रांची। झारखंड में जमीन और फ्लैट का दाखिल खारिज यानी म्यूटेशन सबसे बड़ी समस्या है। जमीन की रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन के लिए लोग अंचल कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार फरवरी में म्यूटेशन के 74,090 मामले लंबित थे, जो 17 दिसंबर को बढ़कर 78,599 हो गए। यानी महज 10 महीने में ही 4509 मामले और पेंडिंग हो गए।
वर्षों से लोग जूझ परेशानी सेः
वर्षों से लोग इस परेशानी से जूझ रहे हैं। इसे देखते हुए सरकार ने एक दिसंबर 2022 को सुओ मोटो म्यूटेशन की व्यवस्था लागू की, ताकि म्यूटेशन के मामले को सरलता से निष्पादित किया जा सके।
इसके तहत ऐसी व्यवस्था की गई है कि जमीन-फ्लैट की रजिस्ट्री होते ही रजिस्ट्री कार्यालय से म्यूटेशन का ऑनलाइन आवेदन स्वत: अंचल कार्यालय चला जाए।
आवेदन मिलने के बाद सीओ को 30 दिन के भीतर म्यूटेशन करना है। आपत्ति हो तो सीओ रैयत को नोटिस जारी कर आवेदन रद्द कर सकता है। पर यह व्यवस्था भी काम न आई और म्यूटेशन के लंबित मामले लगातार बढ़ते गए।
अब भू-राजस्व मंत्री दीपक बिरुआ शनिवार को विभाग की समीक्षा करेंगे। इसमें यह मुद्दा भी उठ सकता है।
90 दिन से अधिक समय से लंबितः
- नामकुम 1995
- रातू 755
- अरगोड़ा 619
- महेशपुर 530
- पाकुड़ 521
- कांके 512
- धनबाद 502
- बाघमारा 467
- रांची 437
- बड़कागांव 406
राज्य में सबसे ज्यादा नामकुम अंचल में म्यूटेशन के 1995 मामले 3 माह से ज्यादा समय से लटके हैं।
आपको बताते हैं कि म्यूटेशन के कहां सबसे ज्यादा मामले लंबित हैः
- नामकुम 4815
- कांके 3574
- पाकुड़ 3194
- गोविंदपुर 2893
- धनबाद 2432
- चास 2201
- रातू 2158
- हजारीबाग सदर 2107
- कटकमदाग 1585
- रांची शहर 1334
- अरगोड़ा 1292
- बाघमारा 1261
- महेशपुर 1202
इस मामले में मंत्री दीपक बिरुवा का कहना है कि समीक्षा करने के बाद संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जायेगा।
अब आपको बता दे कि म्यूटेशन को लेकर नियम क्या कहता हैः
नियम के मुताबिक, आवेदन मिलने के 30 दिन के भीतर म्यूटेशन हो जाना चाहिए। अगर कोई आपत्ति हो तो सीओ रैयत को नोटिस जारी कर सकता है। फिर आवेदन को रद्द कर सकता है।
इस मुद्दे पर तत्कालीन सीएम चंपाई सोरेन ने 12 जून 2024 को बैठक कर सभी डीसी को कहा था कि तय समय सीमा के भीतर म्यूटेशन के मामले निपटाएं। विवाद वाली स्थिति में भी 90 दिन से ज्यादा समय लगे तो अंचल कर्मियों को शोकॉज करें।
समय पर म्यूटेशन न होने की वजहः
आदिवासी जमीन के मामले में सीएनटी एक्ट का प्रावधान भी आड़े आ रहा है। वर्षों पहले किसी आदिवासी जमीन को गैर आदिवासियों ने खरीदा। फिर उसे दूसरों को बेच दिया। यानी कई बार उस जमीन का म्यूटेशन हुआ।
अब वेबसाइट पर उस जमीन की प्रकृति आदिवासी ही दिखती है। ऐसे में म्यूटेशन फंस जाता है। खतियान और पंजी टू वेबसाइट पर पूरी तरह से नहीं डाले गए हैं। अंचल कार्यालयों और रिकॉर्ड रूम में रखे गए जमीन के दस्तावेजों के पन्ने फटे हुए हैं। कुछ मिसप्रिंट हो चुके हैं।
ऑनलाइन व्यवस्था अक्सर ठप रहती है। क्योंकि एनआईसी इसे अपडेट नहीं करता है। घूसखोरी भी एक बड़ी वजह है। घूस देने वालों का म्यूटेशन हो जाता है, नहीं देने वाले परेशान रहते हैं।
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