नई दिल्ली, एजेंसियां। देश में कई शहरों में बीते कुछ दिनों से हीट वेव की स्थिति बनी हुई है। इस बार हीटवेव के दिन भी अधिक हैं। एक रिसर्च में दावा किया गया है कि लगातार हीट वेव बनी रहने से जान का खतरा बढ़ जाता है।
स्वीडन के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंटल मेडिसिन, नई दिल्ली के सेंटर फॉर क्रॉनिक डिसीज कंट्रोल, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की रिसर्च के मुताबिक, हीट वेव लगातार 2 दिन से अधिक समय तक बनी रहती है, तो मौतों में 14.7% तक का इजाफा होता है।
इस रिसर्च के लिए देश के 10 शहरों में 2008 से 2019 के बीच सभी कारणों से होने वाली मौतों और सैटेलाइट से औसत तापमान का डेटा लिया गया। इससे पता चला है कि सालाना हुई करीब 1,116 मौतों का संबंध हीटवेव से था।
हीटवेव का असरः
दिमाग पर: जटिल समस्याएं हल करने वाला हिस्सा काम बंद कर देता है। इसे हीट स्ट्रेस कहते हैं।
शरीर पर: ऐंठन, बेहोशी, थकावट, हीटस्ट्रोक, शरीर में पानी की कमी। इससे व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।
रिसर्च के 4 महत्वपूर्ण पॉइंट्स
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फिरिक साइंसेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि जब हीटवेव की चेतावनी नहीं रहती और तापमान 1 से 4 डिग्री अधिक रहता है, तब भी जान का जोखिम रहता है। इसे हीट स्ट्रेस कहा जाता है।
सेहत पर हीट स्ट्रेस का असर जानने के लिए इंडिया हीट इंडेक्स और रोज होने वाली मौतों का संबंध तलाशा गया। इसके लिए अलग मौसम वाले दिल्ली, वाराणसी और चेन्नई शहर लिए गए।
शोधकर्ताओं ने हीट स्ट्रेस के प्रति संवेदनशीलता जांचने के लिए 1979−2020 तक 42 साल के मौसम संबंधी डेटा का इस्तेमाल किया।
42 साल के डेटा में 90 पर्सेंटाइल से अधिक वाली स्थिति को ‘गर्म दिन’ और 25 पर्सेंटाइल से कम वाली स्थिति को ‘आरामदायक’ माना गया।
रिसर्च में पाया गया कि आरामदायक दिनों के मुकाबले गर्म दिनों के दौरान मौत का जोखिम वाराणसी में 8.1%, चेन्नई में 8.0% और दिल्ली में 5.9% अधिक था।
सेंटर के रिसर्चर साग्निक डे के मुताबिक, जिस तरह स्मोकिंग से कैंसर या हृदय रोग होते हैं, जिनसे व्यक्ति की मौत हो जाती है। उसी तरह हीट भी जोखिम का कारण है, जिससे ऐसी बीमारियां होती हैं जो मौत का कारण बनती हैं। डे के मुताबिक, अर्ली वार्निंग सिस्टम को मजबूत कर इससे होने वाली मौतों से बचा जा सकता है।
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