रांची। लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में झारखंड में संताल परगना की तीन संसदीय सीटों पर शनिवार को वोट डाले जाएंगे।
तीनों सीटों पर कुल 52 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशियों के बीच है।
पिछले चुनाव में इन तीन में दो सीट- दुमका और गोड्डा भाजपा ने जीती थीं, जबकि लगातार दो बार से राजमहल सीट जेएमएम के कब्जे में रही है।
संताल परगना झारखंड का ऐसा क्षेत्र है, जिस पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का एकाधिकार प्रतीत होता है।
दरअसल, यह दिशोम गुरु शिबू सोरेन की कर्मभूमि मानी जाती है। अलग राज्य के लिए किये गये उनके आंदोलनों का यह केंद्र रहा है।
यही कारण है कि संताल के अंदरूनी और जंगली इलाकों में लोग आज भी सिर्फ शिबू सोरेन को ही जानते हैं।
गुरुजी के बाद हेमंत सोरेन ने मजबूती से अपने पिता की विरासत की आगे बढ़ाया। यही कारण है कि झामुमो को छोड़ कोई भी दूसरा राजनीतिक दल आज भी यहां संघर्ष करता नजर आता है।
इस चुनाव में भी बीजेपी का अथक प्रयास है कि लोगों के दिलों में जगह बनाये। पर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी ऐसा मुद्दा है, जिसे यहां के लोगों को भुला पाना आसान नहीं है।
हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन जहां भी जा रही हैं, अपने पति की गिरफ्तारी के मुद्दे को बड़े ही भावुक तरीके से उठा रही है।
वह लोगों के दिल को झकझोरने की कोशिश कर रही है। अपनी कोशिश में वह कितना कामयाब रहती है, यह तो 4 जून को पता चल ही जायेगा।
बताते चलें कि लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में आठ राज्यों की 57 सीटों पर शनिवार को मतदान होना है।
इनमें झारखंड की तीन सीटें भी शामिल हैं। यहां गोड्डा, राजमहल और दुमका में मतदान होगा।
यहां राजमहल की एकमात्र सीट लगातार दो बार से झारखंड मुक्ति मोर्चा के कब्जे में रही है। तीनों सीटों पर भाजपा का मुकाबला विपक्षी गठबंधन के दो दलों के उम्मीवारों से है।
गोड्डा में भाजपा के टिकट पर तीन बार सांसद रहे निशिकांत दुबे की टक्कर कांग्रेस के प्रदीप यादव से है तो राजमहल में भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी जेएमएम के विजय हांसदा को चुनौती दे रहे हैं।
दुमका सीट पर जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू पार्टी और परिवार की इच्छा की अनदेखी कर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। उनका मुकाबला जेएमएम के पुराने नेता नलिन सोरेन से है।
भाजपा उम्मीदवारों की बात करें तो निशिकांत दूबे को छोड़ बाकी दोनों प्रत्याशी दल बदल कर उम्मीदवार बने हैं।
दुमका से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं सीता सोरेन जेएमएम के टिकट पर जामा से विधायक चुनी जाती रही हैं।
चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली थी। हालांकि जब उन्होंने भाजपा का दामन थामा, उस वक्त पार्टी दुमका से अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर चुकी थी।
शिबू सोरेन को हरा कर सांसद बने सुनील सोरेन को भाजपा ने फिर मौका दिया था। सीता सोरेन के भाजपा में आते ही परिदृश्य बदल गया।
सुनील सोरेन को भाजपा ने चुनाव लड़ने से रोक दिया और उनकी जगह सीता सोरेन को अपना उम्मीदवार बना दिया।
राजमहल से भाजपा उम्मीदवार ताला मरांडी की भी यही कहानी रही है। वे पहले भाजपा में थे। फिर भाजपा ने दलीय अनुशासनहीनता के कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया।
तब वे आजसू में चले गए। राजमहल से जेएमएम का कब्जा खत्म करने के लिए भाजपा ने उनकी वापसी कराई।
अब वे राजमहल से भाजपा के टिकट पर ताल ठोंक रहे हैं। विजय हांसदा की भी राजनीतिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है।
उनके पिता थामस हांसदा लोकसभा में दो बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हालांकि विजय हांसदा का विधायी जीवन जेएमएम से ही शुरू हुआ, जब वे पहली बार 2014 में राजमहल से चुनाव जीते।
दुमका संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की छह सीटें हैं। इनमें पांच पर विपक्षी इंडिया ब्लॉक की पार्टियों का कब्जा है।
सिर्फ एक सीट भाजपा के पास है। नाला, शिकारीपाड़ा, दुमका और जामा विधानसभा सीटों से पिछली बार जेएमएम के उम्मीदवार जीते थे तो जामताड़ा सीट से कांग्रेस कैंडिडेट इरफान अंसारी की जीत हुई थी।
सिर्फ सारठ की सीट भाजपा के खाते में है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दुमका की चुनावी जंग कैसी रहने वाली है।
जामा सीट से ही पिछली बार सीता सोरेन जेएमएम के टिकट पर विधानसभा पहुंची थीं।
दुमका की तरह ही राजमहल का भी राजनीतिक परिदृश्य है। राजमहल में भी विधानसभा की छह सीटें हैं, जिनमें पांच पर इंडिया ब्लॉक का कब्जा है।
सिर्फ राजमहल की एक विधानसभा सीट भाजपा के पास है। बरहेट, बोरियो, महेशपुर और लिट्टीपाड़ा असेंबली सीट जेएमएम के पास है तो पाकुड़ की सीट कांग्रेस के कब्जे में है।
2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद विजय हांसदा ने जेएमएम की लाज बचा ली थी। दोनों चुनावों में उनके अलावा जेएमएम का कोई उम्मीदवार नहीं जीता।
तीसरी बार ताला मरांडी अपना कोई कमाल दिखाएंगे या विजय हांसदा हैट्रिक लगाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
गोड्डा संसदीय क्षेत्र में लगातार तीन बार भाजपा के निशिकांत दुबे सांसद रहे हैं। इसके बावजूद यहां की छह विधानसभा सीटें में दो ही भाजपा के कब्जे में हैं।
देवघर और गोड्डा सीट भाजपा के पास है, जबकि महगामा, जरमुंडी और पोड़ैया हाट पर कांग्रेस का कब्जा है।
मात्र मधुपुर की सीट जेएमएम के पास है। लोकसभा चुनाव में प्रदीप यादव को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है।
वे पोड़ैयाहाट से ही कांग्रेस के विधायक हैं। यहां सियासी आधार प्रदीप यादव का मजबूत तो दिखता है, लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों से भाजपा के निशिकांत दुबे अपना करिश्मा दिखाते रहे हैं।
इस बार निशिकांत दुबे का करिश्मा बरकरार रहता है या प्रदीप यादव अपने मजबूत राजनीतिक आधार का फायदा ले पाते हैं, यह चुनाव परिणाम से ही पता चलेगा।
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