नई दिल्ली, एजेंसियां। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से वोटिंग और वीवीपैट पर्चियों से मिलान की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
इस दौरान सर्वोच्च अदालत ने सीक्रेट बैलेट के जरिए वोटिंग समस्याओं की ओर इशारा किया।
जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं।
हम सभी जानते हैं कि जब बैलेट पेपर्स से मतदान होता था, तब क्या समस्याएं हुआ करती थी। हो सकता है आपको पता नहीं हो, लेकिन हम भूले नहीं हैं।
प्रशांत भूषण यह तर्क दे रहे थे कि कैसे अधिकांश यूरोपीय देश, जिन्होंने ईवीएम के माध्यम से मतदान का विकल्प चुना था, वापस कागज के मतपत्रों पर लौट आए हैं।
प्रशांत भूषण ने कहा कि हम वापस पेपर बैलट्स (मतपत्रों) पर जा सकते हैं। दूसरा विकल्प ये है कि ईवीएम से वोटिंग के दौरान मतदाताओं को हाथ में वीवीपैट की पर्ची देना।
ये भी हो सकता है कि स्लिप मशीन में गिर जाए और इसके बाद वोटर के ये स्लिप मिले। इसके बाद इसे बैलेट बॉक्स में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ये VVPAT पर्चियां वोटर के हाथ में दी जानी चाहिए। हालांकि, वीवीपैट का डिजाइन बदल दिया गया, यह पारदर्शी ग्लास होना चाहिए था।
लेकिन इसे गहरे अपारदर्शी मिरर ग्लास में बदल दिया गया। इसमें केवल तब तक सब दिखाई देता है जब लाइट 7 सेकंड के लिए जलती है।
जब प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण दिया, तो जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पूछा कि जर्मनी की जनसंख्या कितनी है।
प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि यह लगभग 6 करोड़ है, जबकि भारत में 50-60 करोड़ मतदाता हैं।
जस्टिस खन्ना ने कहा कि देश में कुल रजिस्टर्ड मतदाताओं की संख्या 97 करोड़ है। हम सभी जानते हैं कि जब बैलट पेपर से वोटिंग होती थी तब क्या हुआ था।
जब याचिकाकर्ताओं में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि ईवीएम पर डाले गए वोटों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाना चाहिए।
इस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया कि आप कहना चाहते हैं कि 60 करोड़ वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जानी चाहिए। सही?
जस्टिस खन्ना ने कहा कि हां, समस्या तब उत्पन्न होती है, जब मानवीय हस्तक्षेप होता है, इसी से समस्या बढ़ जाती है।
अगर इंसानी दखल नहीं हो तो वोटिंग मशीन सटीक जवाब देगी। अगर आपके पास ईवीएम में छेड़छाड़ रोकने के लिए कोई सुझाव है, तो आप हमें दे सकते हैं।
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