जेनेरिक दवाएं उन दवाओं को कहा जाता है, जिनका कोई ब्रांड नेम नहीं होता है। इनको सॉल्ट नेम से बेचा और पहचाना जाता है। कई कंपनियां जो जेनेरिक दवाएं बनाती हैं। उन्होंने देश में अपना ब्रांड नेम भी बना लिया है।
इसके बाद भी उनके द्वारा बनाई गई जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती होती हैं। जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं। इन दवाओं के सस्ते होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है
कि इन दवाओं को बनाने में होने वाली रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी को खर्च नहीं करना होता है। दवा बनाने में सबसे ज्यादा पैसा खर्च रिसर्च और डेवलपमेंट में होता है। दवा बनाने के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट पहले ही हो चुका होता है।
ब्रांडेड दवाओं की तरह असरदार होती है जेनरिक दवाएं
जेनरिक दवाईयां बनाने में उन्हीं फार्मूलों और सॉल्ट का उपयोग किया जाता है, जो ब्रांडेड कंपनियां पहले ही प्रयोग कर चुकी हैं। इसलिए जेनरिक दवाईयों का ब्रांड नेम वाली दवाईयों के समान ही जोखिम और लाभ हैं।
सभी सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के लिए एक कठोर समीक्षा के बाद ही जेनेरिक दवाओं को मंजूरी दी जाती है। इसलिए जेनरिक दवा भी मनुष्य के शरीर पर पेटेंटे दवा के समान ही असर करेगी।
यदि जेनरिक दवाओं को ब्रांड नेम वाली दवाओं के समान रूप से, समान डोज और सावधानी पूर्वक लिया जाता है तो इसका असर भी वैसा ही होगा, जैसे ब्रांड नेम वाली दवाई करेगी। जेनरिक दवाईयां, पेटेंट उत्पाद के समान गुणवत्ता और विनिर्माण के उच्च मानकों को भी पूरा करती हैं। यह मानक सभी जेनेरिक दवाओं पर लागू होता है।
जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं में ये होता है अंतर
कंपनियां बीमारियों के इलाज के लिए शोध करती हैं और उसके आधार पर सॉल्टय बनाती हैं. जिसे गोली, कैप्सूाल या दूसरी दवाइयों के रूप में स्टोर कर लिया जाता है. एक ही सॉल्टन को अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग नाम से तैयार करती हैं और अलग-अलग कीमत पर बेचती हैं.
साल्ट का जेनेरिक नाम एक विशेष समिति तय करती है. पूरी दुनिया में सॉल्टी का जेनेरिक नाम एक ही होता है. एक ही सॉल्ट की ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा की कीमत में 5 से 10 गुना का अंतर हो सकता है. कई बार तो इनकी कीमतों में 90 फीसदी तक का भी फर्क होता है
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