सहेबगंज। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस चुनाव में सिर्फ एक सीट पर लड़ रहे हैं, वह है बरहेट। जबकि 2014 और 2019 में उन्होंने बरहेट के साथ-साथ दुमका से भी चुनाव लड़ा था।
उन्हें बरहेट की जनता पर इतना भरोसा है कि इस बार सिर्फ बरहेट से ही वह लड़ रहे हैं। देखा जाये, तो यहां से उनकी जीत तय मानी जा रही है, पर इस बार हेमलाल मुर्मू की झारखंड मुक्ति मोर्चा में वापसी से उनकी जीत का अंतर बढ़ने की उम्मीद की जा रही है।
यह अलग बात है कि बीजेपी में रहकर हेमलाल मुर्मू इस क्षेत्र में कोई खास कमाल नहीं दिखा सके, पर यहां उनकी पकड़ से कीई इनकार नहीं कर सकता।
साहेबगंज जिले में बरहेट विधानसभा क्षेत्र भी अजजा के लिए सुरक्षित सीट है। जिसे झामुमो का अभेद किला समझा जाता रहा है। वर्ष 1990 से इस सीट पर झामुमो का कब्जा है। हालांकि समय समय पर इस क्षेत्र से झामुमो के प्रत्याशी बदलते रहे हैं।
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पार्टी के टिकट पर हैट्रिक लगाने के लिए तीसरी बार यहां से अपने भाग्य की आजमाइश कर रहे हैं। हेमंत सोरेन वर्ष 2014 में दुमका और बरहेट दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़े थे।
उस चुनाव में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहते दुमका से हार गये। लेकिन बरहेट से चुनाव जीत गए और राज्य के प्रतिपक्ष के नेता के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास सरकार को पांच साल तक सदन से लेकर सड़क तक जनता के मुद्दों पर घेरते रहे।
2019 में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका से अपने भाग्य की आजमाइश की और दोनों सीट से निर्वाचित घोषित किये गये। यूपीए के सर्वमान्य नेता के रूप में उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया। इसके बाद उन्होंने दुमका सीट से त्यागपत्र दे दिया और सिर्फ बरहेट के विधायक के रूप में विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते रहे।
पिछले चुनाव में भाजपा ने झामुमो के हेमंत सोरेन के खिलाफ आदिम जनजाति पहाड़ियां समुदाय से आने वाले सिमन मालतो को मैदाने जंग में उतारा था।
इसके पहले 2014 में हेमंत सोरेन ने कभी उनकी पार्टी के सिरमौर विधायक रहे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हेमलाल मुर्मू को हरा कर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था।
इस बार भाजपा ने संताल हूल के नायक सिदो-कान्हू चांद भैरव की ऐतिहासिक धरती बरहेट में हेमंत सोरेन के खिलाफ खेल के मैदान में करतब दिखाने वाले नये खिलाड़ी गैमेलियल हेम्ब्रम पर भरोसा जताया है और कोमल कमल फूल से तीर कमान पर हमला करने का प्रयास किया है।
इस सीट पर झामुमो के सामने बीजेपी है और कोई तीसरा नहीं है। आदिवासी बहुल इस सीट पर कोई चमत्कार होगा, यह कहना मुश्किल है।
बदले राजनीतिक हालात में इस क्षेत्र के कभी विधायक रहे और इस क्षेत्र के मतदाताओं में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले हेमलाल मुर्मू करीब एक दशक के बाद फिर से झामुमो में शामिल हो गए हैं।
इस वजह से इस क्षेत्र से झामुमो के प्रत्याशी हेमंत सोरेन पिछले वोटों का अंतर बढ़ाने में कितना सफल होते हैं यह तो 23 नवम्बर को ही पता चल पायेगा।
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