लखनऊ, एजेंसियां। यूपी की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। ये सियासी गर्मी की आंच अब दिल्ली को भी गर्मा रही है। इस आंच के लपेटे में यूपी के सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर शाह और मोदी तक आ गये हैं।
दरअसल इस पूरे प्रकरण की शुरुआत डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से हुई है। उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं, सीएम योगी अपनी जगह मजबूती से टिके हुए हैं। यूपी में अटकलों का बाजार गर्म है कि बीजेपी जल्द ही कोई बड़ा फैसला कर सकती है।
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य संगठन की आड़ लेकर राज्य सरकार पर हमलावर हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें बुलाकर बात की है। बावजूद इसके उनके तेवर कम नहीं पड़े हैं।
बता दें कि मौर्य ने यूपी बीजेपी की विस्तारित कार्यकारिणी की बैठक में अपने बयान से राजनीतिक पारा चढ़ा दिया था। बीते रविवार को, लखनऊ में हुई बैठक में मौर्य ने कहा था कि ‘संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है’। उस बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे।
यह मामला तब और तूल पकड़ा, जब उसी बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ ने साफ कहा कि बोलने वाले बोलते रहें, सरकार अपना काम करती रहेगी। इधर, केशव प्रसाद मौर्य के बाद, यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर चुके हैं।
वहीं सीएम ने योगी ने राज्यपाल आनंदी बेन से मुलाकात की है। मुलाकातों के इस दौर ने अटकलों को हवा दे दी है। यह भी चर्चा हैं कि केशव प्रसाद मौर्य को और बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी होना है, ऐसे में मौर्य के राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की कमान संभालने की भी चर्चा है।
एक चर्चा यह भी है कि यूपी का सीएम भी बदला जा सकता है। योगी की जगह मौर्य को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। जो कि वो चाहते भी हैं। पर ये सभी चर्चा की बातें हैं।
बताया जा रहा है कि मौर्य ने नड्डा को प्रदेश के सियासी और प्रशासनिक हालात से अवगत कराया है। साथ ही उन्हें कार्यकर्ताओं की भावनाओं से भी अवगत कराया है।
उन्होंने प्रदेश में हावी अफसरशाही पर भी सवाल खड़ा किया है। भाजपा कार्यकर्ताओं की तो कोई सुध लेने वाला नहीं है। विधायकों और सांसदों की भी उचित सुनवाई नही हो पा रही है।
कार्यकर्ताओं की यह नाराजगी भी लोकसभा में खराब प्रदर्शन के लिए एक प्रमुख कारण रही।
सूत्रों के अनुसार, मौर्य ने सुझाव दिया कि यूपी में जमीन पर काम करने की जरूरत है, नहीं तो 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को परेशानी हो सकती है।
दरअसल ये सारी बातें, लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद ही सतह पर आई हैं। अब तो विरोधी भी इसे लेकर निशाना साधने लगे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया में इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि बीजेपी खुद ही गड्ढे में जा रही है।
लोकसभा चुनाव में हारे कई नेता हार ठीकरा सीएम योगी पर फोड़ने की जुगत में हैं। वे मौर्य के साथ मिलकर सीएम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें संजीव बालियान भी शामिल हैं, जो मुजफ्फरनगर से हार गए थे। उन्होंने हार का ठीकरा योगी पर ही फोड़ा है।
इधर, बैठक के एक दिन बाद भाजपा एमएलसी देवेंद्र प्रताप ने आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा कि राज्य में नौकरशाही सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। वहीं, बदलापुर से विधायक रमेश चंद्र ने मीडिया से कहा था कि भाजपा की स्थिति खराब है और वह 2027 में यूपी में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है।
केशव मौर्य ने कहा था कि सभी मंत्री, विधायक और जनप्रतिनिधियों को कार्यकर्ताओं का सम्मान करना चाहिए। वहीं, योगी आदित्यनाथ ने यूपी में चुनावी हार के लिए अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार ठहराया था। योगी ने कहा था कि पार्टी विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के प्रचार अभियान का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर सकी। सीएम योगी ने साफ कर दिया कि उनकी सरकार का रवैया नहीं बदलेगा।
इधर मौर्य को लेकर बीजेपी कुछ और सोच रही है। वह ओबीसी चेहरा हैं और संगठन में लंबा अनुभव रखते हैं। बीजेपी को निराश कार्यकर्ताओं को मैसेज भी देना है। मौर्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी भी हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट से हारने के बावजूद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। मौर्य की योगी से नाराजगी नई बात नहीं है। उप मुख्यमंत्री बनने के पांच महीने बाद ही, उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘संगठन, सरकार से बड़ा होता है।’ तब भी योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी अनबन की खबरें खूब चली थी।
दरअसल इस सारे खेल के पीछे की कहानी कुछ और ही है। इस समय भाजपा आलाकमान के निशाने पर यदि कोई है तो वो हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि योगी महाराज ने जानबूझकर यूपी में मोदी का खेल बिगाड़ा, जिससे लोकसभा चुनाव में फजीहत हुई। इसमें पलीता लगाने वाले यूपी भाजपा के ही कुछ बड़े नेता हैं।
इसके बाद से ही ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है कि योगी दबाव में आकर इस्तीफा दे दें। संभवत: इस आशय का संदेश भी योगी को पहले दे दिया गया था। पर योगी आदित्यनाथ भी झुकने वालों में से नहीं हैं।
चर्चा है कि उन्हें इस्तीफा का आदेश दे दिया गया है। उधर, योगी खेमा भी ताल ठोक रहा है। कहा जा रहा है कि जब सारे फैसले केंद्र में बैठे दो लोगों ने लिए हों,, वहीं से सभी की टिकट तय हुई हो,, चुनाव प्रचार के मुद्दे और रूपरेखा बनी हो,, कार्यक्रम तय हुए हों,, यहां तक कि योगी जी की सूची को नजरअंदाज करके उम्मीदवारों का चयन किया गया हो,, तो हार के लिए योगी जिम्मेदार कैसे हुए?
इसलिए भले वे कितना भी दबाव क्यों न बनाएं योगी महाराज पद नहीं छोड़ेंगे। योगी समर्थकों का कहना है कि महाराष्ट्र की राजनीतिक हार की तुलना यूपी से नहीं होगी। महाराष्ट्र में फडणवीस ने विपक्षियों से बदले का व्यवहार किया, तोड़-फोड़ व गंध मचाई और उसका खामियाजा भुगता। जबकि योगी ने यूपी में सर्व समावेशक राजनीति की, इसलिए यह हार योगी की नहीं मोदी की है।
योगी गद्दी नहीं छोड़ेंगे?
वैसे भी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को बदलने की कवायद कोई नई नहीं है। कहा जा रहा है कि जैसे-जैसे योगी की लोकप्रियता बढ़ रही है, वैसे-वैसे गुजरात लॉबी का सिरदर्द बढ़ रहा है।
योगी समर्थकों का तर्क है कि जब 400 पार का नारा देने के बाद आधे में निपटने वाले प्रधानमंत्री मोदी को तीसरी बार पीएम बनाया जा रहा है, तो फिर दो-दो बार बंपर समर्थन से जीतनेवाले योगी रो हटाने का दबाव क्यों?
योगी समर्थकों का तो सीधा सवाल है कि जब केंद्र के ‘पापा’ नहीं बदले जा रहे हैं, तो यूपी के बाबा पर दबाव क्यों है।? वे पद नहीं छोड़ेंगे।, वे शिवराज सिंह चौहान की तरह चुपचाप हार मानने वालों में से नहीं हैं।
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