दिनांक – 21 फरवरी 2025
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत् – 2081
अयन – उत्तरायण
ऋतु – बसन्त
मास – फाल्गुन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – अष्टमी दोपहर 11:57 तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र – अनुराधा दोपहर 03:54 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा
योग – व्याघात दोपहर 11:59 तक, तत्पश्चात हर्षण
राहु काल – सुबह 11:27 से दोपहर 12:53 तक
सूर्योदय – 07:11
सूर्यास्त – 06:35
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:28 से 06:18 तक
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:30 से दोपहर 01:16 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:28 फरवरी 22 से रात्रि 01:18 फरवरी 22 तक
व्रत पर्व विवरण – जानकी जयंती, सर्वार्थसिद्धि योग (प्रातः 07:08 से दोपहर 03:54 तक)
विशेष – नवमी को लौकी खाना गौमाँस के समान त्याज्य है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अंतःकरण के दोष व उनकी निवृत्ति
- चंचलता : सत्य अथवा स्थिर तत्त्व से योग न होने के कारण मन में चंचलतारूपी दोष है, इसीसे अंदर दुर्बलता रहा करती है ।
- जगत के देहादिक असत् पदार्थों एवं विषय-सुखों से वैराग्य दृढ होने पर जब अभ्यास के द्वारा एक सत्य आधार में मन स्थिर होता है, तभी इस दोष की निवृत्ति होती है ।
- मलिनता : चित्त में असत् संबंध के कारण असत् चिंतन होते रहने से मलिनतारूपी दोष है, इसीसे खिन्नता रहा करती है ।
- मन के स्थिर होने पर एक ‘सत् पदार्थ के चिंतन में जब चित्त तल्लीन होता है तभी यह दोष दूर होता है ।
- अज्ञान : बुद्धि में आत्मज्ञानी संतपुरुष का संग (सत्संग) न मिलने के कारण अज्ञानरूपी दोष है, इसीसे मनुष्य में मूढता रहा करती है ।
- मन तथा चित्त के स्थिर और शुद्ध होने पर ही मानव-बुद्धि स्वस्थ एवं शांत होकर संत, सद्गुरुदेव से, सुसंग से सद्ज्ञान-प्रकाशपूर्ण होती है । इसीसे अज्ञानरूपी दोष का नाश होता है ।
- ममता : अहं में देहादिक पदार्थों के प्रति ममतारूपी दोष है । इसीके कारण आसक्ति एवं जड़ता रहा करती है ।
- सद्ज्ञान-प्रकाश में ही अहं का मिथ्या पदार्थों के प्रति अहमन्यता (अहंता-इदंता) रूपी दोष सत्स्वरूपाभिमान में परिणत हो जाता है, इसीसे जड़तारूपी दोष की निवृत्ति होती है ।
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