Monday, July 14, 2025

क्यों बहुत जेरॉक्स करता था यह अफसर

जानिये एक गद्दार को, जो बन गया अमेरिकी एजेंट

नयी दिल्इली। सरो का अधिकारी खुफिया जानकारी पाकिस्तान को बेच रहा था। उसकी पोल खुल गयी है और वह जांच एजेंसियों की गिरफ्त में है। भारत का जासूसी मिशन अगर अजीत डोभाल, रवींद्र कौशिक जैसे जांबाज देशभक्तों से भरा पड़ा है। पर क्या आप जानते हैं कि यहां कुछ गद्दार भी हुए हैं, जिन्होंने चंद चांदी के सिक्कों के लिए देश से गद्दारी की। इनमें एक नाम रबिंदर सिंह का है, जिसने पैसे की लालच में देश की सुरक्षा का सौदा कर लिया। आज हम इसी गद्दार की कहानी आपको बताने जा रहे हैं।

ये सच्ची कहानी साल 2003-04 की है। भारत की खुफिया एजेंसी RAW के भीतर एक काउंटर इंटेलिजेंस ऑपरेशन शुरू किया गया था। यह जांच खास होती है, क्योंकि इसमें अपने ही किसी खास पर नजर रखी जाती है। रबिंदर सिंह एजेंसी में संयुक्त सचिव पद पर थे। उन पर कई महीनों से नजर रखी जा रही थी। सूचना मिली थी कि वह ऐसी जानकारी पूछ रहे हैं, जो उन्हें नहीं पूछनी चाहिए। कुछ दिन की निगरानी में ही साफ हो गया कि वह जेरॉक्स बहुत करते हैं। दिन भर में सैकड़ों पेज की वह फोटो कॉपी निकालते हैं। फिर उनके पीछे वॉचर लगा दिए गए, जो हर 2 घंटे में बदल जाते थे, जिससे उनकी एक लोकेशन पर मौजूदगी से किसी को शक न हो।

रबिंदर सिंह के केबिन में और यहां तक कि पंखे में भी बग लगा दिए गए। जल्द ही कई सबूत एजेंसी को मिले। वह कई लोगों से मिलते थे, लेकिन पता करना था कि हैंडलर कौन है? जांच में पता चला कि रबिंदर सिंह जब किसी दूसरे देश में पोस्टेड थे, तो उनके परिवार में किसी की तबीयत खराब हुई थी और काफी खर्चा आया। उस समय अमेरिकन इंटेलिजेंस ने उनसे संपर्क किया था। दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद से काफी आक्रामक थी, क्योंकि तब उसे भनक नहीं लग पाई थी। वह चाहती थी कि भारत के मिशन की सूचना अंदर से ही निकालने के लिए कोई डबल एजेंट बन जाए।

अमेरिकी एजेंसी ने रबिंदर को जरूरत पड़ने पर काफी पैसे दिए और एक रिश्ता बना लिया। जब वह पोस्टिंग से भारत आए तो डबल एजेंट बन चुके थे। वह सीआइए को कैसे ब्रीफ कर रहे थे, यह पता नहीं चल पाया था।  रॅा अधिकारी जानते थे कि 1982-83 में एक क्लर्क ने भारत के मिसाइल प्रोग्राम के बारे में कैसे सेंसिटिव जानकारी लीक कर दी थी, रबिंदर सिंह तो काफी ऊंचे पद पर थे। वह देश का बड़ा नुकसान कर सकते थे। उनके घर के पास फल-सब्जी बेचने वाला अधेड़ शख्स भी रॉ का एजेंट था।

एक दिन वाचर ने रिपोर्ट की कि रबिंदर सिंह बहुत ज्यादा दस्तावेज बैग में भरकर बाहर ले जा रहे हैं। फौरन लॉकडाउन का आदेश कर गेट पर तलाशी ली जाने लगी। आदेश था कि घर जाते समय सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की तलाशी ली जाएगी। रबिंदर को शक हो गया कि कहीं न कहीं कुछ हो रहा है। इसके बाद रविंदर को संदेह हो गया कि डबल एजेंट की तलाश शुरू हो गयी है। इसके बाद ही उसने देश छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी। इधर रॉ को कुछ भी पुख्ता नहीं मिल पाया था। रॉ के पूर्व विशेष सचिव अमर भूषण बताते हैं कि बिना सबूत किसी का करियर बर्बाद करना वह नहीं चाहते थे। इसलिए  एक दिन रबिंदर के घर से निकलने के बाद घर की तलाशी ली गई। वहां उनका लैपटॉप मिला जिससे वह इन्फॉर्मेशन भेज रहे थे। परंतु रविंदर अब सतर्क हो गया था और समझ गया था कि यहां रहना अब खतरे से खाली नहीं है।

फिर उसने ऐसा माहौल बनाया कि तबीयत खराब है और वह घर में ही है। फिर अमेरिकी मदद से वह एक दिन अचानक दिल्ली से निकल गया। अफवाह फैलाई गई कि वह चेन्नई की तरफ गए हैं। एजेंसी का अटेंशन दक्षिण भारत की तरफ डायवर्ट हुआ, जबकि रबिंदर यूपी बॉर्डर से होकर निकल गए। आमतौर पर सबसे कम चेकिंग रोड के रास्ते पर होती है। पूरे परिवार के लिए रबिंदर ने नकली पहचान पत्र, अमेरिकी नागरिकता का इंतजाम कर लिया था। ऐसे में नेपाल में उन्हें किसी ने अमेरिका जाने से नहीं रोका। प्लेन के उड़ने के बाद नेपाल को सूचना मिली। कुछ देर पहले तक वह अमेरिकी दूतावास के अधिकारी के साथ काठमांडू में ही थे।

रबिंदर सिंह के खिलाफ यह नहीं पता चल सका था कि वह किस तरह से जानकारी बाहर भेज रहे थे। वह अमृतसर के एक जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह भारतीय सेना में अधिकारी थे। ऑपरेशन ब्लूस्टार में हिस्सा भी लिया था। बाद में रॉ में शामिल हो गए। समझा जाता है कि 90 के दशक में हॉलैंड में भारतीय दूतावास में पोस्टिंग के दौरान ही रबिंदर अमेरिकी एजेंसी सीआईए के संपर्क में आए थे। बाद में पता चला कि रबिंदर ऑफिस से गुप्त रिपोर्टों को घर ले जाते थे और अमेरिकी एजेंसी से मिले हाई पावर कैमरों से तस्वीरें खींच लेते थे। एक हार्ड डिस्क में उसे स्टोर करते और सिक्योर मेल से हैंडलर को भेज देते थे। फिर हार्ड डिस्क और लैपटॉप से फाइलें मिटा दी जाती। बताते हैं कि करीब 20 हजार कागजों को उसने इसी तरह भेजा था। अमेरिकी एजेंसी के एजेंटों से मुलाकात करने के लिए वह कई बार काठमांडू जाया करते थे। जून 2004 में राष्ट्रपति ने रबिंदर सिंह को बर्खास्त करने का आदेश दिया, लेकिन तब तक वह भाग चुका था। बताते हैं कि रबिंदर का आखिरी समय बहुत बुरा गुजरा। सीआईए ने भी उससे दूरी बना ली और वह पैसे के लिए मोहताज हो गए। एक सड़क हादसे में इस डबल एजेंट की मौत हो गई।

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