दुमका। : झारखंड के दुमका में बीते 130 सालों से भी अधिक समय से लगने वाला राजकीय हिजला मेला शुक्रवार (24 फरवरी) से शुरू हो गया। मेले के आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य की जनता को शुभकामनाएं दी हैं।
उन्होंने कहा है कि स्थानीय संस्कृति, इतिहास और सभ्यता को जीवंत करनेवाले इस मेले की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। हिजला मेले के संबंध में यह आम धारणा है कि नेता हों या अधिकारी वे इस मेले के उद्घाटन से बचते हैं।
इस मेले के उद्घाटन के बाद कई नेताओं की कुर्सी हाथ से निकल जाने के बाद मेले को लेकर कई तरह की भ्रांतियां बन गयीं और इस वजह से नेता हों या अधिकारी इसके उद्घाटन से बचते हैं। अब इस मेले का उद्घाटन गांव के प्रधान करते हैं।
तीन मार्च तक चलेगा मेला
दुमका के मयूराक्षी नदी के तट पर और हिजला पहाड़ी की ढलान पर लगनेवाला यह मेला तीन मार्च तक चलेगा। संताल परगना के तत्कालीन अंग्रेज उपायुक्त जॉन राबर्ट्स कॉस्टेयर्स के समय 3 फरवरी 1890 को इस मेले की नींव रखी गयी थी।
स्थानीय रीति-रिवाज और परंपरा के साथ लोगों के साथ सीधा संवाद स्थापित करने के मकसद से मेले की नींव रखी गयी थी। वर्ष 1975 में संताल परगना के तत्कालीन उपायुक्त गोविंद रामचंद्र पटवर्द्धन की पहल पर हिजला मेले के आगे जनजातीय शब्द जोड़ दिया गया।
वर्ष 2008 में झारखंड सरकार ने इस मेले को महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया और वर्ष 2015 में इसे राजकीय मेले का दर्जा दिया गया। इसके बाद यह मेला राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के रूप में जाना जाता है।
मेले में दिखती है साझी विरासत की झलक
हिजला मेले में साझी विरासत की झलक दिखायी देती है। आम तौर पर माघ फागुन के शुक्ल पक्ष में मनाये जानेवाले इस मेले में बड़ी संख्या में ग्रामीण हिस्सा लेते हैं। मेला न केवल जनजातीय समुदाय बल्कि गैर जनजातीय समुदायों की भी साझी विरासत का दर्शन कराता है।
त्रिकूट पर्वत से निकलनेवाली मयूराक्षी नदी तथा पहाड़-पर्वतों के बीच इस मेले का आयोजन इसे अनूठा सौंदर्य प्रदान करता है। यह मेला विविधता से परिपूर्ण है। मेले में खेल-कूद प्रतियोगिताओं के साथ खानपान और मनोरंजन से संबंधित कई तरह की दुकानें लगायी जाती हैं।
मेले में सरकार की विविध योजनाओं से लोगों को रुबरु कराने के लिए विभिन्न विभागों की ओर से कई तरह के स्टॉल लगाये जाते हैं। इसके अलावा यहां नृत्य संगीत की कई प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।