रांची। झारखंड का दूसरा और तीसरा ग्राम न्यायालय रांची जिले के मांडर ब्लॉक और जमशेदपुर के बहरागोड़ा में खुल गया है। राज्य का पहला ग्राम न्यायालय कोडरमा जिले के तिलैया में 27 फरवरी 2016 को शुरू हुआ था।
मांडर में राज्य के दूसरे ग्राम न्यायालय का उद्घाटन चीफ जस्टिस विद्युत रंजन षाड़ंगी ने किया। वहीं बहरागोड़ा में तीसरे ग्राम न्यायालय का उद्घाटन झालसा के कार्यपालक अध्यक्ष जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद ने बीते रविवार को किया। इस प्रकार राज्य में अब 3 ग्राम न्यायालय हो गये हैं। प्रदेश में इस तरह के छह ग्राम न्यायालय खोले जाने है।
क्या है ग्राम न्यायालय
ग्राम न्यायालय में 25 हजार रुपये तक के दीवानी मामले और छोटे-मोटे समन ट्रायल जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई होती है। ग्राम न्यायालय की शुरुआत होने के बाद मांडर प्रखंड के 19 पंचायतों के उक्त मामलों की सुनवाई होगी।
ग्राम न्यायालय के पीछे यह सोच है कि दूर दराज के ग्रामीणों को छोटे मामलों की सुनवाई के लिए सिविल कोर्ट न आना पड़े। ग्राम न्यायालय खोलने का मकसद लोगों को स्थानीय स्तर पर ही न्याय दिलाने का है। इससे बड़ी अदालतों का बोझ भी कम होगा।
इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 2008 में इससे जुड़ा कानून पारित किया था। ये अदालतें पंचायती राज व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करतीं। कई पंचायतों को मिला कर किसी एक ब्लाक में ग्राम न्यायालय खोले जाते हैं, ताकि ग्रामीणों को शहर का चक्कर न लगाना पड़े और मामलों का त्वरित निष्पादन हो।
ग्राम न्यायालयों में मिलने वाली सुविधाएं कम नही
मांडर में खुलने वाले ग्राम न्यायालय की इमारत पिछले दो साल से उद्घाटन का इंतजार कर रही थी। मांडर और बहगरागोड़ा में ग्राम न्यायालय खुल जाने के बाद से पुलिस अधिकारियों को भी राहत मिली है। उन्हें दूर-दूराज के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। इससे उनको काम करने में भी सुविधा होगी।
मजिस्ट्रेट की अदालत लगेगी
इस ग्राम न्यायालय में सभी तरह के मुकदमों की सुनवाई होगी। इस न्यायालय में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत लगेगी। इसके अलावा महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग हाजत, नजारत, अभिलेख कक्ष, मध्यस्थता कक्ष भी बनाया गया है। पैरा-लीगल वालंटियर्स के लिए भी अलग से कमरा बना है।
संसद ने बनाया है कानून
लोगों को उनके घर के पास ही न्याय उपलब्ध कराने के लिए विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट में ग्राम न्यायालयों की स्थापना की सिफारिश की थी। संसद ने ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 को 22 दिसंबर 2008 को पारित किया था। इसके तहत राज्यों को अपने यहां ग्रामीण न्यायालय गठित करने थे। यह कानून दो अक्टूबर 2009 को लागू किया गया था।
इसे नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और संविधान की छठवीं अनुसूची के पार्ट एक, दो, दो बी और तीन में दिए असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातिय इलाकों को छोड़कर पूरे देश में लागू किया जाना था।
इन ग्राम न्यायालयों को ग्राम पंचायत स्तर पर या कई ग्राम पंचायतों के स्तर पर स्थापित किया जाना है। न्यायधीश इन ग्राम न्यायालय में जाकर सुनवाई करेंगे और फैसला सुनाएंगे। ये ग्राम न्यायालय आपराधिक मामलों, दीवानी मुकदमों, दावों या विवादों की सुनवाई करेंगे।
ये मामले इस कानून की पहली अनुसूची और दूसरी अनुसूची में दिए गए हैं। इन अदालतों में विवादों का निपटारा जहां तक संभव हो पक्षों के बीच आपसी सहमति से होगा।
सबसे ज्यादा ग्राम न्यायालय मध्य प्रदेश में काम कर रहे
एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अधिक 113 ग्राम न्यायालय उत्तर प्रदेश में खोले गए हैं, लेकिन इनमें से केवल 92 ही काम कर रहे हैं। इस मामले में सबसे आगे मध्य प्रदेश है। वहां 89 ग्राम न्यायालय खोले गए हैं और सभी काम भी कर रहे हैं।
भारत सरकार के कानून मंत्रालय की बेवसाइट के मुताबिक देश में अबतक 481 ग्राम न्यायालय खोले गए हैं, लेकिन अभी केवल 309 ग्राम न्यायालय की काम कर रहे हैं। इन न्यायालयों की स्थापना पर अबतक 83.40 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
आम अदालतों से पीछे नही
न्याय देने के मामले में ये ग्राम न्यायालय आम अदालत से पीछे नहीं हैं। इन न्यायालयों में हजारों की संख्या में मामले लंबित हैं।
उत्तर प्रदेश के ग्राम न्यायालयों में 37773 मामले दर्ज हुए। इनमें से केवल 1691 मामलों का निपटारा हुआ। यूपी के ग्राम न्यायालयों में अभी भी 36082 अभी भी लंबित हैं। वहीं हरियाणा में 570 मामले दर्ज हुए और सभी के सभी मामले लंबित हैं।
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