रांची। अब तक हमने आपको झारखंड की कुर्मी जाति और मुंडा जनजाति के बारे में बताया।
आज आपको हम झारखंड के तेली समाज के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी राज्य में सामाजिक और आर्थिक संरचना काफी मजबूत है। यह जाति राज्य की राजनीति में काफी दखल रखता है।
झारखंड में तेली जाति का इतिहास अंग्रेजों के आगमन से पहले का है। यह समाज आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और प्रभावशाली रहा है। इस समाज के लोग बड़े जमींदार और साहूकार कारोबारी रहे हैं।
जहां भी यह प्रभावशाली रहे इन्होंने मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया और रचनात्मक कार्यों में सक्रिय योगदान दिया है।
झाररखंड में तेली समाज को वैश्य का ही अंग माना जाता रहा है। इनकी सामाजिक व्यवस्था भी ऐसी है कि ये वैश्य का ही अंग हैं।
यह समाज काफी धनाढ्य माना जाता है। इसका उदाहरण है कि राज्य के दो प्रमुख धनाढ्य खानदान साहू यानी धीरज साहू और जायसवाल यानी मनीष जायसवाल इसी वैश्य जाति से आते हैं।
झारखंड में तेली समाज से जुड़ी कुछ खास बाते
झारखंड में तेली समाज की आबादी करीब 12 प्रतिशत है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना पर आधारित है।
हालांकि मौजूदा समय में तेली समाज का दावा है कि राज्य में उनकी आबादी 18 से 22 प्रतिशत के बीच है।
रांची लोकसभा क्षेत्र के 42 गांवों में तेली समाज का प्रभुत्व है, जिसका असर भी देखने को मिलता रहा है। तेली समाज के लोगों का दावा है कि उन्हें राजनीतिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।
इसीलिए, तेली समाज के लोग अपने को अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की मांग कर रहे हैं। समय-समय पर वे इसके लिए आवाज उठाते रहे हैं।
साथ ही तेली समाज के लोगों ने मुख्यमंत्री से मांग की थी कि तेली समाज के विकास के लिए विशेष पैकेज दिया जाए।
तेली समाज का इतिहास
तेली जाति को लेकर कहा जाता है कि इस जाति के लोगों ने अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए अलग-अलग उपनामों का इस्तेमाल किया।
1911 में तेली समुदाय ने राठौर उपनाम अपनाया और खुद को राठौर तेली कहने लगा। वहीं, झारखंड में इन्होंने 18वां सदी में ही साहू उपनाम अपना लिया था।
देश के कई भागों में 1931 में इन्होंने खुद को राठौर-वैश्य कहा। वहीं झारखंड में इस दौरान तेली समाज के कई लोगों ने जायसवाल उपनाम को अपना लिया।
चूकि ये दोनों ही उपनाम वैश्य लोगों के भी होते हैं, इसलिए धीरे-धीरे तेली भी वैश्य का ही अंग मान लिये गये। दोनों ही वर्ग कारोबार और व्यवसाय पर आधारित हैं, इसलिए कभी दोनों में फर्क नहीं किया गया।
पुराने जमाने में तेली जाति के लोग, तेल के कोल्हू में बोझा ढोने वाले जानवरों के साथ काम करते थे।
अक्सर इन जानवरों को अंधा कर दिया जाता था। इसलिए तब इन्हें धार्मिक रूप से अशुद्ध माना जाने लगा।
तेली जाति के लोग, शहरों के लिए महत्वपूर्ण थे और अपने कारोबार के कारण ये समृद्ध होते चले गए।
इसके साथ ही झारखंड के कई हिस्सों में इन्होंने गुप्ता, वर्मा और महतो जैसे उपनाम भी अपना लिये।
गुप्ता और वर्मा जहां वैश्यों के उपनाम थे, वहीं महतो झारखंड में कुर्मियों का उपनाम है। आज भी धनबाद और बोकारो में तेली समाज के लोगों का उपनाम महतो पाया जाता है।
इसके अलावा भी तेली जाति के लोगों के कुछ उपनाम हैं जिनमें देशमाने, राठौर, साहू, तैल्याकार, सहुवान, साव, साह, साहूकार आदि।
इनमें साव, साहू और साह झारखंड में काफी प्रचलित हैं। तेली समाज के लोगों का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके समाज के ही हैं।
झारखंड में तेली समाज के लोगों के प्रमुख सरनेम साहू, साव, गुप्ता, तैलिक, शाह, साहा, गुप्ता और प्रसाद हैं।
तेली समाज के लोग अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए अलग-अलग उपनामों का इस्तेमाल करते रहे हैं।
झारखंड में बढ़ गया तेली समाज का आरक्षण
झारखंड सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पिछड़ा वर्ग की अनुसूची दो से तीन जातियों तेली, कुल्लू और गोराई को अलग कर दिया है।
अब इन जातिं के लोगों को पिछड़ा वर्ग की अनुसूची एक के तहत मिलने वाली सुविधाओं का लाभ मिलेगा। झारखंड कैबिनेट ने भी इसे मंजूरी दे दी है।
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने इससे संबंधित अनुशंसा राज्य सरकार को भेजी थी। अब तेली, कुल्लू और गोराई को छह प्रतिशत के बजाय आठ प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा।
यह आरक्षण सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रभावी है। इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर होने वाली प्रोन्नति में भी इन जातियों के लोग लाभान्वित होंगे।
लगभग 37 लाख है आबादी
तेली जाति की झारखंड में आबादी राज्य की वर्तमान जनसंख्या का करीब 12 प्रतिशत हैं। तेली समाज की आबादी लगभग 37 लाख है।
रांची लोकसभा क्षेत्र के 42 गांवों में इस जाति का प्रभुत्व है। सिंहभूम को छोड़ पूरे राज्य में इनकी अच्छी खासी आबादी है।
संथाल परगना में भी इनका खासा प्रभाव है। उत्तरी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल में भी इनकी बहुलता है।
पिछड़ा वर्ग की अनुसूची दो में रहने के कारण तेली समेत अन्य दोनों जातियों को शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अब तक छह प्रतिशत आरक्षण मिलता था। अनुसूची एक में आने के बाद अब इन्हें आठ प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा।
तेली समाज का राजनीतिक प्रभुत्व
जिस प्रकार झारखंड में कुर्मी समाज का राजनीतिक प्रभुत्व देखने को मिलता है, उसी तरह राज्य के कई हिस्सों में तेली समाज प्रभाव डालता है।
दरअसल, राजनीतिक विश्लेषक झारखंड की राजनीति को तीन पट्टियों में बांटते रहे हैं। एक पट्टी राज्य के पूर्वी हिस्से में सिंहभूम से शुरू होकर रांची, रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, घनबाद, गिरिडीह होते हुए देवघर को छूती है।
इन क्षेत्रों में कुर्मी जाति का प्रभाव देखने को मिलता है। इसी तरह दूसरी पट्टी राज्य के पश्चिमी हिस्से में खूंटी से शुरू होकेर लोहरदगा, गुमला, लातेहार होते पलामू तक पहुंचती है।
इस भाग में तेली और वैश्य जाति का प्रभाव देखने को मिलता है। तीसरी पट्टी कोल्हान, संथाल और राज्य के बीचे के कुछ हिस्से हैं, जहां आदिवासी राजनीतिक रूप से प्रभावी हैं।
बहरहाल यहां बात तेली समाज की कर रहे हैं, जो वैश्य का ही एक अंग है। उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि खूंटी, गुमला, लोहरदगा, लातेहार, पलामू और रांची जिले के कई हिस्से में तेली समाज राजनीतिक रूप से प्रभावी है।
यह अलग बात है कि इन क्षेत्रों की ज्यादातर सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग और रामगढ़ ऐसी सीटें हैं, जहां तेली समाज का प्रभाव, तो है पर कुर्मी जाति भी यहां समान रूप से प्रभावी है।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास वैश्य समाज से आते हैं। वह अभी ओड़िशा के गर्वनर हैं। तेली समाज हमेशा ही रघुवर दास के साथ रहा।
उनके अलावा रांची के पूर्व सांसद शिवप्रसाद साहू, पूर्व राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू, हजारीबाग के सांसद मनीष जायसवाल ये सभी वैश्य समाज से आते हैं, जिनका समर्थन तेली समाज करता है।
तेली भी कर रहे एसटी में शामिल करने की मांग
2018 में झारखंड में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने तेली और कुर्मी जैसी जातियों को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में शामिल करने की कोशिश की, जिसका झारखंड के आदिवासियों ने विरोध किया।
इसके विरोध में आदिवासियों ने जय आदिवासी युवाशक्ति (जेएवाई) के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद “आदिवासी आक्रोश महारैली” का आयोजन किया गया।
राज्य के सभी प्रमुख आदिवासी समूहों ने एक होकर कुर्मी और तेली को एसटी में शामिल किये जाने का विरोध शुरू कर दिया।
इसके बाद मामला टल तो गया, लेकिन कुर्मी समाज आज भी इस मांग को लेकर आंदोलनरत है, जबकि तेली समाज उचित अवसर की तलाश में चुप है।
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