Tuesday, June 24, 2025

इमरजेंसी के 50 साल: प्रयागराज में तानाशाही की छाया और लोकतंत्र का संकट [50 years of emergency: Shadow of dictatorship and crisis of democracy in Prayagraj]

50 years of emergency:

नई दिल्ली, एजेंसियां। 25 जून 1975 की आधी रात को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया था। यह ऐतिहासिक और विवादित फैसला 21 मार्च 1977 तक जारी रहा। इस आपातकाल का असर पूरे देश के साथ-साथ प्रयागराज (तब इलाहाबाद) पर भी गहरा पड़ा, जिसने इसे बाबुओं का शहर होने के बावजूद भय और सन्नाटे की नगरी बना दिया।

50 years of emergency: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला और आपातकाल की घोषणा

आपातकाल की घोषणा से कुछ दिन पहले, 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया था जिसने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया। न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव को अवैध घोषित करते हुए उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से रोक दिया। इस फैसले ने इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती दी और बिहार के प्रसिद्ध नेता जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को हवा दी। इसके बाद इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर लोकतंत्र के इस संकट को रोकने की कोशिश की।

50 years of emergency:प्रयागराज में सन्नाटा और पुलिस का आतंक

आपातकाल लागू होते ही प्रयागराज में हालात पूरी तरह बदल गए। सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी काम खत्म कर जल्दी घर चले जाते, क्योंकि बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं था। शहर की सड़कों पर भारी पुलिस बल तैनात था, और किसी को भी खुलकर आवाज उठाने की अनुमति नहीं थी। बाबुओं का शहर कहे जाने वाला इलाहाबाद पूरी तरह सन्नाटे में डूब गया। लंच ब्रेक में भी लोग घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

50 years of emergency:गिरफ्तारी और दमन

आपातकाल के दूसरे दिन 26 जून 1975 को प्रयागराज में पहले गिरफ्तारी हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र देव पांडेय, भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी और समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र को गिरफ्तार कर नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया गया। इस गिरफ्तारी से साफ था कि सरकार किसी भी विरोध को बर्दाश्त नहीं करेगी।

50 years of emergency:सेंसरशिप और मीडिया पर पाबंदी

आपातकाल के दौरान प्रेस और मीडिया पर भी कड़ी सेंसरशिप लागू की गई। समाचार प्रकाशित करने से पहले मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना जरूरी था। कोई भी खबर जो सरकार को मंजूर न होती, वह छप नहीं पाती थी। बीबीसी लंदन की रेडियो सेवा को भी बंद किया गया, और लोग छुप-छुप कर उसे सुनते थे। सरकारी रेडियो अकसर केवल फिल्टर की गई खबरें ही प्रसारित करता था।

50 years of emergency:छात्र जीवन और विरोध का दम घुटना

प्रयागराज की यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में भी छात्रों का मनोबल टूट गया था। पढ़ाई के बाद छात्र सीधे घर चले जाते, क्योंकि किसी भी प्रकार का प्रदर्शन या विरोध खतरनाक साबित हो सकता था। शहर में किसी भी तरह का धरना-प्रदर्शन नहीं हो रहा था।

50 years of emergency:जबरन नसबंदी और 20 सूत्रीय कार्यक्रम

आपातकाल के करीब छह महीने बाद इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसका मकसद देश में विकास था, लेकिन इसमें जबरन नसबंदी कार्यक्रम भी शामिल था। ग्राम सेवकों और शिक्षकों को हर महीने पांच लोगों की नसबंदी कराने का दबाव बनाया गया। नाबालिग बच्चों, वृद्धों, और विधवाओं की भी जबरन नसबंदी की गई, जिससे सामाजिक असंतोष और बढ़ गया।

50 years of emergency:लोकतंत्र को लगा गहरा झटका

आपातकाल के दौरान लोगों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। अदालतों में याचिका दाखिल करना प्रतिबंधित था, और विरोध करने वालों को जेल भेजा जाता था। यह भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला था, जिसकी छाया आज भी कायम है। वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र देव पांडेय के अनुसार, इस दौर की घटनाएं लोकतंत्र की कमजोरियों और आवश्यक सुधारों पर सोचने का मौका देती हैं।

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