बंगलूरू, एजेंसियां। इसरो ने पहले 7 जनवरी को निर्धारित डॉकिंग परीक्षण को अब 9 जनवरी को पुनर्निर्धारित किया, जिसे भारतीय डॉकिंग तकनीक का पहला महत्वपूर्ण परीक्षण माना जा रहा है। यह मिशन भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने स्पेडेक्स मिशन के तहत होने वाले डॉकिंग परीक्षण को अब 9 जनवरी तक टाल दिया है। पहले यह परीक्षण 7 जनवरी को होने वाला था, लेकिन अब इसे पुनर्निर्धारित किया गया है।
हालांकि इसरो ने परीक्षण टालने की वजह का खुलासा नहीं किया है। इस मिशन को केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारतीय डॉकिंग तकनीक नाम दिया है, जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नई दिशा का प्रतीक है।
स्पेडेक्स मिशन दो उपग्रहोंजोड़ा जाएगा
स्पेडेक्स मिशन के तहत दो उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में जोड़ा जाएगा। यह एक जटिल तकनीकी परीक्षण है, जिसमें दोनों उपग्रहों को करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से कक्षा में जोड़ा जाएगा।
इस परीक्षण में सेंसर का उपयोग कर उपग्रहों की गति को नियंत्रित किया जाएगा, ताकि उन्हें एक साथ जोड़ा जा सके। यह भारत के लिए पहली बार है जब वह अपनी खुद की डॉकिंग तकनीक का परीक्षण करेगा, और इसे अंतरिक्ष में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है।
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने क्या कहा
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि “अगर भारत को चंद्रयान-4 भेजना है, अंतरिक्ष स्टेशन बनाना है और फिर किसी भारतीय को चंद्रमा पर भेजना है, तो डॉकिंग में महारत हासिल करना एक जरूरी कदम है।
” डॉकिंग तकनीक अंतरिक्ष मिशनों के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इसमें उपग्रहों को कक्षा में सही ढंग से जोड़ने की चुनौती होती है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें टकराए बिना जोड़ना होता है।
मिशन में दो उपग्रहों का उपयोग किया जाएगा
इस मिशन में दो उपग्रहों का उपयोग किया जाएगा – एसडीएक्स01 और एसडीएक्स02। एसडीएक्स01 उपग्रह में एक उच्च-रिजॉल्यूशन कैमरा (एचआरसी) है, जबकि एसडीएक्स02 में दो पेलोड ‘मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल’ (एमएमएक्स) और ‘रेडिएशन मॉनिटर’ (रेडमॉन) हैं।
इन पेलोड्स का उद्देश्य उच्च रिजॉल्यूशन की तस्वीरें लेना, प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी करना, वनस्पति अध्ययन करना और अंतरिक्ष में विकिरण की माप करना है। डॉकिंग और अनडॉकिंग के बाद इन उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में दो साल तक काम करना होगा।
यह मिशन भारत के भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, और यह देश की डॉकिंग तकनीक को मजबूत करेगा, जो चंद्रयान-4, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और अन्य अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
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