Jagnathpur temple Rath Yatra Ranchi सर्वधर्म मिलाय का था केंद्र
रांची।रांची के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी आस्था का सैलाब उमड़ा है। ऐतिहासिक रथयात्रा 20 जून को निकाली जानी है। भगवान एकांतवास से बाहर आ चुके हैं। आज वह लक्षार्चना पूजा के बाद बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ मौसीबाड़ी के लिए रवाना हो जायेंगे।
पुरी मंदिर की तर्ज पर निर्मित जगन्नाथ मंदिर इस साल 332वां स्थापना दिवस मना रहा है। प्रकृति की गोद में अध्यात्म का यह महत्वपूर्ण केंद्र है। इसका निर्माण नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने 332 साल पहले 1691 में करवाया था। कहा जाता है कि ठाकुर एनीनाथ शाहदेव अपने नौकर के साथ पुरी गये थे। नौकर भगवान का भक्त बन गया और कई दिनों तक उनकी उपासना की। इसके बाद रांची में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की गयी।
खास बात ये है कि पुरी की तरह यहां भी भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का विहंगम दृष्य देखने को मिलता है। हाल के दिनों तक मंदिर का प्रबंधन राजपरिवार के द्वारा ही होता था। 1979 में मंदिर को ट्रस्ट बनाया गया। इसका प्रबंधन ट्रस्ट के अधीन कर दिया गया। उपायुक्त ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष होते हैं। साथ ही, ट्रस्ट में राजपरिवार के भी सदस्य हैं।
जगन्नाथपुर मंदिर अध्यात्मिक केंद्र के साथ-साथ सर्वधर्म सद्भाव का भी केंद्र माना जाता है। ठाकुर शाहदेव ने आसपास रहने वाले सभी जाति धर्म के लोगों को मंदिर से जोड़ा था। 300 साल पहले यहां हर जाति और धर्म के लोग मिल-जुलकर रथयात्रा का आयोजन करते थे।
श्री जगन्नाथ को घंसी जाति के लोग फूल मुहैया कराते थे, वहीं उरांव घंटी देते थे। मंदिर की पहरेदारी मुस्लिम किया करते थे। राजवर जाति द्वारा विग्रहों को रथ पर सजाया जाता था। मिट्टी के बर्तन कुम्हार देते थे। बढ़ई और लोहार रथ का निर्माण करते थे। वहीं, ट्रस्ट बनने के बाद अब इस रथयात्रा का आयोजन ट्रस्ट के द्वारा कराया जाता है।
ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने मंदिर के रख-रखाव के लिए तीन गांव जगन्नाथपुर, आमी और भुसु की जमीन मंदिर को दान में दी थी। 1857 में ठाकुर एनी नाथ शाहदेव के वंशज ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया।
इस युद्ध के बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के रियासत के 84 गांव ब्रिटिश सरकार अपने कब्जे में ले लिया। इसमें मंदिर के तीन गांव भी शामिल थे। उस समय मंदिर के मुख्य पुजारी बैकुंठ नाथ तिवारी ने ब्रिटिश अधिकारी से मंदिर की जमीन लौटा देने की अर्जी दी।
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने तीन में से एक जगन्नाथपुर गांव मंदिर को वापस लौटा दी। लिखित रूप में जगन्नाथपुर गांव की 859 एकड़ जमीन मंदिर के नाम कर दी गई थी। वर्तमान में मंदिर के पास सिर्फ 41 एकड़, 27 डिसिमल जमीन बची है। यानी मंदिर की 817.73 एकड़ जमीन गायब हो गयी। बड़कागढ़ के लोग बताते हैं कि कुछ जमीन एचइसी के पास है, तो कुछ भूमि माफियाओं ने अवैध रूप से बेच दी। अब स्थिति यह है कि जमीन की कमी के कारण मंदिर का विस्तार और विकास बाधित हो गया है।
ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा पर भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नौ दिन के लिए मौसी के घर जाते हैं। मौसी गुडिचा देवी के घर नौ दिन आतिथ्य सत्कार स्वीकार करने के बाद प्रभु वापस अपने धाम लौट आते हैं।
प्रभु की अनन्य भक्ति के कारण ही जगन्नाथ मंदिर के समीप ही गुडिचा देवी का मंदिर यानी मौसीबाड़ी बनवाया गया। मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रज भूषण मिश्र के अनुसार कृष्णावतार में भगवान विष्णु से एक बार सुभद्रा कहती है, भैया आपकी पूजा तो हर कोई करेगा।
भैया बलराम और मैं आपके भाई-बहन हैं हमारी भी पूजा होनी चाहिए। बहन की विनती सुनकर भगवान आशीष देते हैं कि कलयुग में जगन्नाथ रूप में मेरे साथ भैया बलराम और तुम्हारी भी पूजा होगी। इसी मान्यता के तहत जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा की भी पूजा होती है।