रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दिये अपने एक फैसले में कहा कि पदोन्नति (प्रमोशन) किसी कर्मचारी का जन्मजात अधिकार नहीं है, लेकिन इस पर विचार किये जाने का अधिकार तब जरूर पैदा होता है, जब जूनियर के प्रमोशन पर विचार किया गया हो।
दरअसल दया राम (याचिकाकर्ता) ने रिट याचिका दायर कर उन्हें सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नति के लिए समीक्षा करने का निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पदोन्नति के लिए पात्र होने के बावजूद, उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) की अनुपस्थिति के कारण उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया, जिससे विभागीय पदोन्नति समिति उसके मामले का मूल्यांकन करने से वंचित रह गयी।
उनकी ओर से बहस कर रहे अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि एसीआर को बनाये रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और संबंधित विभाग की है, कर्मचारी की नहीं।
इसलिए उन्हें तब से पदोन्नति दी जानी चाहिए, जिस दिन से उनके कनिष्ठों (जूनियर) को पदोन्नत किया गया था। इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस दीपक रौशन की कोर्ट में हुई।
कोर्ट ने दिया ये आदेश
सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगर कोई अन्य कानूनी बाधा नहीं है तो याचिकाकर्ता को सहायक अभियंता के पद पर तब से पदोन्नति दी जाये, जिस तिथि को उसके जूनियर को सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नत किया गया है।
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