रांची: हिमाचल प्रदेश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह अपने कर्मचारियों व पेंशनभोगियों को सैलरी और पेंशन दे सके।
यही कारण है कि पहली बार महीने की एक तारीख को सैलरी और पेंशन नहीं मिला। मतलब स्थिति गंभीर है।
सरकार अब अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए केंद्रीय अनुदान का इंतजार कर रही है, जो महीने की 6-7 तारीख को मिलेगा।
प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इसके लिए मुफ्त की रेवड़ियां यानी फ्रीबिज को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
उन्होने कहा कि केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के तौर पर 520 करोड़ रुपये 6 तारीख और केंद्रीय करों में 740 करोड़ रुपये का हिस्सा 10 तारीख को प्राप्त होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कर्मचारियों को पहली तारीख को वेतन व पेंशन देने के लिए सरकार को बाजार से लगभग 7.5% की दर से अग्रिम ऋण उठाना पड़ता है।
इससे अनावश्यक तौर पर ब्याज का बोझ बढ़ता है और सरकार को हर महीने तीन करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ता है। उन्होंने कहा कि असल सच पर्दे के पीछे है।
आखिर हमारे प्रदेश की यह दुर्दशा कैसे हुई। इसका जवाब है मुफ्त की रेवड़ियां, जिसे फ्रीबीज कहते हैं।
दरअसल, पिछले कुछ सालों में हिमाचल सरकार ने जमकर फ्रीबीज बांटी हैं। चाहे भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की। हिमाचल में 2022 के अंत में विधानसभा चुनाव हुए। उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी।
चुनाव से पहले सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में 125 यूनिट मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी की आपूर्ति की घोषणा की। हालांकि भाजपा चुनाव हार गई।
अब 2024 में हिमाचल की आर्थिक तंगी का कारण मौजूदा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भाजपा की उन रेवड़ियों को बता रहे हैं।
सुक्खू ने कहा कि नवंबर 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, भाजपा सरकार ने पूरे राज्य में सभी के लिए बिजली मुफ्त कर दी थी, जिसमें करदाता भी शामिल थे।
महिलाओं को 3,000 राज्य परिवहन की बसों में मुफ्त यात्रा दी गई। हिमाचल के मुख्यमंत्री अब तमाम मुफ्त की रेवड़ियों को बंद करने की बात कह रहे हैं।
हालांकि कांग्रेस ने भी वहां चुनावों से पहले ऐसे ही कुछ वादे किए थे, जैसे पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को फिर से लागू करने, महिलाओं को ₹1,500 देने और मुफ्त बिजली आदि।
पहले से मिल रही फ्रीबिज के बाद इन घोषणाओं को पूरा करने के चक्कर में प्रदेश पर वित्तीय भार बढ़ा और नतीजा सामने है।
वर्तमान में हिमाचल प्रदेश पर ₹86,589 करोड़ का कर्ज है। राज्य सरकार ने पांच चुनावी वादे पूरे किए हैं, जिसमें महिलाओं के लिए ₹1,500 मासिक भत्ता शामिल है, जिसका सालाना खर्च लगभग ₹800 करोड़ है।
वहीं ओपीएस बहाल करने से सरकार के खजाने पर सालाना ₹1,000 करोड़ का भार बढ़ा है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री इसके लिए पूर्ववर्ती सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं।
दिलचस्प बात है कि मुफ्त की रेवड़ियां केवल हिमाचल तक सीमित नहीं हैं, ये दिल्ली और झारखंड में भी खूब बंट रही हैं। इस चुनावी साल में झारखंड में भी खूब रेवड़ियां बंट रही हैं।
झारखंड सरकार भी हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर मुफ्त की योजनाओं की सौगात बांट रही है। झारखंड में भी राज्य सरकार 200 यूनिट बिजली मुफ्त दे रही है। किसानों के दो लाख रुपये तक के ऋण को माफ किया जा रहा है।
अब चुनाव से पहले सरकार मंईयां सम्मान योजना ले आई है। इसके तहत राज्य की 21 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं को हर माह ₹1,000 दिए जा रहे हैं।
इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो अब 18 साल की युवतियों को भी प्रतिमाह 1000 रुपये देने की घोषणा कर दी है। इस योजना से सरकार के खजाने पर सालाना 6000 करोड़ का बोझ बढ़ने जा रहा है।
हिमाचल में भी इसी तरह चुनाव से पहले मुफ्त की रेवड़ियां बांटी गई थीं, जिसका असर अब दो साल बाद दिखाई दे रहा है। झारखंड कोई धनी प्रदेश नहीं है।
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इन फ्रीबिज योजनाओं से गरीबों को तात्कालिक लाभ भले ही मिल जाये, पर उनकी गरीबी दूर नहीं होनेवाली।
बताते चलें कि झारखंड सरकार की मंईयां सम्मान योजना पर रोक लगाने के लिए झारखंड हाईकोर्ट में पीआईएल दायर हो चुका है।
इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार किसी व्यक्ति विशेष को उसके खाते में डायरेक्ट पैसे नहीं दे सकती। इ
समें सुप्रीम कोर्ट के उक्त टिप्पणी का हवाला दिया गया है, जिसमें फ्रीबिज को किसी भी राज्य के लिए नुकसानदेह बताया गया है।
इसे भी पढ़ें
मुफ्त राशन योजना का विस्तार करने संबंधी सरकार का कदम आर्थिक संकट का संकेत: जयराम रमेश