नई दिल्ली, एजेंसियां। ज्योतिष शास्त्र में शनि को सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में से एक माना जाता है, जो व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं।
शनि की साढ़े साती का नाम सुनते ही कई लोगों के मन में डर बैठ जाता है, क्योंकि इसे आमतौर पर कठिन समय का प्रतीक माना जाता है। लेकिन क्या वाकई इससे घबराने की जरूरत है?
क्या होती है शनि की साढ़े साती?
शनि ग्रह बहुत ही धीमी गति से चलते हैं और किसी भी राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं। जब शनि किसी व्यक्ति की जन्म राशि से पहले, वर्तमान और अगली राशि में गोचर करते हैं, तो इसे साढ़े साती कहा जाता है। कुल मिलाकर यह समय साढ़े सात साल तक रहता है।
साढ़े साती के तीन चरण:
पहला चरण: जब शनि व्यक्ति की जन्म राशि से पहले वाली राशि में प्रवेश करता है, तो साढ़े साती की शुरुआत होती है।
दूसरा चरण: यह तब शुरू होता है जब शनि जातक की जन्म राशि में आता है। इसे सबसे कठिन चरण माना जाता है।
तीसरा चरण: यह तब शुरू होता है जब शनि जातक की अगली राशि में प्रवेश करता है और इस दौरान धीरे-धीरे प्रभाव समाप्त होने लगता है।
क्या साढ़े साती से डरने की जरूरत है?
नहीं! यह हमेशा नकारात्मक नहीं होती। यह एक परीक्षण और सुधार का समय होता है, जहां शनि व्यक्ति को अनुशासन, मेहनत और आत्म-सुधार का अवसर देते हैं। यदि किसी की कुंडली में शनि शुभ स्थिति में है, तो यह समय तरक्की, सफलता और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाला भी हो सकता है।
- साढ़े साती के प्रभाव से बचने के उपाय:
- हर शनिवार शनि देव की पूजा करें और काले तिल व तेल का दान करें।
- जरूरतमंदों को भोजन कराएं और गरीबों की मदद करें।
- हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनि मंत्रों का जाप करें।
- ईमानदारी और अच्छे कर्मों पर ध्यान दें, क्योंकि शनि सिर्फ कर्मों का फल देते हैं।
शनि की साढ़े साती से डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे स्वयं को सुधारने और मजबूत बनाने का अवसर मानना चाहिए। यह समय अनुशासन, धैर्य और कड़ी मेहनत से जीवन में नई ऊंचाइयों तक पहुंचने का हो सकता है।
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