Dishom Guru:
रांची। अलग झारखंड राज्य के लिए वर्षों तक संघर्षपूर्ण आंदोलन करने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन की राजनीतिक भूमिका अब बदल गई। करीब 38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के अध्यक्ष रहे शिबू सोरेन अब पार्टी के संस्थापक संरक्षक होंगे। जल, जंगल और जमीन की लड़ाई के लिए अपने जीवन का लगभग छह-सात दशक गुजार देने वाले शिबू सोरेन ने अब पार्टी की कमान अपने पुत्र हेमंत सोरेन को सौंप दी।
11 जनवरी 1944 को तत्कालीन हजारीबाग जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव (अब रामगढ़) में जन्मे शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन की 27 नवंबर 1957 में हत्या कर दी गई। पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को राजनीति की राह दिखाई।
Dishom Guru: पिता की हत्या ने शिबू सोरेन की बदल दी जिन्दगीः
शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन अपने पुत्र को पढ़ा-लिखाकर अच्छा इंसान बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शिबू सोरेन को गोला स्थित आदिवासी छात्रावास में रखकर पढ़ाने का फैसला लिया। शिबू सोरेन के साथ उनके बड़े भाई राजाराम सोरेन भी आदिवासी छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहे थे। सोबरन सोरेन के पिता यानी शिबू सोरेन के दादा तत्कालीन रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह के टैक्स तहसीलदार थे। इसलिए घर की आर्थिक स्थिति ठीक थी। इस बीच मांझी ने अपने गांव में 1.25 एकड़ जमीन एक घटवार परिवार को दे दी। बाद में यही जमीन सारे विवाद का कारण बनी।
इस जमीन पर मंदिर बनाने का आग्रह शिबू सोरेन के पिता की ओर से किया गया, तो गांव में ही रहने वाले कुछ महाजनों और साव परिवार से उनका रिश्ता खराब हो गया। जबकि सोबरन सोरेन के दो पुत्रों को स्कूल में पढ़ता देखकर गांव के ही कुछ लोग चिढ़ने लगे। समय गुजरता गया। इस बीच सोबरन सोरेन 27 नवंबर 1957 को अपने एक अन्य सहयोगी के साथ दोनों पुत्रों के लिए छात्रावास में चावल और अन्य सामान पहुंचाने के लिए घर से निकले। उनके साथ स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टरजी मोहित राम महतो को भी जाना था, लेकिन मास्टरजी को पहले से ही कुछ अनहोनी की भनक थी।
27 नवंबर 1957 के दिन ठंड का बहाना बताते हुए उन्होंने पीछे से आने की बात कही। जबकि घर से निकले सोबरन सोरेन पथरीले और जंगल-झाड़ वाले रास्ते से स्कूल की ओर चल पड़े, रास्ते में ही लुकरैयाटांड़ गांव के निकट उनकी हत्या कर दी गई। पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया। अब उनका मन पढ़ाई से टूट चुका था और उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया।
Dishom Guru: हांडा के पवित्र चावल ने शिबू सोरेन की बदल दी जिन्दगीः
पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने घर छोड़ने का फैसला लिया। अपने बड़े भाई राजा राम सोरेन से पांच रुपए देने का आग्रह किया। घर में उस वक्त पैसे नहीं थे। बड़े भाई राजाराम सोरेन चिंता में पड़ गए। अचानक उनकी नजर घर में रखे हांडा पर पड़ी। उनकी मां एक कुशल गृहिणी थी। वह हर दिन खाना बनाने के पहले एक मुट्ठी चावल हांडा में डाल देती थी। राजाराम सोरेन ने अपनी मां सोना सोरेन के वहां से हटते ही हांडा में रखा दस पैला चावल निकाल लिया और उसे बाजार में बेच कर पांच रुपया हासिल किया। इसी पांच रुपए को लेकर शिबू सोरेन घर से निकल कर हजारीबाग के लिए चल पड़े और उनकी पूरी जिन्दगी बदल गई।
Dishom Guru: घर से निकलने के साथ ही संघर्ष का दौर शुरूः
दिशोम गुरु के बड़े भाई राजाराम महतो ने शिबू सोरेन के घर छोड़ने के बाद खुद एक बार बताया था कि उस वक्त गोला से हजारीबाग का बस किराया डेढ़ रुपया था। उस पवित्र चावल से मिले इसी पांच रुपए ने आगे चलकर शिबू सोरेन को संथाल समाज का ‘दिशोम गुरु’ बना दिया। शिबू सोरेन घर छोड़कर हजारीबाग में फारवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के घर पहुंचे। घर से निकलने के साथ ही शिबू सोरेन का संघर्ष शुरू हो चुका था।
कुछ दिनों तक उन्होंने छोटी-मोटी ठेकेदारी का काम भी किया। इस बीच पतरातू-बड़कागांव रेल लाइन निर्माण का कार्य के दौरान उन्हें कुली का काम भी मिला, लेकिन जब उन्होंने मजदूरों के लिए विशेष तौर पर बने बड़े-बड़े जूते पहने, तो उन्होंने साफ कह दिया कि वो यह काम नहीं कर सकते हैं।
Dishom Guru: राजनीति और समाज सेवा का मन बनायाः
हजारीबाग और आसपास के क्षेत्रों में ठेकेदारी, मजदूरी और कई छोटे-मोटे काम करने के बाद शिबू सोरेन ने राजनीति में उतरने और समाज सेवा का मन बनाया। इस बीच शिबू सोरेन ने बड़दंगा पंचायत में मुखिया का चुनाव भी लड़ा, लेकिन वो हार गए। बाद में जरीडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन भाकपा के मंजूर हसन खान से उन्हें मात खानी पड़ी। चुनाव हार जाने के बावजूद शिबू सोरेन का संघर्ष जारी रहा। शिबू सोरेन ने सोनोत संथाल समाज का गठन किया और क्षेत्र में महाजनी प्रथा, नशा उन्मूलन और समाज सुधार और शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष अभियान चलाया।
Dishom Guru: विनोद-शिबू के संगठन के विलय से जेएमएम का गठनः
शिबू सोरेन की ओर से गठित सोनोत संथाल समाज ने बाद में आदिवासी सुधार समिति का रूप धारण कर लिया और फिर ए.के. राय और विनोद बिहारी महतो के संपर्क में आने बाद इसका स्वरूप और वृहद हो गया। विनोद बिहारी महतो ने 1967 में ‘शिवाजी समाज’ नामक संगठन बनाया था। उनका संगठन भी महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चला रहा था। शिबू सोरेन के सोनोत संथाल समाज और विनोद बिहारी महतो के शिवाजी समाज संगठन के आंदोलन को एक उग्रपंथी संगठन कहा जाने लगा था।
जिसके बाद शिवाजी समाज और सोनोत संथाल समाज का विलय कर वर्ष 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का निर्माण हुआ। कामरेड एके राय, जो मार्क्सवादी थे, उन्होंने भी झारखंड मुक्ति मोर्चा का साथ दिया था। विनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन की छत्रछाया में जेएमएम आगे बढ़ा।
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