दिनांक – 03 अक्टूबर 2024
दिन – गुरुवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत -1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – अश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – प्रतिपदा 04 अक्टूबर रात्रि 02:58 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र – हस्त शाम 03:32 तक तत्पश्चात चित्रा
योग – इन्द्र 04 अक्टूबर प्रातः 04:24 तक तत्पश्चात वैधृति
राहुकाल – दोपहर 01:57 से शाम 03:26 तक
सूर्योदय -05:41
सूर्यास्त- 06:02
दिशाशूल – दक्षिण दिशा में
व्रत पर्व विवरण – आश्विन-शारदीय नवरात्र प्रारंभ,घट-स्थापन, मातामह श्राद्ध
विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
नवरात्रि पूजन विधि
03 अक्टूबर 2024 गुरुवार से नवरात्रि प्रारंभ।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
यह क्रम शारदीय शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
कलश / घट स्थापना विधि
घट स्थापना शुभ मुहूर्त (सुरत) :
03 अक्टूबर 2024 गुरुवार को सुबह 06:30 से सुबह 07:33 तक
घट स्थापना अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12:04 से दोपहर 12:51 तक
देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।
कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है।
कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
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