रांची। विधायक सरयू राय ने बड़ा दांव खेला है। उन्होंने बीजेपी को ऐसी पटखनी दी है कि भाजपा का एक कद्दावर नेता उनका रथ हांकने को तैयार हो गया है।
जी हां हम बात कर रहे हैं पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी की। कुणाल ने हाल ही में बीजेपी को टाटा बाय- बाय कहा है।
इसके बाद सब कयास लगा रहे थे कि कुणाल की य़ाद फिर घर वापसी हो जाये, मतलब वह झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लें। क्योंकि झामुमो छोड़ कर ही 2019 में वह बीजेपी में आये थे।
तब समीर मोहंती घाटशिला-बहरागोड़ा में बीजेपी का ताज हुआ करते थे। कुणाल को रघुवर दास ने न सिर्फ बीजेपी में शामिल कराया, बल्कि उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट भी थमा दिया।
ऐसे में समीर मोहंती ने अपना टिकट कटता देख झामुमो का दामन थाम लिया और जीत भी गये।
अब कुणाल षाड़ंगी ने बीजेपी में साढ़े चार साल बिताने के बाद पार्टी को अलविदा कह दिया है। परंतु सब के अनुमान को धता बताते हुए उन्होंने सरयू राय के रथ को ही आगे बढ़ाने का फैसला कर चौंका दिया है।
सरयू राय ने भी बड़ा दांव खेला है। उन्होंने पूर्व भाजपा नेता कुणाल षाड़ंगी को अपनी पार्टी भारतीय जनमोर्चा में शामिल करने की तैयारी कर ली है।
षाड़ंगी हाल ही में भाजपा से इस्तीफा दे चुके हैं। चर्चा है कि षाड़ंगी जल्द ही निर्दलीय विधायक सरयू राय की पार्टी में शामिल हो सकते हैं और बहरागोड़ा सीट से भाजमो के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।
सरयू राय और कुणाल षाड़ंगी की मुलाकात
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि बीजेपी से इस्तीफा देने के बाद कुणाल षाड़ंगी की सरयू राय के साथ लंबी बैठक हुई।
इस दौरान सरयू राय ने कुणाल षाड़ंगी को बहरागोड़ा सीट से भाजमो के टिकट पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया। कुणाल षाड़ंगी बहरागोड़ा से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं।
कुणाल षाड़ंगी ने लगाए हैं कई आरोप
कुणाल षाड़ंगी बहरागोड़ा से पूर्व विधायक रह चुके हैं और उन्होंने अपना राजनीतिक सफर झामुमो से शुरू किया था।
2014 में झामुमो के टिकट पर बहरागोड़ा से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद 2019 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था।
हालांकि, भाजपा के टिकट पर 2019 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही वह पार्टी से नाराज चल रहे थे।
उन्होंने रविवार को भाजपा से इस्तीफा दे दिया और सोमवार को ‘एक्स’ (ट्विटर) पर एक के बाद एक कई ट्वीट कर भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए।
साजिशें, चापलूसी और परिक्रमण से मुक्ति पाने की सलाह
षाड़ंगी ने अपने ट्वीट में लिखा-‘कई सालों बाद आज असहजता, दांव पेंच, आपसी ईर्ष्या, बेहद निम्न स्तर की गुटबाज़ी, युवाओं के लिए नकारात्मकता और लगातार उनके खिलाफ साज़िशें, चापलूसी, जरूरतमंदो से जुड़े मुद्दों पर काम करने और मेहनत की जगह चंद जनाधार वीहिन नेताओं का महिमामंडन, परिक्रमा कर आगे बढ़ने और मंच पर कुर्सी पकड़ने की मानसिकता जैसे बंधनों से मुक्त पहली सुबह की बात ही कुछ और है।’
जेएमएम में भी पुनर्वापसी की हो रही चर्चा
जानकारों का मानना है कि षाड़ंगी के पास भाजपा छोड़ने के बाद बहुत ज्यादा विकल्प नहीं थे। वह अपनी पुरानी पार्टी झामुमो में वापसी भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि बहरागोड़ा से समीर मोहंती पहले से ही झामुमो के विधायक हैं।
ऐसे में उनके पास भाजमो ही एकमात्र विकल्प बचता था। भाजमो ने इस बार विधानसभा चुनाव में 30 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है और पार्टी राज्य में एक मजबूत तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में है। ऐसे में षाड़ंगी और भाजमो एक-दूसरे के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
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