स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन
वैश्विक मंच पर हिंदू धर्म का पुनर्जागरण करने वाले स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व और कृतित्व रोम्यां रोला और रबींद्रनाथ टैगोर के जमाने से लेकर आज तक आम और खास को गहरे प्रभावित करता रहा है।
आज भी भारत सहित तमाम देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री उनका हवाला देते हुए और उनके बताए रास्ते पर चलने का आह्वान करते हैं।
उन्होंने वर्षो की गुलामी में जकड़े देश के अंदर स्वाभिमान की भावना जगाई, जिसके दम पर हमने स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन सवाल है कि क्या उनके स्वर्णिम संदेश, उनका जीवन-दर्शन हमें आज के आपाधापी भरे जीवन से पैदा होने वाली निराशा, तनाव और अवसाद से बचा सकते हैं? जवाब है हां।
पहले पढ़ाई और फिर करियर को लेकर आज हर युवा परिवार के दबाव और समाज की उम्मीदों के बीच पिस रहा है।
जिनका करियर चल पड़ा है, उन्हें प्रत्याशा के अनुसार पारितोषिक नहीं मिल रहा है।
ऐसे लोगों को स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन से जीने और संघर्ष करने की एक नई आशा मिल सकती है।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था और मात्र 39 वर्ष की आयु में चार जुलाई, 1902 को उनका देहावसान हो गया।
इतनी कम उम्र में ही वह इतना बड़ा काम कर गए, जिसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है।
इसके बावजूद हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वयं विवेकानंद ने कहा था कि व्यक्ति चाहे कितना ही महान क्यों न हो, उसके विचार या दर्शन पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, लेकिन दुख की बात है कि न केवल विवेकानंद, बल्कि उन जैसी दूसरी शख्सियतों के व्यक्तित्व और कृतित्व को कसौटी पर कसने के बजाय उनका अंधानुकरण करने की प्रवृत्ति ज्यादा देखी जाती है।जबकि विवेकानंद का जीवन दर्शन हमें अंधानुकरण से बचने की सलाह देता है।
यहां तक कि रामकृष्ण परमहंस के साथ छह साल तक तर्क करने के बाद विवेकानंद ने उन्हें अपना गुरु माना था।
वे कहते थे कि ईश्वर के अवतार भी तभी आपकी सहायता करेंगे, जब आप उन्हें आम मानव मानकर उनकी कथनी-करनी को परखेंगे और यदि आपका मन उसे सही माने, तभी उस पर चलेंगे।
उनकी दृष्टि में ईश्वर से डरने वाला व्यक्ति कभी उस तक नहीं पहुंच सकता। स्वामी विवेकानंद विचारों की स्वतंत्रता के प्रबल पैरोकार थे।
उनका मानना था कि अगर आपका मस्तिष्क स्वतंत्र ढंग से सोच नहीं सकता है तो फिर आपके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है।
परतंत्र मस्तिष्क वाले तो पूरी जिंदगी दूसरों के अनुसार जिंदगी जीने में खपा देते हैं।
स्वामी विवेकानंद के विचार
• ज्ञान व्यक्ति के मन में विद्यमान है और वह स्वयं ही सीखता है।
• मन, वचन और कर्म की शुद्ध आत्मा नियंत्रण है।
• शिक्षा से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है।
• लड़के और लड़कियां दोनों को समान शिक्षा मिलने का अधिकार होना चाहिए।
• स्त्रियों को विशेष रूप से धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए।
• जनसाधारण में शिक्षा का प्रचार किया जाना चाहिए।
इससे स्पष्ट है कि स्वामी विवेकानंद शिक्षा के प्रसार के प्रबल पैरोकार थे। वे चाहते थे कि जनसाधारण में शिक्षा का प्रचार हो ताकि देश ज्ञान की रौशनी में विश्व गुरू बनने की राह पर चल सके।
वे पुरुषों के साथ स्त्रियों की शिक्षा के भी हिमायती थे। वह स्वध्याय में विश्वास रखते थे और जीवनपर्यंत सीखने पर उनका जोर था।
यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है कि उनकी मृत्यु के लंबे समय के बाद भी देश की पूरी आबादी अब तक शिक्षित नहीं हो सकी है।
हालांकि शिक्षित लोगों की संख्या बढ़ी है। स्वामी विवेकानंद नवजागरण के अगुआ नेताओं में से एक थे और वैचारिक दृढता के साथ वे शिक्षित और संपन्न भारत का सपना देखते थे।
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