नई दिल्ली, एजेंसियां। आज से ठीक 5 साल पहले, 22 मार्च 2020 को भारत में पहली बार जनता कर्फ्यू लगाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर लोगों ने स्वेच्छा से अपने घरों में रहने का फैसला किया। यह कदम कोरोना वायरस (COVID-19) के बढ़ते संक्रमण को रोकने और जनता को जागरूक करने के लिए उठाया गया था।
कैसा था जनता कर्फ्यू का नजारा?
सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक देशभर में सन्नाटा पसरा रहा।किसी पर कोई पाबंदी नहीं थी, लेकिन फिर भी लोग अपने घरों में रहे। सड़कों, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर पूरी तरह खामोशी थी। यह जनता के स्व-नियंत्रण से लागू किया गया पहला कर्फ्यू था।
शाम 5 बजे बजे तालियां और थालियां
प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वॉरियर्स (डॉक्टर, नर्स, पुलिस, सफाईकर्मी) के सम्मान में शाम 5 बजे घरों की बालकनी से ताली, थाली और घंटी बजाने की अपील की थी। पूरे देश में लोग बालकनी, छत और दरवाजों पर आकर ताली-थाली बजाने लगे। यह नजारा एक उत्सव जैसा बन गया और पूरे देश ने एकजुटता का प्रदर्शन किया।
जनता कर्फ्यू के बाद 68 दिन का लॉकडाउन
24 मार्च 2020 को पीएम मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की। यह लॉकडाउन 14 अप्रैल को खत्म होना था, लेकिन इसे चार चरणों में 31 मई 2020 तक बढ़ाया गया। लॉकडाउन को फेज-2 (19 दिन), फेज-3 (14 दिन) और फेज-4 (14 दिन) तक बढ़ाया गया। कुल मिलाकर, भारत ने 68 दिनों तक लॉकडाउन का अनुभव किया।
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी संकट: 1947 जैसी तस्वीरें
अचानक लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी मजदूरों को अपने घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। कोई बस या ट्रेन उपलब्ध नहीं थी, जिससे लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांवों की ओर चल पड़े। भूख, गर्मी और थकान के कारण कई लोगों की मौत हो गई। सड़कों पर पैदल चलते प्रवासी मजदूरों की तस्वीरों ने 1947 के बंटवारे की याद दिला दी।
जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन का असर
जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन का उद्देश्य कोरोना वायरस के प्रसार को रोकना था। हालांकि, इससे अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा और लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं। बाद में, टीकाकरण अभियान और सुरक्षा उपायों के जरिए भारत ने धीरे-धीरे स्थिति को संभाला।
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