दयानंद राय
वे बीते छह साल से दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ा रहे थे। नाम था समरवीर सिंह। अचानक उन्हें एक दिन नौकरी से निकाल दिया गया और पीतमपुरा के एक फ्लैट में किराये में रहनेवाले समरवीर सिंह ने सुसाइड कर लिया। वे मूल रूप से राजस्थान के बारां जिले के रहनेवाले थे। समरवीर सिंह का कसूर ये था कि वे एडहॉक टीचर थे, चूंकि वे योग्य थे तभी वे कॉलेज में पढ़ा रहे थे। उनका पढ़ाना विद्यार्थियों को पसंद था तभी उनके सुसाइड के बाद शिक्षकों और छात्रों ने प्रोटेस्ट कर अपना गम और गुस्सा जाहिर किया। हालांकि समरवीर सिंह अकेले नहीं हैं जिन्हें यह त्रासदी झेलनी पड़ी। उनके जैसे कई शिक्षकों जो दस बीस साल से पढ़ा रहे थे उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसी साल फरवरी में नौकरी से निकाले जाने के बाद समरवीर सिंह डिप्रेशन में थे। अब सवाल उठता है कि क्या समरवीर सिंह व्यवस्था की नाकामी का शिकार नहीं बने?
क्या उन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता था?
वे बीते छह सालों से कॉलेज में सेवा दे रहे थे क्या उन्हें स्थायी करने का फर्ज विश्वविद्यालय का नहीं बनता था। एक दूसरा सवाल यह होता है कि कॉलेज में एडहॉक भर्तियां क्यों होती हैं। क्यों उच्चतर शिक्षा व्यवस्था को ठेके पर चलाये जाने को मजबूर किया जाता है। एक असिस्टेंट प्रोफेसर को कितनी मेहनत के बाद पद हासिल होता है यह सबको मालूम है। लेकिन बकायदा परमानेंट रूप में उनकी बहाली हो इसकी जगह व्यवस्था उन्हें ठेके पर बहाल करती है। उनका शोषण करती है और एक समय के बाद उन्हें दूध में मक्खी की तरह निकाल देती है। भारत में शिक्षण व्यवस्था बड़े बदलाव की मांग कर रही है। लेकिन सरकार और शिक्षा व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों की नजर में ये कोई मुद्दा नहीं है।
किसी इंस्टीट्यूशनल मौत से कम नहीं है समरवीर सिंह की मौत
हालांकि हिंदू कॉलेज के बाहर इस घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ है और दिल्ली टीचर्स इनिशिएटिव की सह संयोजक उमा गुप्ता ने यह मांग की है कि सभी कॉलेजों में इंटरव्यू हो और सभी एडहॉक टीचर्स स्थायी किए जाएं। वहीं, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की प्रेसिडेंट नंदिता नारायण ने कहा कि डीयू में ये नीति और कितने समरवीरों की जान लेगी। उनकी मौत किसी इंस्टीट्यूशनल मौत से कम नहीं है। जो लोग इसके जिम्मेदार है उन पर मुकदमा हो।
नियमों के मुताबिक की गयी बहाली
इससे पहले डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने कहा था कि स्थायी शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया यूनिवर्सिटी के नियमों के मुताबिक बहाल की जा रही है। उमा गुप्ता की एडहॉक शिक्षकों को स्थायी करने की मांग का क्या नतीजा निकलेगा ये तो भविष्य की बात है लेकिन इतना तो अभी दिख रहा है कि व्यवस्था की नाकामी ने एक होनहार शिक्षक को मौत को गले लगाने पर मजबूर कर दिया है। इस व्यवस्था में अगर कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं हुआ तो और कई प्रतिभाएं इस व्यवस्था की नाकामी की भेंट चढ़ जाएंगी।