रांची। साल 2024 की शुरुआत हो चुकी है। यह चुनावी वर्ष है, इसलिए साल की शुरुआत ही सियासी हलचल के साथ हुई, जब नववर्ष की पूर्व संध्या पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सरफराज अहमद ने गांडेय सीट से इस्तीफा दे दिया। खबर चौंकानेवाली थी।
सियासी हलचल मची तो लोग इसके राजनीतिक मतलब भी निकालने लगे। पर चुनावी वर्ष की शुरुआत ने ही राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। अब पहले लोकसभा चुनाव और साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर जोड़-घटाव भी शुरू हो गया है।
चुनावी गणित में झारखंड के आदिवासी हमेशा अहम होते हैं। झामुमो नेता एवं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस नब्ज को भली भांति समझते हैं। हालांकि बीजेपी भी आदिवासियों को साधने की कोशिश में पिछले डेढ़ साल से जुटी है। पर यह इतना आसान नहीं है।
क्योंकि बीजेपी और आदिवासियों के बीच हैं हेमंत सोरेन। आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं कि हेमंत सोरेन से बीजेपी को कैसे चुनौतियां मिल रही हैं। दरअसल देखा जाये तो हेमंत सोरेन को एक तरह से झारखंड में घट रही घटनाओं ने राष्ट्रीय फलक पर ला दिया है।
इस समझने के लिए हमें झारखंड की हालिया गतविधियों पर नजर डालनी होगी। झारखंड में पिछले डेढ़ साल से ED ही चर्चा के केंद्र में है। ईडी और हेमंत सोरेन की खींचतान की वजह से ही सोरेन को राष्ट्रीय फलक पर चमक गये हैं। जमीन घोटाला मामले में ED हेमंत सोरेन को अब तक 7 समन भेज चुका है।
हालांकि इस दौरान हेमंत सोरेन ने सरकार आपके द्वार का राज्यव्यापी कैंपेन चलाकर खुद जनता के बीच खुद को निर्दोष बताने की कोशिश की और विरोधियों को करारा जबाव दिया। वह अपने खिलाफ ED के एक्शन को लोगों की भावनाओं से जोड़ने में कामयाब होते दिखे।
वह लोगों को ये बताने में सफल रहे कि उनके खिलाफ ED की ये कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है। उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए उनके खिलाफ साजिश की जा रही है। हेमंत सोरेन के इस विरोध के तरीके को अब देशभर के विपक्षी नेता आजमाने लगे हैं।
ऐसे में बीजेपी के मिशन आदिवासी को हेमंत सोरेन से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव में बीजपेी ने आदिवासी सीटों पर दमखम दिखाया है। पर झारखंड आदिवासियों के बीच बीजेपी संघर्ष करती दिख रही है।
क्योंकि यहां आदिवासी और बीजेपी के बीच हेमंत सोरेन बड़ी चुनौती बन गये हैंष हेमंत सोरेन ने जल, जंगल और जमीन के साथ स्थानीय नीति और 1932 के खतियान जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाकर आदिवासियों की नब्ज पकड़ रखी है।
अपनी इसी कला कौशल के बल पर आज हेमंत सोरेन विपक्ष का एक बड़ा आदिवासी चेहरा बन गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक आज हेमंत सोरेन अपने पिता के साये से बाहर आ गये हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से लगातार उन्होंने खुद को एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ साबित किया है।
सरफराज अहमद के इस्तीफे को को विशेषज्ञ उनका मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। हेमंत सोरेन ने आज झारखंड में उन्होंने अपनी एक पहचान स्थापित कर ली है। हाल ही में संपन्न 5 राज्यों के चुनाव में I.N.D.I.A. अलायंस की तरफ से राजस्थान और मध्य प्रदेश तो दूर आदिवासी बहुल पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी हेमंत सोरेन की एक रैली कराना मुनासिब नहीं समझा गया।
इसका खामियाजा भी अलायंस को उठाना पड़ा। यह साबित करने को काफी है कि हेमंत सोरेन आज विपक्ष का बड़ा आदिवासी चेहरा हैं। भले ही अन्य राज्यों में आदिवासियों के बीच नरेंद्र मोदी की साख बढ़ी हो, पर झारखंड की बात अलग है।
यहां आदिवासियों का झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गहरा जुड़ाव रहा है। इसका कारण शिबू सोरेन हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हैं। खास कर विधानसभा की उन 28 सीटें पर जो आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं।
यहां हेमंत सोरेन की पहचान आदिवासी नेता के रूप में स्थापित है। इन सीटों पर बीजेपी के लिए हेमंत सोरेन एक बड़ी चुनौती हैं। जबकि बीजेपी के पास भी बाबूलाल मरांडी के रूप में बड़ा चेहरा है, जो पिछले एक साल से इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
बावजूद इसके हेमंत सोरेन पार पाना आसान नहीं दिख रहा। आदिवासियों के बीच में हेमंत सोरेन ने एक बड़ी पैठ बनाई है। झारखंड के आदिवासी उन्हें आस्था और विश्वास के साथ देख रहे हैं। बस यहीं पर बीजेपी हेमंत से पिछड़ जाती है। बीजेपी के लिए अभी यह स्थापित करना आसान नहीं है कि वह आदिवासियों की हितचिंतक है, जबकि हेमंत सोरेन उनके विश्वास का प्रतीक बनकर उभरे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक ED प्रकरण देर से लोगों की सोच बदलने लगी है। शुरुआत में जब ये बात सामने आई थी तो लोगों ने इसे भ्रष्टाचार से जोड़कर देखा। 7 समन तक आते-आते स्थिति बदल लगी और राज्य सरकार तथा हेमंत सोरेन इसे राजनीति से प्रेरित कार्रवाई समझाने में सफल होते दिख रहे हैं। अब हेमंत सोरेन के पक्ष में माहौल बनता जा रहा है।
हेमंत सोरेन राज्य के लोगों को ये बताने में कामयाब रहे है कि ED के माध्यम से उनको राजनीतिक रूप से परेशान करने की कोशिश हो रही है। वह शुरू से ही हर जगह कहते आये हैं कि उनकी सरकार गिराने की साजिश रची जा रही है।
हां यह बात अलग है कि यिद ED की कार्रवाई समय रहते हुई होती, तो शायद बीजेपी इसका लाभ उठा सकती थी। पर अब बीजेपी के लिए चुनौती और बढ़ गई है। यदि विधानसभा चुनाव की बात की जाये, तो हेमंत सोरेन अपना तीर निशाने पर जमाने में सफल होते दिख रहे हैं।
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