रांची। बिहार-झारखंड की राजनीति में पिछले 50-60 साल से गुरुजी का जलवा दिखता रहा है। और आज भी उनका रूतबा कायम है। हालांकि इस बार वह चुनाव से दूर हैं, लेकिन उनका जलवा बरकरार है।
हर जगह उन्ही की गूंज सुनाई दे रही है। खास तौर पर संथाल परगना में तो उनकी चर्चा के बिना, तो राजनीति ही अधूरी है। जी हां हम बात कर रहे हैं जेएमएम सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन की।
शिबू सोरेन इस बार प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें परंपरागत दुमका सीट से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद इस लोकसभा चुनाव में उनकी धमक पूरी तरह बरकरार है।
राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो से लेकर भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल अन्य दलों के तमाम पोस्टरों से लेकर भाषण और नारों में गुरुजी की छाप है। इस बार भी झामुमो के पोस्टर में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन हर जगह दिखेंगे।
दुमका से आठ बार सांसद रहे शिबू सोरेन इस बार स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वह अब पहले की तरह सक्रिय भी नहीं हैं।
कई बीमारियों से ग्रसित शिबू सोरेन की मौजूदगी ही उनके समर्थकों में जोश का संचार कर देती है। उनकी परंपरागत सीट दुमका पर भी इस बार रोमांचक मुकाबला होगा।
भाजपा ने दुमका में शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाया है। सीता सोरेन ने बगावत करते हुए ना सिर्फ झामुमो छोड़ा है, बल्कि सोरेन परिवार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यह सिलसिला अभी जारी है। वहां उनका मुकाबला झामुमो के वरिष्ठ विधायक नलिन सोरेन से होगा।
शिबू सोरेन के आंदोलन और संघर्ष के कारण उनके प्रति आदिवासियों व अन्य समाज के मन में व्याप्त सम्मान झामुमो की बड़ी ताकत रही है।
झामुमो के रणनीतिकार भी इसे खूब समझते हैं। यही वजह है कि चुनाव से दूर रहकर भी गठबंधन के चुनावी सभाओं में उनकी चर्चा हो रही है।
महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन कर बड़े फलक पर उभरे शिबू सोरेन ने लोगों को जागरूक करते हुए दिशोम गुरु का दर्जा पाया।
शिबू सोरेन की आदिवासियों के बीच अच्छी पकड़ और लोकप्रियता है। विरोधी दल भी उन्हें ज्यादा टारगेट करने से परहेज करते हैं।
झारखंड की राजनीति में धमक रखने वाले शिबू सोरेन आठ बार सांसद, तीन बार राज्यसभा सदस्य, एक बार केंद्रीय मंत्री और तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 1977 से लेकर अबतक के सभी चुनावों में शिबू सोरेन की मौजूदगी और धमक रही है।
संघर्ष के बूते जहां उन्होंने अपनी अलग राह बनाई, वहीं अलग-अलग समय में राजद, जनता दल, कांग्रेस और भाजपा के साथ तालमेल कर भी राजनीति भी की।
रिश्वत कांड, कोयला घोटाले से लेकर हत्या के मामलों में भी उनका नाम आया, लेकिन इन सभी केस में शिबू सोरेन बरी हो चुके हैं। उनके राजनीतिक सफर में ढ़ेरों उतार-चढ़ाव आए। कई बार जेल यात्राएं की। चुनावों में उन्हें हार का सामना भी कई बार करना पड़ा।
यह भी उल्लेखनीय है कि शिबू सोरेन मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए विधानसभा का चुनाव हार गए थे। तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
शिबू सोरेन ने राज्य में सभी दलों के साथ मिलकर सरकार चलाई। भाजपा के साथ उनका तालमेल ज्यादा नहीं चल पाया। अभी वे राज्यसभा के सदस्य हैं।
शिबू सोरेन ने वृहद झारखंड राज्य के लिए लंबा आंदोलन चलाया था। इसमें झारखंड से सटे बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के जिले भी शामिल थे।
हालांकि तकनीकी कारणों से वृहद झारखंड की मांग पर निर्णय नहीं हुआ, लेकिन इस आंदोलन के क्रम में शिबू सोरेन का इन राज्यों में लगातार कार्यक्रम हुआ।
बिहार, ओड़िशा, बंगाल में उनके नेतृत्व में झामुमो ने चुनावों में जीत भी हासिल की।
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