रांची। इस बार होली पर ग्रहण का संयोग बन रहा है, इस संयोग को खतरनाक बताया जा रहा है। ये खतरनाक संयोग पूरे 100 साल के बाद बना है। इसके साथ ही पूर्णिमा तिथि दो दिन है।
पूर्णिमा तिथि में चंद्र ग्रहण 25 मार्च को लग रहा है। होली चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि में खेलने की परंपरा है। चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि 26 मार्च को है।
अब लोगों के बीच दूविधा की स्थिति बनी हुई है कि आखिर होली का पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा या 26 मार्च को, क्योंकि पंचांग के अनुसार 24 और 25 मार्च को पूर्णिमा है और चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि 26 मार्च को है।
इसके साथ ही 25 को चंद्र ग्रहण लगने का समय सुबह 10 बजकर 24 मिनट से लेकर दोहर 3 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। लोगों में इस बात को लेकर संशय है कि रंग खेलने वाली होली के समय चंद्र ग्रहण के लगने से होली खेली जा सकेगी या नहीं।
काशी और विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार 26 मार्च को होली खेली जाएगी। वहीं कुछ जगहों पर होली 25 मार्च को मनाई जाएगी।
कुछ ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि भारत में चंद्र ग्रहण दिखाई नहीं देगा, जिसके कारण होली पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए होली 25 मार्च को मनाई जाएगी।
वहीं कुछ पंडितों का कहना है कि चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि 26 मार्च को है, इसलिए होली 26 मार्च को मनानी चाहिए।
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि होलिका के अगले दिन होली खेलने का विधान है, इसलिए होली 25 मार्च को मनाई जाएगी। इस बार तिथियों के मदभेद के कारण होली का त्योहार दो दिन लोग मना रहे है।
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 24 मार्च 2024 को सुबह 9 बजकर 54 मिनट पर होगी और अगले दिन यानी 25 मार्च 2024 को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी।
होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में रात के समय करने का विधान है। हालांकि इस दिन भद्रा काल भी लग रहा है, जिसकी वजह से होलिका दहन के समय में कुछ परिवर्तन हुआ है।
इस बार होलिका दहन 24 मार्च को है। इस दिन होलिका दहन का शुभ मुहूर्त देर रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक है। होलिका दहन का समय 1 घंटे 14 मिनट का है।
शस्त्रों में बताया गया है कि भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा का स्वभाव भी शनिदेव की ही तरह कठोर और क्रोधी है, इसलिए भद्रा के स्वभाव को काबू में करने के लिए ब्रह्माजी ने उन्हें काल गणना या पंचांग के प्रमुख अंग विष्टि करण में जगह दी है।
इसलिए जब भी भद्र काल लगता है तो उस समय धार्मिक और मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं।
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है। अगर भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो, लेकिन भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष काल के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिए।
लेकिन भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है।
लेकिन कभी भी भद्रा मुख में होलिका दहन नहीं करना चाहिए। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया गया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा माना जाता है।
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