टिस्को के अस्तित्व में आने की कहानी
जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी यानि टिस्को के अस्तित्व में आने की कहानी बड़ी रोचक है। यह कहानी इंसानी जज्बे की भी है।
ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस कर्लाइल का कथन है कि यदि कोई राष्ट्र यदि लोहे पर नियंत्रण हासिल कर लेता है तो वह जल्द ही सोने पर भी नियंत्रण प्राप्त कर लेता है।
इस कथन को सच करने और अपने पिता जेएन टाटा की सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए सर दोराबजी टाटा ने 26 अगस्त 1907 में जमशेदपुर के साकची में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की नींव रखी।
पिता के सपनों को सच करने के लिए सर दोराबजी टाटा ने बैलगाड़ी में सवार होकर मध्य भारत में लौह अयस्क की तलाश की थी।
इस काम में पीएन बोस ने भी उनकी मदद की। जिन्होंने सर दोराबजी टाटा का पत्र मिलने के बाद मयूरभंज में लौह अयस्क भंडार की खोज की।
इसके बाद ही जमशेदपुर के साकची में टाटा स्टील प्लांट की नींव रखी गई और देश में भी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई।
सर दोराबजी टाटा ने स्टील और पावर को मजबूत कर विजन ऑफ इंडिया को आकार दिया।
उन्होंने पूरे देशवासियों को भारत में स्टील प्लांट बनाने की भव्य योजना का हिस्सा बनने की अपील की।
पहले स्वदेशी औद्योगिक इकाई का सर दोराबजी टाटा को जबदस्त समर्थन मिला और इसमें 80 हजार भारतीय शामिल हुए।
तीन सप्ताह के भीतर सर दोराब ने दो करोड़ 31 लाख 75 हजार रुपये की मूल जमा पूंजी एकत्र कर भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (पूर्व में टिस्को) कंपनी की नींव रखी।
वर्ष 1908 में निर्माण शुरू हुआ और 16 फरवरी 1912 में कंपनी से पहला एंगोट आयरन का उत्पादन हुआ।
बाम्बे में हुआ था जन्म
सर दोराबजी टाटा, पिता जमशेदजी नसरवानजी टाटा और मां हीराबाई टाटा के बड़े बेटे थे।
जिनका जन्म 27 अगस्त, 1859 को बाम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बाम्बे के प्रोपराइटरी हाई स्कूल में हुई।
16 साल की उम्र में इन्हें इंग्लैंड के केंट में पढ़ाई के लिए भेजा गया। इसके बाद इन्होंने गोनविले और कैयस कालेज, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड में पढ़ाई की।
वर्ष 1879 में सर दोराबजी टाटा भारत आए और बाम्बे स्थित सेंट जेवियर्स कालेज में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने बाम्बे गजट में बतौर पत्रकार दो साल काम किया। इसके बाद अपने पिता के फर्म, कपास के काम में कार्यरत एम्प्रेस मिल्स को ज्वाइंन किया।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, टाटा पावर की भी स्थापना की
सर दोराबजी टाटा दूरदर्शी थे जो रिसर्च का महत्व समझते थे और वे चाहते थे कि उद्योग में अधिक से अधिक रिसर्च हो।
इसलिए उन्होंने वर्ष 1909 में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस की स्थापना की और देश को रोशन करने के लिए वर्ष 1910 में टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर सप्लाई कंपनी लिमिटेड (अब टाटा पावर कंपनी लिमिटेड) की स्थापना में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
वर्तमान में ये दोनों संस्थान आज भी देश के विकास में महती भूमिका निभा रहे हैं।
दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इस्पात कंपनी है टाटा स्टील
जमशेदपुर स्थित यह दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इस्पात कंपनी है। इसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 28 मिलियन टन है।
यह फार्च्यून 500 कंपनियों में भी शुमार है जिसमें इसका स्थान 315 वां है। कम्पनी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है।
यह बृहतर टाटा समूह की एक अग्रणी कंपनी है। टाटा स्टील भारत की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली निजी क्षेत्र की दूसरी बडी कंपनी भी है जिसकी सकल वार्षिक आय 1,32,110 करोड़ रुपये है।
यह कंपनी अपने कर्मचारियों का इतना ध्यान रखती है कि आज भी हजारों की संख्या में युवाओं का सपना होता है कि वे टिस्को में काम करें।
25 वर्ष तक थे कंपनी के चेयरमैन
सर दोराबजी टाटा 1907 में स्थापना से वर्ष 1932 तक कंपनी के चेयरमैन रहे। वह श्रमिकों के कल्याण में भी गहरी रुचि रखते थे।
वर्ष 1920 में जब हड़ताल हुई तो उन्होंने जमशेदपुर पहुंच कर कर्मचारियों की मांग पूरी की थी।
कंपनी के लिए गिरवी रख दिए थे पत्नी के जेवर
पहले विश्वयुद्ध के बाद सर दोराबजी कंपनी के विस्तार कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को भी गिरवी रख दिया था।
इसमें उनका मोती जड़ित टाइपिन और पत्नी का जुबली डायमंड भी शामिल था, जो कोहिनूर हीरा से आकार में दोगुना था।
इंपीरियल बैंक ने तब उन्हें इसके लिए एक करोड़ रुपये का व्यक्तिगत ऋण दिया था।
सर दोराब जानते थे कि कंपनी में बनने वाला हर टन स्टील, कंपनी की मिलों में कार्यरत कर्मचारियों, कोलियरीज, माइंस, स्टॉकयार्ड में कार्यरत श्रमिकों की मेहनत का ही नतीजा है।
इसलिए उन्होंने आठ घंटे का कार्यदिवस, मातृत्व अवकाश, भविष्य निधि, दुर्घटना मुआवजा, निशुल्क चिकित्सा सुविधा सहित मजदूर हित में कई कल्याणकारी पहल की।
सर दोराब ने अपनी सारी संपत्ति मानव कल्याण के लिए ट्रस्ट में दान कर दी। उनकी मदद से ही कैंसर अनुसंधान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस सहित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की नींव रखी गई।
सर दोराबजी टाटा खेल के भी बहुत शौकीन थे। वर्ष 1920 में उन्होंने अपने खर्च पर चार भारतीय एथलीट और दो पहलवानों को ओलंपिक भेजा। तब भारत में कोई ओलंपिक संघ नहीं था।
उनकी पहल का ही नतीजा था कि भारत में इंडियन ओलपिक एसोसिएशन की नींव रखी गई। वे उसके अध्यक्ष बने।
1924 में उन्होंने भारतीय ओलंपिक टीम को वित्तीय मदद की। सर दोराबजी टाटा के दूरगामी सोच का ही नतीजा है कि 15 हजार एकड़ में फैले जमशेदपुर शहर का प्रबंधन टाटा स्टील कर रही है।
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