ढाका, एजेंसियां। हिफाजत-ए-इस्लाम, यानी इस्लाम के रक्षक। ये बांग्लादेश के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन का नाम है।
2010 में बना ये संगठन जल्दी ही धर्म की प्रेशर पॉलिटिक्स का सेंटर पॉइंट बन गया। प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे के विरोध से लेकर हिंदुओं और मंदिरों पर हमले में भी इसका नाम आया।
शेख हसीना के सेकुलर होने की वजह से उनका विरोधी रहा हिफाजत-ए-इस्लाम देश में शरिया कानून लागू करने की वकालत करता है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में संगठन से जुड़े अबुल फैयाज मोहम्मद खालिद हुसैन धार्मिक मामलों के एडवाइजर हैं।
हिफाजत-ए-इस्लाम के नायब-ए-आमिर, यानी वाइस प्रेसिडेंट मुहिउद्दीन रब्बानी ने कहा कि बांग्लादेश में एक-एक मूर्ति तोड़ी जानी चाहिए। बांग्लादेश में इस्लामी निजाम होना चाहिए और यहां की लड़कियों को हिजाब पहनना चाहिए।
बता दें कि संगठन के निशाने पर सिर्फ अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध और क्रिश्चियन ही नहीं, बल्कि अहमदिया मुस्लिम भी रहते हैं। मुहिउद्दीन रब्बानी ने कहा कि हम अहमदियाओं को मुस्लिम नहीं मानते। वे काफिर हैं।
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