोषित कर दिया गया है। उन्होंने पीठ से कहा कि इन्हें देखें जिनको मृत घोषित कर दिया गया है, वे जीवित हैं। उनके पास आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज भी हैं। लेकिन, उन्हें ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया।
आधार नागरिकता का पक्का सबूत नहीं-SC…
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग के इस विचार का समर्थन किया कि आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जाना चाहिए और कहा कि इसका स्वतंत्र रूप से सत्यापन किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। न्यायमूर्ति कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से कहा, ‘चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका सत्यापन किया जाना चाहिए।’
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