परीक्षा के चक्कर में बेरोजगारों के 40-45 करोड़ स्वाहा
पटना। बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए अपर मुख्य सचिव केके पाठक द्वारा किये जा रहे प्रयोग झमेले में फंस रहे हैं।
चाहे शिक्षक नियुक्ति का मामला हो या नियोजित शिक्षकों की सक्षमता परीक्षा पास करने का। हर जगह गड़बड़ी निकल आती है।
उच्च शिक्षा को लेकर केके पाठक की चिंता भी बेमानी साबित हो रही है। समस्या के समाधान में उनका अहं आड़े आ रहा है।
शिक्षक नियुक्ति के तीसरे चरण का पर्चा लीक हो गया। सक्षमता परीक्षा के आंसर का गलत प्रकाशन हो गया।
निगरानी ने जिन नियोजित शिक्षकों के कागजात जांचे और लगभग दो हजार के कागजात में फर्जीवाड़ा पकड़ा, उनमें अब भी करीब 800 शिक्षक नौकरी कर रहे हैं।
सरकारी खजाने से पैसा उठा रहे हैं। राज्यपाल की मनाही के बावजूद केके पाठक विश्विद्यालयों के वीसी, प्रो वीसी और परीक्षा नियंत्रकों की बैठक पर आमादा हैं।
जबकि इसी मुद्दे पर राजभवन द्वारा बुलाई बैठक में जाना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा।
बिहार में तीसरे चरण की शिक्षक भर्ती का विज्ञापन निकला। चार लाख 63 हजार अभ्यर्थियों ने लगभग 87 हजार पदों के लिए आवेदन आये।
परीक्षा से पहले ही प्रश्नपत्र लीक हो गया। इस संदर्भ में साल्वर गैंग के लोगों समेत करीब 300 अभ्यर्थी भी गिरफ्तार किए गए।
अभ्यर्थियों से पूछताछ में पता चला कि उनसे साल्वर गैंग ने 10-10 लाख रुपए वसूले थे। झारखंड में यह गिरोह रंगे हाथ पकड़ा गया।
इसके बावजूद परीक्षा 15 मार्च को हुई। पांच-छह दिनों की पड़ताल के बाद परीक्षा का आयोजन करने वाली बिहार लोक सेवा आयोग को भरोसा हुआ कि पेपर सच में लीक हो गया है। फिर परीक्षा रद्द करने की घोषणा हुई।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद शिक्षा विभाग ने प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक नियुक्ति के लिए बीएड डिग्रीधारी अभ्यर्थियों से आवेदन आमंत्रित किए।
उनकी परीक्षाएं भी ली गईं। आखिरकार विभाग ने उन अभ्यर्थियों के रिजल्ट प्रकाशित ही नहीं किए।
शिक्षा विभाग में बैठे केके पाठक जैसे अधिकारियों को उन लाखों बेरोजगार युवकों की परेशानी का तनिक भी एहसास नहीं हुआ।
कैसे परीक्षार्थियों ने रात-रात भर स्टेशन के प्लेटफार्म पर समय गुजारे और भूखे-प्यासे रह कर परीक्षाएं दीं।
बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित उस परीक्षा में बीएड अभ्यर्थियों का रिजल्ट रोक दिया गया।
3.90 लाख बीएड अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी थी। अगर तीसरे चरण की रद्द परीक्षा के अभ्यर्थियों और बीएड डिग्रीधारी अभ्यर्थियों की संख्या जोड़ दी जाए तो आठ-नौ लाख परीक्षार्थी होते हैं।
अगर एक का परीक्षा के नाम पर सिर्फ यात्रा और भोजन-पानी पर 500 रुपए का खर्च भी मानें तो यह रकम 40-45 करोड़ होती है।
बिना किसी अपराध के बेरोजगार युवकों के समय, श्रम और अर्थ के अपव्यय का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है।
केके पाठक की पहल पर ही नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए सक्षमता परीक्षा आयोजित की जा रही है।
नियोजित शिक्षकों के लिए निर्धारित तीन आनलाइन और दो आफलाइन परीक्षाओं में किसी एक को पास करना जरूरी है।
पहले चरण की परीक्षा के लिए 2.32 लाख नियोजित शिक्षकों ने आवेदन किए और परीक्षाएं दीं। जिस एजेंसी के माध्यम परीक्षा संचालित कराई गई, उसने गलत आंसर की अपलोड कर दी।
अगर गलत आंसर की से किसी शिक्षक ने सदमे से दम तोड़ दिया होता, तब क्या होता। इसकी जवाबदेही किसकी होती।
हालांकि अब संशोधित आंसर की अपलोड कर दी गई है। परीक्षा समिति ने संबंधित एजेंसी से इस बाबत स्पष्टीकरण भी मांगा है।
केके पाठक की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर अब तक सवाल नहीं उठा। पर उनकी एक कमजोरी से उनकी किरकिरी भी खूब होती रही है।
अव्वल तो वे बिना सोचे-समझे कई बार ऐसे फरमान जारी कर देते हैं, जिन्हें उनको वापस भी लेना पड़ता है।
केके पाठक को इस बात से बेहद तकलीफ है कि बिहार के कालेजों में पढ़ने वाले छात्रों की परीक्षाएं समय पर नहीं होतीं।
परिणाम भी समय पर जारी नहीं होते। इसके लिए वे विश्वाविद्यालयों के अधिकारियों के साथ बैठ कर एकैडमिक कैलेंडर बनाने पर चर्चा करना चाहते हैं।
लगातार तीन बैठकें उन्होंने इस बाबत बुलाईं, लेकिन राज्यपाल ने वीसी को मना कर दिया। राजभवन का तर्क था कि चांसलर होने के नाते यह अधिकार सिर्फ उनका है।
बहरहाल बीच का रास्ता निकालने के लिए राज्यपाल ने 20 मार्च को विश्वविद्यालय अधिकारियों की बैठक बुलाई तो केके पाठक भी शामिल होने को कहा गया। वे नहीं गए।
बैठक में जो समस्याएं सामने आईं, उनमें बैंक खातों के संचालन पर शिक्षा विभाग द्वारा रोक लगाने की बात प्रमुख थी। इससे शिक्षकों के वेतन और दूसरे खर्च में परेशानी हो रही है।
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