NH in Bihar:
पटना, एजेंसियां। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में नेशनल हाईवे (NH) के निर्माण और रखरखाव की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को सौंप दी गई है। मंत्रालय के ताजा आदेश के अनुसार अब राज्य सरकारें चार लेन या उससे अधिक चौड़े नेशनल हाईवे का न तो निर्माण कर सकेंगी और न ही उनका रखरखाव। इसके साथ ही, दो राज्यों को जोड़ने वाली कम चौड़ाई वाली सड़कों का प्रबंधन भी केंद्र सरकार की एजेंसियां संभालेंगी।
बिहार पर पड़ेगा व्यापक प्रभावः
इस फैसले का बिहार पर आर्थिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर गहरा असर होगा। बिहार में कुल 6,147 किलोमीटर लंबे नेशनल हाईवे हैं, जिनमें से 3,189 किलोमीटर का रखरखाव पहले से NHAI के पास है, जबकि 2,589 किलोमीटर की जिम्मेदारी राज्य सरकार के पास थी। नए नियम के तहत, इन सड़कों का निरीक्षण अब केंद्र और राज्य के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। निरीक्षण के 15 दिनों के भीतर सड़कों को NHAI को हस्तांतरित करना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर केंद्र की ओर से मिलने वाली अनुदान राशि पर रोक लग सकती है।
राज्य की परियोजनाओं पर असरः
नई व्यवस्था के तहत बिहार सरकार को उन 925 किलोमीटर सड़कों को भी NHAI को सौंपना होगा, जिनका निर्माण या मरम्मत वह वर्तमान में कर रही है। इससे राज्य को सड़क निर्माण लागत पर मिलने वाली 9% तक की आर्थिक हिस्सेदारी से भी हाथ धोना पड़ सकता है। इसके अलावा, बिहार में प्रस्तावित सभी छह लेन के एक्सप्रेस-वे का निर्माण भी अब NHAI ही करेगी। यह बदलाव राज्य की योजना और बजट प्रणाली के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि अब बिहार को सड़क निर्माण के लिए केंद्र पर पूरी तरह निर्भर रहना होगा।
केंद्र की बैठक में लिया गया निर्णयः
यह फैसला केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव वी. उमाशंकर की अध्यक्षता में हाल ही में हुई उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया। बैठक में राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे NHAI को हस्तांतरित की जाने वाली सड़कों की सूची तैयार करें, ताकि यह प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से पूरी हो सके। केंद्र का यह कदम नेशनल हाईवे नेटवर्क की योजना, गुणवत्ता और प्रबंधन को एकरूप करने की दिशा में उठाया गया है।
राज्य-केंद्र समन्वय की जरूरतः
इस नीति से बिहार जैसे राज्यों की विकासात्मक स्वतंत्रता और आर्थिक हिस्सेदारी पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में केंद्र और राज्य के बीच बेहतर समन्वय और संसाधन-साझेदारी की जरूरत होगी, ताकि सड़क विकास की गति बनी रहे।
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