लोहरदगा। घर की रसोई में खाना बनाते समय यदि गलती से गर्म तेल का एक छींटा भी शरीर पर पड़ जाए तो महिला हो या पुरुष चीख निकल आती है, जरा सोचिए यदि कोई आपसे कहे कि खौलते गर्म तेल में हाथ डूबोकर आपको पकवान तलना है, तो आप क्या करेंगे। आपका जवाब होगा, कहीं ऐसा होता है क्या। आपको बता दें कि झारखंड के लोहरदगा में ऐसा ही होता है।
लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड के उतका गांव में सरहुल पर्व के मौके पर पाहन-पुजार खौलते तेल में हाथ डालकर पुआ (आटा, गुड़ का बना हुआ मीठा पकवान) तलते हैं। इस पकवान को पूजा-अर्चना के बाद लोगों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह परंपरा कोई साल दो साल या दस साल से नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा को निभाने वाले पूरी आस्था के साथ कहते हैं कि यदि नियम पूर्वक अनुष्ठान किया जाए तो किसी का हाथ जलता ही नहीं। इस अनोखी परंपरा को देखने को लेकर हर साल सरहुल के मौके पर यहां लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
क्या है परंपराः
प्रकृति पर्व सरहुल पर लोहरदगा जिले के कैरो में इस अनूठी परंपरा को देख सकते हैं। यहां पर सरहुल पूजा में जो पकवान अर्पित किया जाता है, वह पाहन-पुजार द्वारा खौलते तेल में हाथ डालकर तैयार किया जाता है। यहां एक गांव है उतका झखरा, जहां इस परंपरा से आप रूबरू हो सकते हैं। गांव के पूर्वजों द्वारा दशकों से इस परंपरा का निर्वहन किया जाता रहा है। गांव के पाहन, पुजार खौलते तेल में नंगे हाथों से पकवान तैयार करते हैं।
जिसे देखने के लिए दूरदराज के क्षेत्र से लोग पहुंचते हैं। पकवान बनाने के बाद झखरा में रीति-रिवाज के साथ पाहन-पुजार द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद सामूहिक रूप से प्रसाद का वितरण लोगों के बीच किया जाता है। ग्रामीणों की इसमें अटूट आस्था है। हर तीन साल में पाहन, पुजार बदल जाते हैं।
इसके बावजूद परंपरा ना कभी बदली है, ना कभी इसे बदलने को लेकर किसी ने विचार किया है। ग्रामीणों का कहना है कि पूजा से 15 दिन पहले से ही गांव के आदिवासी समाज के लोग किसी बाहरी व्यक्ति का छुआ हुआ कोई भी सामान नहीं खाते हैं। मान्यता है कि अनुष्ठान में किसी प्रकार की गलती होने पर खौलते हुए तेल में नंगे हाथों से पकवान बनाना बेहद मुश्किल है।
इस परंपरा को देखने दूर-दूर से आते हैं लोगः
इस अनूठी परंपरा को देखने को लेकर न सिर्फ कैरो, बल्कि दूसरे प्रखंड के लोग भी हजारों की संख्या में पहुंचते हैं। पाहन, पुजार द्वारा सरहुल के मौके पर प्रसाद अर्पित करने को लेकर खौलते हुए गर्म तेल में नंगे हाथों से पुआ (आटा, गुड़ का बना हुआ मिठा पकवान) तैयार किया जाता है। जिसे पूजा-अर्चना के बाद लोगों के बीच वितरित किया जाता है। इस अनुष्ठान को देखने को लेकर कुडू प्रखंड के विभिन्न गांव के अलावे भंडरा प्रखंड, रांची जिला के सीमावर्ती प्रखंड और लोहरदगा जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग पहुंचते हैं।
क्या कहते हैं गांव के पाहनः
गांव के पाहन समेल उरांव का कहना है कि यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। किसी को पता नहीं कि कब से इस प्रकार से खौलते हुए तेल में नंगे हाथों से प्रसाद के लिए पकवान तैयार किया जाता है। सरना मां में सभी की आस्था है। सभी अनुष्ठान नियम पूर्वक होते हैं, जिसकी वजह से खौलते हुए तेल के बावजूद किसी का हाथ नहीं जलता। यह परंपरा सरना स्थल में आदिकाल के समय से चली आ रही है।
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