उलझी कहानी और कमजोर स्क्रीनप्ले
मुंबई, एजेंसियां। जान्हवी कपूर की सस्पेंस थ्रिलर फिल्म ‘उलझ‘ आज थिएटर में रिलीज हो गई है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटे 30 मिनट की है। समीक्षकों ने इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार रेटिंग दी है।
कहानी
इस फिल्म की कहानी सुहाना भाटिया (जान्हवी कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है। सुहाना को देश की सबसे युवा डिप्टी हाई कमिश्नर का पद मिल जाता है।
छोटी-सी उम्र में इतना बड़ा पद मिलने से सुहाना पर नेपोटिज्म का इल्जाम लगता है। सुहाना लंदन में अपने देश को री प्रजेंट कर रही है।
अपनी काबिलियत को साबित करने के लिए जोखिम भरे काम करती है, लेकिन वो झूठ, धोखे और विश्वासघात में ऐसी उलझ जाती है कि लोग उसे देशद्रोही कहने लगते हैं।
सुहाना अपने दुश्मनों से कैसे लड़ती है और अपनी बेगुनाही को कैसे साबित करती है। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
अभिनय
पूरी फिल्म की कहानी जान्हवी कपूर के किरदार के ही इर्द-गिर्द बुनी गई है। जान्हवी की खासियत यह है कि उन्हें जो भी किरदार मिलता है, वह खुद को आसानी से उस रंग में ढाल लेती हैं।
देखा जाए तो इस फिल्म की मुख्य किरदार वही हैं। डिप्टी हाई कमिश्नर का किरदार बहुत ही संजीदगी से निभाया है। खास तौर पर क्लाइमेक्स में उनकी अदाकारी कमाल की है।
जान्हवी के अलावा फिल्म में नकुल भाटिया के किरदार में गुलशन देवैया, सेबिन जोसेफ कुट्टी के किरदार में रोशन मैथ्यू, वनराज भाटिया के किरदार में आदिल हुसैन, सलीम के किरदार में राजेश तैलंग और जैकब के किरदार में मेयांग चांग नजर आए हैं।
इनके हिस्से में जो भी काम आया उसमें उन्होंने बेहतर करने की कोशिश की है। लेकिन यहां पर डायरेक्टर की जिम्मेदारी बनती है कि उनसे और बेहतर कैसे काम लिया जा सकता है।
निर्देशन
सुधांशु सरिया का डायरेक्शन बहुत ही कमजोर है। फिल्म की कहानी भी उन्होंने परवीज शेख के साथ मिलकर लिखी है।
शुरुआत से लेकर आधे घंटे तक दर्शक समझ ही नहीं पाते हैं कि कहानी क्या है? काठमांडू एंबेसी से फिल्म की कहानी इस्लामाबाद, दिल्ली होते हुए लंदन में इंडियन हाई कमीशन तक पहुंचती है। यहां से असली खेल शुरू होता है।
22 साल ही उम्र में डिप्टी हाई कमिश्नर बनकर जान्हवी कपूर लंदन में इंडियन हाई कमीशन तक कैसे पहुंचती है, समझ से परे लगता है।
इतना ही नहीं, वह बिना जाने और समझे एक अनजान शख्स को ना सिर्फ अपना दिल दे बैठती है। बल्कि बड़ी आसानी से उसके साथ हमबिस्तर भी हो जाती है। यह समझना थोड़ा मुश्किल लगता है।
इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि भारत में बड़े ओहदे पर बैठे अधिकारी, यहां तक कि रॉ का चीफ भी गद्दार है।
पाकिस्तान से भारत शांति और मोहब्बत का पैगाम लेकर आए पीएम की हत्या की साजिश आईएसआई के इशारे पर हमारे रॉ अधिकारी करते हैं।
फिल्म की पटकथा पूरी तरह से बिखरी हुई है। डायलॉग बनावटी लगते हैं। सीन कहीं से उठाकर कहीं और चिपका दिया गया है। इस फिल्म को देखने के बाद लगता है कि डायरेक्टर ने ठीक से रिसर्च नहीं किया है।
संगीत
फिल्म में एक भी गाना इतना प्रभावशाली नहीं है जिसकी चर्चा की जाए। फिल्म देखने के बाद इसका म्यूजिक याद नहीं रहता। बैकग्राउंड स्कोर के नाम पर सिर्फ शोर है जो सिर्फ एक्शन सीन में सुनाई देता है।
फिल्म देखे या नहीं?
फिल्म की कहानी ऐसी उझली हुई है कि समझ में नहीं आता कि यह फिल्म बनाई ही क्यों गई है। यह फिल्म ना ही एंटरटेन करती है और ना ही कोई खास संदेश देती है। फिर भी अगर आप इसमें उलझना चाहते हैं तो आपकी मर्जी।
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