राज्य सरकार ने कहा-मामला फिट नहीं बैठता
रांची। झारखंड सरकार ने अपने एक अधिकारी के खिलाफ सीबीआइ जांच के लिए अभियोजान स्वीकृति नहीं दी है। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने अपनी मंशा से केंद्र को भी अवगत करा दिया है। इससे इस अधिकारी के खिलाफ सीबीआइ जांच में पेंच फंस गया है। मामला राज्य के विकास आयुक्त अरूण कुमार सिंह से जुड़ा है।
विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह के खिलाफ कैप्टिव आयरन ओर फाइंस बेचने की अनुमति देने के मामले में सीबीआई को अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है। राज्य के कार्मिक सचिव ने इस आशय का पत्र केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को भी भेज दिया है। पत्र में महाधिवक्ता के परामर्श का हवाला देते हुए कहा गया है कि उनके खिलाफ सीबीआई का केस फिट नहीं है।
सिंह इसी महीने 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं। 2016 में वे राज्य के खान सचिव थे। राज्य में उस वक्त भाजपा की सरकार थी। तब सरकार ने तत्कालीन खान सचिव के खिलाफ सीबीआई जांच कराने पर सहमति दी थी। सीबीआई की दिल्ली शाखा ने मामले में 30 दिसंबर 2022 को केंद्र सरकार से आईएएस अधिकारी अरूण कुमार सिंह के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति और झारखंड सरकार से कमेंट मांगा था। इस पर सीएम हेमंत सोरेन ने विधि विभाग से राय मांगी। विभाग ने इसे महाधिवक्ता राजीव रंजन को भेज दिया।
महाधिवक्ता ने अपने लीगल ओपिनियन में कहा था कि एक कंपनी को आयरन ओर फाइंस बेचने की अनुमति देने के मामले में कोई दोष नहीं बनता है। राज्य सरकार अभियोजन की स्वीकृति के प्रस्ताव पर असहमति दे सकती है। इसके बाद सीएम ने मुख्य सचिव से विचार-विमर्श की हिदायत दी थी और फिर परामर्श के अनुरूप केंद्र सरकार को असहमति पत्र भेजने का आदेश दिया। आइए अब आपको पूरे मामले में के बारे में बताते हैं।
एकीकृत बिहार में एक कंपनी ने आयरन अयस्क के खनन पट्टे के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उसका आवंटन नहीं हुआ। झारखंड बनने के बाद 2002 में कंपनी ने फिर कैप्टिव माइनिंग लीज के लिए आवेदन दिया। कैबिनेट की मंजूरी के बाद जब लीज आवंटन आदेश जारी हुआ तो उसमें कैप्टिव शर्त नहीं जोड़ी गई। उस समय खान सचिव अरुण कुमार सिंह और खान निदेशक आईडी पासवान थे।
कंपनी को 155.078 हेक्टेयर का खनन पट्टा मिला था। 2012 में कंपनी ने फाइंस बेचने के लिए विज्ञापन जारी किया। इसके बाद खान विभाग ने आपत्ति जताई कि फाइंस दूसरे को नहीं बेच सकते। तब खनन घोटाले की जांच कर रही सीबीआई टीम ने 5 फरवरी 2016 को तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव गौबा को पत्र लिखा था कि इस मामले की नियमित जांच की जरूरत है। राज्य सरकार ने सितंबर 2016 में सीबीआई जांच पर सहमति दी थी।
अब सवाल उठता है कि आगे क्या होगा। तो बता दें कि विशेषाधिकार का उपयोग कर केंद्र सरकार सीबीआई को अभियोजन की स्वीकृति दे सकती है फिर इसके बाद कोर्ट में ट्रायल में शुरू हो सकता है। सरकारी अधिकारी के लिए किसी केस में कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने या ट्रायल शुरू करने से पूर्व सरकार के अभियोजन स्वीकृति जरूरी है। अरुण कुमार सिंह झारखंड कैडर से हैं, इसलिए सीबीआई ने केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से अभियोजन स्वीकृति की मांग करते हुए झारखंड सरकार से भी कमेंट मांगा था। फिलहाल, इस मामले में सिंह के खिलाफ कोर्ट में ट्रायल नहीं चलेगा। यदि केंद्र सरकार अपने विशेषाधिकार का उपयोग कर सिंह के खिलाफ सीबीआई अभियोजन की स्वीकृति देगी, तब ही कोर्ट में ट्रायल शुरू हो सकता है।
बताते चलें कि सीबीआई ने इस मामले में 13 जनवरी 2023 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया था। सीबीआई ने रांची के विशेष न्यायाधीश सीबीआई प्रभात शर्मा की कोर्ट में आरोप पत्र सौंपा था। उसमें कंपनी, राज्य सरकार तत्कालीन खान निदेशक आईडी पासवान, कंपनी के एनके पटौदिया समेत तत्कालीन खान सचिव अरुण सिंह के नाम थे।
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