Silk from China:
नई दिल्ली, एजेंसियां। भारत में मुगल शासन की स्थापना 1526 ईस्वी में बाबर ने की थी, लेकिन साम्राज्य को वास्तविक मजबूती और समृद्धि अकबर के शासनकाल में मिली। खासकर 1556 से 1707 ईस्वी के बीच का समय मुगलों का स्वर्णकाल माना जाता है, जब व्यापार और विलासिता चरम पर थे। मुगलों की रईसी का आलम यह था कि वे अपनी ऐशो-आराम की चीजें भारत से नहीं, बल्कि विदेशों से मंगवाते थे। चीन से रेशमी कपड़े और चाय, यूरोप से कीमती वस्त्र, ईरान और मिडिल ईस्ट से शराब और अफीम, तो ईरान-अफगानिस्तान से मेवे और फल मंगाए जाते थे।
जहांगीर की आत्मकथा लिखी
जहांगीर जैसे बादशाह अपनी आत्मकथा में शराब और अफीम के प्रति अपनी लत का ज़िक्र तक करते हैं। हथियार और घोड़े जैसे सैन्य संसाधन भी विदेशों से आते थे — बहरीन, मस्कट और अदन जैसे क्षेत्रों से घोड़े, और यूरोप से आधुनिक हथियार मंगवाए जाते थे। इसके अलावा चीनी मिट्टी के बर्तन, लौंग, कपूर, चंदन की लकड़ी और मोम जैसी विलासिता की वस्तुएं भी चीन और दक्षिण एशिया से आती थीं। मुगलों ने व्यापारिक संबंधों को चीन, अरब, मिस्र, यूरोप, मिडिल ईस्ट और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैलाया।
आयात से निर्यात का सफर
हालांकि मुगलों ने सिर्फ आयात ही नहीं किया, बल्कि निर्यात में भी भारत ने बड़ी भूमिका निभाई। इत्र, मसाले, सूती कपड़ा, हाथी दांत, कीमती रत्न, नील, सोना-चांदी से बने ज़री वस्त्र और ब्रोकेड जैसे सामान विदेशों को निर्यात किए जाते थे। अकबर की व्यापार नीति और आर्थिक दूरदर्शिता ने मुगल साम्राज्य को वैश्विक व्यापार का एक बड़ा केंद्र बना दिया, जिससे न केवल उनके ऐश्वर्य की झलक मिलती है बल्कि यह भी पता चलता है कि भारत उस दौर में सांस्कृतिक और व्यापारिक रूप से कितनी ऊंचाई पर था।
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