रांची : सूचना आयुक्तों की नियुक्ति समेत राज्य के 12 संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्षों और सदस्यों के खाली पड़े पदों को लेकर एडवोकेट एसोसिएशन की जनहित याचिका की सुनवाई बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की अध्यक्षतावाली खंडपीठ में हुई।
मामले में कोर्ट ने झारखंड विधानसभा सचिव को निर्देश दिया कि वे विधानसभाध्यक्ष के सामने दलबदल के मामले की बात रखें। जिससे दल-बदल के मामले का एक सप्ताह में निपटारा हो सके। नहीं तो अगली सुनवाई में विधानसभा के सचिव को सशरीर हाईकोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा।
कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष नहीं रहने के कारण कई वैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। दलबदल का मामला विधानसभाध्यक्ष के न्यायाधिकरण में अब तक लंबित है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 11 मई को निर्धारित की है।
गौरतलब है कि बीती सुनवाई में कोर्ट ने विधानसभा सचिव को प्रतिवादी बनाया था। खंडपीठ ने पिछली सुनवाई में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रिक्त पद को लेकर मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस पद को लेकर विधानसभाध्यक्ष की ओर से डिसक्वालिफिकेशन के इश्यू को डिसाइड क्यों नहीं किया जा रहा।
इधर, राजकुमार की अवमानना याचिका में प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता अभय मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि राज्य सूचना आयोग में रिक्त पदों को भरने के लिए विपक्ष के नेता के पद के रिक्त रहने से कोई समस्या नहीं है।
कानून में ऐसा प्रावधान है कि यदि विपक्ष के नेता नहीं हैं तो विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को कमेटी में रखकर राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त और अन्य पदों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। राजकुमार की ओर से कहा गया है कि राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2020 में ही सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का अंडरटेकिंग दिया गया था।
पर अब तक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है। वहीं, राज्य सूचना आयोग में रिक्त पदों की नियुक्ति एवं झारखंड में बाल आयोग, मानवाधिकार आयोग और लोकायुक्त समेत 12 संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी एडवोकेट एसोसिएशन की ओर से याचिका दाखिल की गयी है।