रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वह कोल्हान टाइगर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उनकी राजनीति की जड़ें झारखंड के आदिवासी समुदाय और राज्य के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से जुड़ी हुई हैं और उन्होंने हमेशा अपने क्षेत्र और आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है।
चंपई सोरेन का राजनीतिक करियर बेहद गौरवमयी रहा है। वे 1991, 1995, 2005, 2009, 2014 और 2019 में सरायकेला विधानसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं, जिससे यह साबित होता है कि उनकी पकड़ अपनी विधानसभा क्षेत्र में मजबूत रही है। हालांकि 2000 में वे बीजेपी के नेता अनंत राम टुडू से हार गए थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने लगातार अपनी राजनीतिक यात्रा जारी रखी।
चंपाई सोरेन के राजनीतिक सफर में एक दिलचस्प मोड़ आया, जब 31 जनवरी 2024 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी गिरफ्तारी के बाद चंपाई सोरेन को राज्य की सत्ता सौपी। फिर जब 5 माह बाद हेमंत सोरेन जेल से बाहर आये। जेल से बाहर आने के बाद वह पुनः विधायक दल के नेता चुने गये और एक बार फिर वह मुख्यमंत्री की गद्दी पर आसीन हुए। पर इस दौरान चंपाई सोरेन को हाशिये पर धकेल दिया गया।
इतना ही नहीं, हेमंत सोरेन सरकार में उन्हें मंत्री बनना पड़ा। जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया। पर जिस तरीके से उन्हें हटाया गया, वह उन्हें कचोटता रहा। फिर कुछ दिनों बाद अपने दिल की भड़ास उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए निकाली।
सोशल मीडिया में उन्होंने एक पत्र लिखकर अपनी पीड़ा बयान की। इसके बाद वह सीधे दिल्ली में बीजेपी के दरबार में पहुंच गये। दो दिनों बाद उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा को अलविदा कह दिया और बीजेपी का दामन थाम लिया। इसके बाद उन्होंने बीजेपी के टिकट पर सरायकेला से विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयी भी रहे।
चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद सबसे मजेदार बात रही उनके विपक्षी गणेश महली। सरायकेला के जेएमएम प्रत्याशी गणेश महली ने वर्ष 2014 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चंपाई सोरेन को कड़ी टक्कर दी थी। 2024 के विधानसभा चुनाव के ठीक तीन दिन पहले गणेश महली फिर जेएमएम में शामिल हुए थे।
चंपाई सोरेन और गणेश महली एक बार फिर से एक-दूसरे के सामने चुनाव मैदान में थे, लेकिन दोनों के दलों की भी अदला बदली हो गई थी। पर इस बार भी रिजल्ट वही रहा। चंपाई सोरेन जीत गये और गणेश महली हार गये। हार का स्वाद तो चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी चखना पड़ा, जो घाटशिला से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे ह थे।
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