रांची। अलग राज्य के तौर पर झारखंड भले 15 नवंबर 2000 कोअस्तित्व में आया, लेकिन इसके लिए राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत देश की आजादी के पहले1938-39 में जयपाल सिंह मुंडा नामक करिश्माई नेता की अगुवाई में हो चुकी थी। आज झारखंड अपने इसी नायक को उनकी 121वीं जयंती पर शिद्दत से याद कर रहा है।
झारखंड के खूंटीमें उनके पैतृक गांव टकरा में केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा उनकीस्मृतियों को नमन करने पहुंचे तो रांची स्थित जयपाल सिंह स्टेडियम में झारखंड अलगराज्य के सैकड़ों आंदोलनकारियों ने इकट्ठा होकर उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा के फूलचढ़ाए। जयपाल सिंह मुंडा केवल उस शख्स का नाम नहीं है जिन्होंने अलग झारखंड की आवाजसबसे पहले उठाई थी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी प्रतिभा का डंका बजाने वाले, अंग्रेजी हुकूमत में आईसीएस की सर्वोच्च नौकरी को छोड़ देश को ओलंपिक में पहली बार हॉकी मेंगोल्ड दिलाने वाली टीम के कैप्टन, संविधान सभा के सदस्य, प्रखर वक्त और आजादी केबाद देश की संसद में बतौर सांसद आदिवासियत के प्रबल पैरोकार के रूप में उनकीशख्सियत के कई आयाम हैं।
पूरा झारखंड उन्हें “मरांग गोमके” (महान नेता) के नाम से जानता है। जयपाल सिंह मुंडा काजन्म रांची से लगभग 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के टकरा गांव में हुआ था। इसी गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा के बचपन का नाम प्रमोद पाहन था। रांची के सेंट पॉल स्कूल में पढ़ाई के दौरान अंग्रेज प्रिंसिपल उनकी प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 1918 में अपने साथ इंग्लैंड लेकर चले गये। पहले कैंटरबरी के सेंट ऑगस्टाइन कॉलेज और इसके बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंट जॉन्सकॉलेज 1926 में अर्थशास्त्रमें स्नातक के बाद 1928 में उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया।
जब वे एक वर्ष के लिए आईसीएस की ट्रेनिंग पर इंग्लैंड गये,उसी साल उन्हें ऑक्सफोर्ड हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया। वे हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे, इसलिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें 1925में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ की उपाधि दी। यह उपाधि पाने वाले वे हॉकी के एक मात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ीथे। हॉकी के लिए उनका जुनून ऐसा था कि उन्होंने आईसीएस की नौकरी छोड़ दी थी।
उनकी ही कप्तानी में इंडियन टीमने 96 साल पहले 1928 में एम्सटर्डम में आयोजित ओलंपिक में देश को पहला ओलंपिक गोल्ड दिलाया था। बाद मेंभारत लौटे जयपाल सिंह मुंडा ने कोलकाता में बर्मा शेल ऑयल कंपनी में काम किया। उन्होंने कुछ समय घाना (अफ्रीका) के एक कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में भी काम किया। फिर एक वर्ष के लिए उन्होंने रायपुर के राजकुमार कॉलेज में प्रिंसिपल के रूप में कार्य किया। इसके बाद, कुछ वर्षों तक वेबीकानेर स्टेट के वित्त और विदेश मामलों के मंत्री रहे।
उन दिनों, 1938 में बिहार से झारखंड को अलग करने की मांग में पहली बार उठनी शुरू हुई थी। इस मांग को बिना नेतृत्व वाली आदिवासी महासभा ने रखा था। इस महासभा को असल नेतृत्व 1939 में जयपाल सिंह मुंडा के रूप में मिला। 20 जनवरी 1939 को आदिवासी महासभा ने रांची में विशाल सभा का आयोजन किया और जयपाल सिंह को उसकी अध्यक्षता सौंप दी।
इसके बाद से ही झारखंड अलग राज्य की मांग तेज हो उठा। 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात कर अलग झारखंड राज्य की मांग रखी थी। 1946में जयपाल सिंह बिहार से संविधान सभा के लिए चुने गए थे। यहां पर उन्होंने आदिवासी समुदाय के विकास के लिए आवाज उठाई। जब देश आजाद हुआ, तो 1949 में आदिवासी महासभा को एक राजनीतिक दल – झारखंड पार्टी का स्वरुप दे दिया गया। 1952 के पहले लोकसभाचुनावों में झारखंड पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभर कर सामने आई। पहलेविधानसभा चुनावों में भी इस दल को 32सीटें मिली।
1963 में जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय इस शर्त पर कर दिया था कि कांग्रेस पार्टी अलग झारखंड राज्य का निर्माण करेगी। हालांकि झारखंड अलग राज्य के निर्माण के लिए इसके बाद लंबा आंदोलन चला और आखिरकार 2000 में यह मांग पूरी हुई थी।
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