चतरा। चतरा देश का एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां से आजादी के बाद 1957 में हुए पहले संसदीय चुनाव के बाद से अब तक संपन्न 16 लोकसभा चुनाव में चतरा से कोई स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बना है।
16 बार हुए संसदीय चुनाव में किसी स्थानीय को सांसद बनने का नसीब प्राप्त नहीं हुआ।
इस अनूठे विशिष्टता की वजह से टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति एपिसोड में अमिताभ बच्चन ने प्रतिभागी से सवाल पूछा था-देश का कौन सा ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां से अबतक कोई भी स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बना है।
हालांकि इस चुनाव में स्थानीय व्यक्ति को चतरा से सांसद नहीं बनाने का मुद्दा गरम है। इसे प्रतिष्ठा से जोड़कर भुनाने की कोशिश शुरू हो गई है।
यही कारण भी है कि सुनील कुमार सिंह को भाजपा ने अब तक टिकट देने की घोषणा नहीं की है।
राजनाथ सिंह की पिछले दिनों हुई सभा में भी बाहरी गो बैक के नारे लगे थे। भाजपा में चतरा सीट से बतौर स्थानीय के रूप में काली चरण सिंह और शशिभूषण मेहता पर विचार किया जा रहा है।
वैसे गढ़वा के पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह के नाम की भी चर्चा है। इस सीट के लिए राजद से सत्यानंद भोक्ता स्थानीयता को आधार बना कर ताल ठोक रहे हैं।
पहले आम चुनाव में रामगढ़ राजघराने की महारानी बनीं सांसद
आजादी के बाद पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। इसमें रामगढ़ राजघराने की महारानी विजया राणे पहली बार चुनाव जीती।
वह हजारीबाग से ताल्लुक रखती थीं। महारानी ने 1962 व 1967 में भी यहां से जीत हासिल की।
1971 में बिहार के औरंगाबाद निवासी साहित्यकार शंकर दयाल सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर यहां से बाजी मारी।
1977 में फिर बिहार के जहानाबाद निवासी सुखदेव वर्मा जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीते।
1980 में रणजीत सिंह जीते, जो चतरा के बाहर के थे। 1984 में कांग्रेस के योगेश्वर प्रसाद को चतरा के मतदाताओं ने संसद भेजा।
1989, 1991 में लगातार दो बार बिहार के गया निवासी उपेंद्र वर्मा, 1996 और 1998 में गया के उद्योगपति धीरेंद्र अग्रवाल भाजपा की टिकट जीते।
1999 में राजद ने नागमणि उतारा। वह जीत गए। 2004 में धीरेंद्र अग्रवाल राजद की टिकट पर जीते। 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इंदरसिंह नामधारी चुनाव जीते।
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