Recruitment scam in Jharkhand:
रांची। झारखंड के विश्वविद्यालयों में भी नियुक्ति घोटाले का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। यहां बात नियुक्ति में गड़बड़ी तक ही नहीं रूकी, बल्कि नियम विरुद्ध प्रोन्नति के भी मामले सामने आये हैं। गड़बड़ी ऐसी कि नियमों का उल्लंधन कर प्रोफेसर, रजिस्ट्रार और एग्जाम कंट्रोलर तक बना दिये गये।
डेमोंस्ट्रेटर के प्रमोशन में भी बड़ी गड़बड़ी हुई है। प्रयोगशाला तक सीमित रहने वाले डेमोंस्ट्रेटर विश्वविद्यालयों असिस्टेंट प्रोफेसर ही नहीं, एसोसिएट प्रोफेसर तक बन गए। प्रमोशन के आधार पर उन्हें एचओडी और विश्वविद्यालय अधिकारी की कुर्सी तक मिल गई। मामला खुला तो उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग की मॉनिटरिंग में हाईलेवल कमेटी ने मामले की जांच शुरू की। इसमें कई विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार भी हैं। कमेटी की दो बैठकें हो चुकी हैं। जांच में कई गड़बड़ियां सामने आई हैं। इस क्रम में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
अनुकंपा के आधार नियुक्त कर्मी रजिस्ट्रार और कंट्रोल तक बन गयेः
जांच में पता चला कि अनुकंपा के आधार पर विश्वविद्यालय में रूटीन क्लर्क के पद पर नियुक्ति हुई और प्रमोशन पाकर पहले डेमोंस्ट्रेटर और अब यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बन गए। जबकि नियमानुसार अनुकंपा के आधार पर नियुक्त नॉन टीचिंग स्टाफ किसी भी स्थिति में यूनिवर्सिटी शिक्षक नहीं बन सकता। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें नियुक्ति के समय अभ्यर्थी के पास पीजी की डिग्री ही नहीं थी। अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि जब नियुक्ति के समय पीजी की डिग्री ही नहीं थी, तो कोई असिस्टेंट प्रोफेसर कैसे बन सकता है।
सभी यूनिवर्सिटी में गड़बड़ीः
जिन विश्वविद्यालयों में डिमोंस्ट्रेटर को प्रमोशन दिया गया है, उनमें रांची यूनिवर्सिटी, विनोबा भावे यूनिवर्सिटी हजारीबाग, कोल्हान यूनिवर्सिटी, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी धनबाद, नीलांबर-पीतांबर यूनिवर्सिटी डालटनगंज, सिदो-कान्हू यूनिवर्सिटी दुमका और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी रांची शामिल हैं। इन विश्वविद्यालयों में 100 से अधिक डिमोंस्ट्रेटर हैं, जिनके प्रमोशन की जांच चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चल रही है जांचः
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग ने डेमोंस्ट्रेटर से प्रमोशन पाकर शिक्षक बने लोगों के डिमोशन का आधार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि डेमोंस्ट्रेटर को शिक्षक नहीं बनाया जा सकता। इस फैसले के आधार पर वर्ष 2011 में नियमों में संशोधन कर दिया गया। इसके बाद भी नियम की अनदेखी कर प्रमोशन दिया गया है।
अनुकंपा पर नियुक्त क्लर्क भी बने शिक्षकः
जांच के क्रम में ऐसे भी मामले आए हैं, जिसमें अभ्यर्थी की नियुक्ति विश्वविद्यालय में अनुकंपा के आधार पर रुटीन क्लर्क के पद पर हुई थी। कमेटी के एक सदस्य बताते हैं कि रुटीन क्लर्क प्रमोशन के माध्यम से किसी भी स्थिति में यूनिवर्सिटी शिक्षक नहीं बन सकता है।
विवि शिक्षक के लिए पीजी डिग्री जरूरीः
जांच के क्रम के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें नियुक्ति के समय संबंधित अभ्यर्थी के पास पीजी की डिग्री नहीं थी। जबकि लेक्चर या असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए पीजी की डिग्री जरूरी है। बाद में पीजी की डिग्री हासिल कर उसके आधार पर प्रमोशन लेने में सफल रहे थे।
इन सभी की नियुक्ति लैब टेक्निशयन पद पर हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर 1993 में इस पद को डेमोंस्ट्रेटर नाम दिया गया। तब से ये डेमोंस्ट्रेटर के नाम से जाने जाते हैं। कमेटी के एक सदस्य बताते हैं कि गलत ढंग से प्रमोशन मिलने के कारण राजकोष के करोड़ों रुपए का आर्थिक बोझ बढ़ गया है।
इसे भी पढ़ें
Hazaribagh land scam: एसीबी के बुलावे पर भी नहीं आ रही विनय सिंह की पत्नी, फिर नोटिस



