फ्रांस में प्रथम विद्रोह
जब भी हम किसी क्रांति या विद्रोह की बात करते हैं तो हमें फ्रांस का ध्यान जरुर आता है।
हजारों सालों तक राजा-महाराजाओं के अधीन रहे इस देश में क्रान्तियों का एक ऐसा दौर आया जिसने लगभग पूरी दुनिया की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं को हमेशा के लिये बदल कर रख दिया।
आज भी दुनिया के किसी भी कोने में जब सामाजिक या राजनीतिक व्यवस्थाओं के खिलाफ विद्रोह होता है तो फ्रांसीसी क्रांति से उत्पन्न हुए लिबर्टी, फ्रेटरनिटी और इक्वलिटी जैसे शब्दों की गूंज जरुर सुनाई देती है।
फ्रांसीसी क्रांति का शुरुआत : फ्रांस में प्रथम विद्रोह
फ्रांसीसी क्रांति का शुरुआत 1789 में फ्रांस की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थी।
एक ओर थे फ्रांस के कुलीन लोग जो देश की सत्ता के करीब थे, वहीं दूसरी ओर थे वे लोग जो सामाजिक और राजनीतिक तौर पर हाशिये पर थे।
दोनों वर्गों के बीच खिंचा-तानी 1787 से ही शुरू हो गई थी, लेकिन 14 जुलाई 1789 को कुछ ऐसा हुआ जिसने फ्रांस को हमेशा के लिए बदल दिया
एस्टेट्स जनरल की बैठक और कॉमनर्स का विद्रोह
1789 में फ्रांस की आर्थिक व्यवस्था खराब थी। राज्य का खजाना खत्म हो रहा था और राज्य चलाना भी मुश्किल हो रहा था।
ऐसे में फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने राज्य में कर बढ़ाने की सोची और एस्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई।
एस्टेट्स जनरल एक सामान्य सभा थी जो फ्रांस के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करती थी। एस्टेट्स जनरल में तीन पक्ष थे।
क्लर्जी, यानी जो पूजा-पाठ करवाते हैं, दूसरा पक्ष था नोबेलिटी, जो शासक वर्ग था और तीसरा पक्ष था कॉमनर्स, जो खेती और मजदूरी करने वाले लोग थे।
एसटेट्स जनरल में कुल 1200 प्रतिनिधि थे, इनमें सबसे अधिक संख्या कॉमनर्स की थी। एसटेट्स जनरल में कर की दरों को बढ़ाने को लेकर लंबी बहस चली, लेकिन वे अधिक करों को बढ़ाने में विफल रहे।
क्योंकि कॉमनर्स को कर की दरें मंजूर नहीं थी। ये सिलसिला ऐसे ही चला और फ्रांस की आर्थिक हालत और भी खराब होती चली गई।
एस्टेट्स जनरल की बैठक हुए दो महीने बीत गए थे, लेकिन इस मसले का कोई हल नहीं निकला।
एस्टेट्स जनरल की बैठक के बाद सबसे बड़ी घटना 14 जुलाई को घटी, जिसने फ्रांसीसी क्रांति को एक नया रुप दिया।
कॉमनर्स की भीड़ का बैस्टिल किले पर धावा
आर्थिक तंगी से जूझ रहे फ्रांस की मुसीबतें तब बढ़ीं जब 1789 में राज्य में सूखा पड़ गया। इस वजह से फ्रांस में खाद्य पदार्थों की किल्लत हो गई।
पूरे देश में हर ओर भूख मरी थी। त्रासदी से परेशान लोगों ने 14 जुलाई 1789 को पेरिस में बैस्टिल किले पर धावा बोल दिया।
बैस्टिल का किला शाही अत्याचार का प्रतीक माना जाता था। भीड़ के सामने राजा को झुकना पड़ा और लोगों की संप्रभुता को सम्मान देते हुए उन्होंने तिरंगे का कॉकेड पहनकर पेरिस का दौरा किया।
जुलाई की इस घटना ने किसानों को अपने मालिकों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। कुलीन अब भयभीत हो गये थे।
गुस्साए किसानों ने कई अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया।
कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए, बहुतों ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली।
अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति का अनुमान करके राजा लुई सोलहवें ने अंतत: नेशनल असेंबली को मान्यता दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा।
4 अगस्त, 1789 की रात को नैशनल असेंबली ने करों, कर्त्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया।
नई व्यवस्था ने पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया।
धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के कब्जे वाली भूमि जब्त कर ली गई। इस प्रकार कम से कम 20 अरब फ्रांसीसी करेंसी की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई।
फ्रांस में लागू हुआ नया संविधान
नेशनल असेंबली को मान्यता मिलते ही उसने देश के लिए एक उदारवादी संविधान की रचना करनी शुरु कर दी।
तकरीबन दो सालों के बाद 1791 में नेशनल असेंबली ने संविधान का प्रारुप तैयार कर लिया।
इसका मुख्य उद्देश्य राजा की शक्तियों पर अंकुश पाना था। राजा की एकक्षत्र शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं में विभाजित कर दिया गया।
इसमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका शामिल थी। इसी के साथ फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की शुरुआत हुई।
लेकिन कई क्रान्तिकारी अब भी इन बदलावों से खुश नहीं थे। वे फ्रांस के राजा लुई सोलहवें के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहते थे।
किंग लुईस सोलहवें की गुलोटिन से हत्या
अप्रैल 1792 में नव निर्वाचित विधानसभा ने पड़ोसी देश ऑस्ट्रिया और पर्सिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
क्रांति से उत्पन्न हुई सरकार का मानना था कि फ्रांस से भागे हुए कुलीन लोग इन देशों में शरण लेकर फ्रांस में दुबारा से राजतंत्र स्थापित करना चाहते हैं।
इसके अलावा वे युद्ध के माध्यम से अपने क्रांतिकारी आदर्शों को पूरे यूरोप में फैलाना चाहते थे।
इस बीच, फ्रांस में ही राजनीतिक संकट आ गया। जब चरमपंथी जैकोबिन्स के नेतृत्व में विद्रोहियों के एक समूह ने पेरिस में शाही निवास पर हमला किया और 10 अगस्त, 1792 को राजा को गिरफ्तार कर लिया।
अगले महीने, हिंसा की लहर के बीच, जिसमें पेरिस के विद्रोहियों ने सैकड़ों आरोपी प्रति क्रांतिकारियों का नरसंहार किया, विधान सभा को नैशनल कन्वेन्शन से बदल दिया गया, जिसने राजशाही को खत्म कर दिया और फ्रांसीसी गणराज्य की स्थापना की घोषणा की।
21 जनवरी, 1793 को नैशनल कन्वेन्शन ने राजा लुईस सोलहवें को राजद्रोह और राज्य के खिलाफ अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाते हुए गिलोटिन पर भेज दिया।
नौ महीने बाद उनकी पत्नी मैरी-एंटोनेट को भी मौत की सजा सुनाई गई और उन्हें भी गुलोटिन पर भेज दिया गया।
हिंसा के इस क्रम में तकरीबन 1400 लोगों को रिपब्लिक के दुश्मन होने के संदेह में पेरिस में मार डाला गया था।
फ्रांस की क्रांति इतिहास में घटी काफी महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना को राजशाही शासन के अंत के तौर पर देखा जाता है।
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