रांची। पड़ताल के इस एपिसोड में हम राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की परत उधेड़ेंगे। आपको बतायेंगे कि कैसे पिछले पांच सालों मे राज्य की चिकित्सा व्यवस्था बेपटरी हो गई है। आपको यह जानकर ताज्जूब होगा कि पिछले पांच साल में झारखंड में करीब साढ़े चार हजार व्यक्ति पर एक डाक्टर उपलब्ध है।
और इस पर भी मजेदार बात है कि पिछले पांच साल में महज 150 डाक्टरों की ही नियुक्ति हो सकी है। ये आंकड़े चौंकाते तो हैं ही, शर्मनाक भी हैं। आइए आपको बताते हैं कि राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल कैसे हो गया बेहाल।
झारखंड में चिकित्सकों की कमी, 4746 लोगों पर 1 डॉक्टर
हर साल 70 हजार लोग सर्जरी के लिए जा रहे बाहर
झारखंड में स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी है। वर्तमान सरकार ने 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने का वादा किया था। पद सृजित कर स्वास्थ्य कर्मियों की स्थाई नियुक्ति का भरोसा दिया था।
लेकिन, 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी। अगर रजिस्टर्ड डॉक्टरों की संख्या के हिसाब से देखें तो औसतन 4,746 लोगों के लिए झारखंड में मात्र एक डॉक्टर उपलब्ध है। इसलिए राज्य से हर साल 70 हजार लोग सर्जरी के लिए दूसरे राज्यों के अस्पतालों में जाते हैं।
5 साल मे मात्र 150 डाक्टर बढ़ेः
वर्ष 2019 में जहां राज्य के सरकारी अस्पतालों में स्थाई चिकित्सकों की संख्या 1450 के करीब थी, अब भी मात्र 1600 के करीब चिकित्सक ही कार्यरत हैं। जबकि, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए 3691 पद सृजित हैं।
स्पेशलिस्ट के 80 और सामान्य डाक्टर के 55 प्रतिशत पद रिक्तः
यही नहीं, स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1021 पद भी सृजित हैं और कार्यरत स्पेशलिस्ट की संख्या महज 195 के करीब हैं।
यानी अब भी राज्य में स्पेशलिस्ट के 80% और सामान्य चिकित्सकों के करीब 55% पद रिक्त पड़े हैं। सरकार ने पिछले 5 सालों में चिकित्सकों के करीब 800 पदों पर नियुक्ति की, इसमें भी 75% से ज्यादा चिकित्सकों की नियुक्ति अनुबंध पर की गई है।
डब्ल्यूएचओ नॉर्म्स के अनुसार, प्रति एक हजार आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए। यानी राज्य की 3.50 करोड़ आबादी पर 35000 चिकित्सक होने चाहिए। जबकि, नेशनल मेडिकल कमीशन के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल निबंधित चिकित्सकों की संख्या केवल 7374 है। मतलब जरूरत के हिसाब से अब भी राज्य में 27500 के करीब डाक्टर कम हैं।
इन पदों पर प्रक्रिया पूरी नहीं हुईः
मार्च 2022 में 3965 पद सृजित करने के बाद 1980 एएनएम, 135 पीएचसी डॉक्टर्स व करीब 1980 पारामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गए थे। लेकिन, प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई।
रिम्स में मार्च 2024 में प्रोफेसर, एडिशनल प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और मेडिकल ऑफिसर के 156 पदों पर रिक्तियां निकाली गई थीं। लेकिन प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगा दी गई है।
नर्सिंग स्टाफ की भी कमीः
चिकित्सक ही नहीं, राज्य में नर्सिंग स्टाफ की भी भारी कमी है। वर्तमान में 500 बेड के अस्पताल में 120 के करीब नर्सें कार्यरत हैं। जबकि, 200 नर्स होने चाहिए इसमें भी 50% से ज्यादा नर्सें अनुबंध पर हैं। रिम्स की बात करें तो यहां 25 मरीज पर केवल एक नर्स कार्यरत है।
कुछ और शर्मनाक आंकड़ेः
• झारखंड में करीब साढ़े चार हजार लोगों पर मात्र एक डाक्टर उपलब्ध है।
• झारखंड से 70 हजार लोग हर साल सर्जरी के लिए बाहर जाते हैं।
• झारखंड से हर साल करीब 30 हजार मरीज वेल्लोर जाते हैं।
• करीब 21400 के मरीज हर साल एम्स दिल्ली जाते हैं।
• करीब 13 हजार मरीज हर साल दिल्ली के 4 प्राइवेट अस्पतालों में जाते हैं।
• करीब 9 हजार मरीज हर साल पश्चिम बंगाल और दक्षिण के राज्यों में जाते है।
ये आंकड़े दैनिक भास्कर ग्रुप ने देश के टॉप अस्पतालों से जुटाए हैं। इस समूह ने देश के 11 बड़े अस्पतालों से झारखंड से पहुंचनेवाले मरीजों के आंकड़े मंगावाएं।
नहीं मिल रही सुविधाएं, डाक्टर हो रहे दूरः
राज्य सरकार डाक्टरों के लिए सुविधाएं नहीं बढ़ा रही है, जिसके कारण डाक्टर सरकारी अस्पतालों से दूर हो रहे हैं।
यही कारण है कि 771 पद के लिए बहाली के इंटरव्यू में मात्र 266 डॉक्टर पहुंचे थे।
जेपीएससी द्वारा सितंबर 2023 में गैर शैक्षणिक विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए आयोजित इंटरव्यू में बेहद कम संख्या में उम्मीदवार पहुंचे थे। नॉन टीचिंग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 771 पदों के लिए इंटरव्यू लिया गया।
इसमें मात्र 266 उम्मीदवार ही शामिल हुए थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्य में चिकित्सकों के लिए बने सेवा नियम दूसरे राज्यों की तुलना में काफी अलग हैं। झारखंड का वेतनमान भी दूसरे राज्यों की तुलना में कम है।
इसके अलावा राज्य में प्रमोशन स्कीम के तहत अर्हता रखने वालों को भी समय पर प्रोन्नति नहीं दी जाती। इन कारणों से भी चिकित्सक झारखंड में सेवा देने से कतराते हैं।
हालात यह है कि 3691 पद सामान्य सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए हैं, पर कार्यरत मात्र 1600 डाक्टर।
इसमें भी मात्र 195 स्पेशलिस्ट ही सरकारी अस्पतालों में कार्यरत हैं।
इन आंकड़ों पर गौर किया जाये, तो साफ है कि पिछले पांच साल में मात्र 150 स्थाई डॉक्टरों की ही नियुक्ति की गई है। ऐसी स्थिति में राज्य में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।
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