झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और विधायक सीता सोरेन को नहीं मिली राहत
नई दिल्ली। झामुमो विधायक सीता सोरेन को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। नोट के बदले वोट देने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी और उनके खिलाफ केस चलेगा। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।
सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को पिछला फैसला पलट दिया है। बेंच ने कहा कि विशेषाधिकार के तहत सांसदों-विधायकों को केस से छूट नहीं दी जा सकती है।
CJI ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं है, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट दी गई थी।
1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
CJI ने कहा कि अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी।
आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस लेता है। हमारा विचार है कि संसदीय विशेषाधिकारों से घूस लेने के मामले को बचाया नहीं जा सकता है।
CJI ने कहा कि अगर कोई सांसद भ्रष्टाचार और घूसखोरी करता है तो यह चीजें भारत के संसदीय लोकतंत्र को बर्बाद कर देंगी।
आर्टिकल 105/194 के तहत मिले विशेषाधिकार का मकसद सांसद के लिए सदन में भय रहित वातावरण बनाना है।
अगर कोई विधायक राज्यसभा इलेक्शन में वोट देने के लिए घूस लेता है, तो उसे भी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट का सामना करना पड़ेगा।
अक्टूबर में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि रिश्वतखोरी कभी भी मुकदमे से छूट का विषय नहीं हो सकती है।
संसदीय विशेषाधिकार का मतलब किसी सांसद- विधायक को कानून से ऊपर रखना नहीं है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संसद में अपमानजनक बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रस्ताव में कहा गया था कि संसद और विधानसभाओं में अपमानजनक बयान सहित हर तरह के काम को कानून से छूट नहीं मिलनी चाहिए, ताकि ऐसा करने वालों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत एक्शन लिया जा सके।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सदन के भीतर कुछ भी बोलने पर सांसदों-विधायकों पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। संसद और विधानसभा के सदस्यों को सदन के भीतर बोलने की पूरी आजादी है।
दरअसल, झारखंड की विधायक झारखंड मुक्ति मोर्चा सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव के लिए वोट देने के बदले रिश्वत लेने का आरोप है।
सीता सोरेन ने अपने बचाव में तर्क दिया कि उन्हें सदन में ‘कुछ भी कहने या वोट देने’ के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है।
सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट में सीता सोरेन का पक्ष रखा। उन्होंने हाल ही में लोकसभा में एक बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के अपमानजनक बयान का जिक्र करते हुए कहा कि वोट या भाषण से जुड़ी किसी भी चीज के लिए अभियोजन से छूट, भले ही वह रिश्वत या साजिश हो, पूरी तरह होनी चाहिए।
हालांकि, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सीता सोरेन के मामले को दूसरे मामलों से अलग बताया।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग का सदन की कार्यवाही से कोई संबंध नहीं है। इसलिए राज्यसभा चुनाव में वोटिंग के लिए रिश्वत लेने के खिलाफ सीता सोरेन का मामला कानूनी दायरे में आता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि रिश्वतखोरी को कभी भी अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट के दायरे में नहीं लाया जा सकता।
अपराध भले ही संसद या विधानसभा में दिए गए भाषण या वोटिंग से जुड़ा हो, उसे सदन के बाहर अंजाम दिया जाता है।
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