नई दिल्ली,एजेंसियां। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता महालक्ष्मी पवानी ने छोटे शहरों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाएं दर्ज नहीं किया जाने का मामला कोर्ट में उठाया।
उन्होंने आगे कहा कि, हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक खास याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई। दरअसल, याचिका में समाज में महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने के लिए अखिल भारतीय दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
‘यौन उत्पीड़न की घटनाओं को नहीं किया जा रहा दर्ज’
आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर के दुष्कर्म और हत्या की घटना के बाद यौन हिंसा की करीब 95 घटनाएं हुई हैं, लेकिन इन्हें उजागर नहीं किया गया।
नपुंसक बनाने जैसी सजाएं मिलनी चाहिए
उन्होंने कहा कि स्कैंडिनेवियाई देशों की तरह अपराधियों को रासायनिक नपुंसक बनाने जैसी सजाएं मिलनी चाहिए। पीठ ने कहा कि वह याचिका में उल्लेख किए गए कई अनुरोधों को स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि वे बर्बर और भयावह हैं, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो बहुत नए हैं और उनकी जांच की आवश्यकता है।
अदालत ने क्या कुछ कहा?
न्यायाधीश सूर्य कांत ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन में उचित व्यवहार बनाए रखने का सवाल विचार करने लायक मुद्दों में से एक है और बसों, मेट्रो और ट्रेनों में किसी को कैसे व्यवहार करना चाहिए, इस पर जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि सार्वजनिक इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों में क्या करें और क्या न करें इसका प्रचार करने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों तथा उनसे संबंधित विभागों को नोटिस जारी किया। साथ ही मामले की अगली सुनवाई जनवरी में तय की।
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