पटना : बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन गुरुवार की सुबह सहरसा जेल से रिहा हो गए। उनकी रिहाई का एक ओर जहां विरोध हो रहा हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके परिवार और समर्थकों में खुशी है। इस बीच पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कोर्ट से जेल मैन्युअल में किये गये संशोधन को निरस्त करने का आग्रह किया गया है। क्योंकि यह गैरकानूनी है। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अपने अधिवक्ता अलका वर्मा के माध्यम से दायर किया है।
नियमों में बदलाव कर सरकार ने कुछ गलत नहीं किया
उधर आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सरकार पर लगातार उठ रहे सवाल के बीच राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी सफाई देने उतरे। उन्होंने कहा कि नियमों में बदलाव कर सरकार ने कुछ गलत नहीं किया है। सभी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद ही आनंद मोहन की रिहाई की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार की नजर में आईएएस, बासा के अधिकारी या अन्य किसी भी आम आदमी में कोई अंतर नहीं। जेल मैनुअल 2012 के तहत यह प्रावधान है कि कैदी ने जेल में कम से कम 14 साल बिताए हो। इस अवधि में उसका चाल-चलन अच्छा हो तो ऐसे कैदी को 20 वर्ष परिहार अवधि हो जाने पर जेल से रिहा किया जा सकता है।
नया जेल मैन्युअल लागू है
मुख्य सचिव ने गुरुवार को पटना में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि नया जेल मैन्युअल 2012 लागू है। रिहाई के लिये परिहार परिषद की पिछले 6 सालों में 22 बैठकें हुईं। इस दौरान 1161 कैदियों की रिहाई पर विचार किया गया, जिसमें 698 कैदियों को छोड़ने पर फैसला हुआ है। सुबहानी ने कहा कि आनंद मोहन ने भी 15 वर्ष 9 माह की अवधि जेल में बिताई है और परिहार सहित जेल में बिताई कुल अवधि 22 वर्ष 13 दिन की हो चुकी है। इस वजह से तमाम नियम कायदे कानून का पालन करते हुए जेल मैनुअल में किए गए प्रावधानों के तहत उन्हें रिहा किया गया है।
फैसले को राजनीतिक रंग देना उचित नहीं
उन्होंने कहा कि इस फैसले को राजनीतिक रंग देना कहीं से उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी को कोई छूट नहीं दिया गया है। इसको लेकर जो भी आपतियां जताई जा रही है उसकी गुंजाइश नहीं बनती है। जो नियम था या है, उसमें कहीं भी आईएएस को लेकर कुछ भी निर्देश नहीं दिया गया है। बल्कि लोक सेवक को लेकर कुछ बदलाव किए गए हैं और लोकसेवक एक छोटा कर्मचारी से लेकर बड़े स्तर के अधिकारी होते हैं। इसलिए आईएएस के तरफ से इसका विरोध जताना उचित नहीं हो सकता। मुख्य सचिव ने बताया कि परिहार परिषद के दण्डाधिकार ने आजीवन सजा वाले कैदियों को लेकर फैसला लिया है। आनंद मोहन जो राजनेता हैं, उनके मामले में कई तरह की बात की जा रही है।
रिहाई के पूर्व आनंद मोहन का पूरा रिकॉर्ड देखा गया है
उन्होंने कहा कि रिहाई के पूर्व आनंद मोहन का पूरा रिकॉर्ड देखा गया है। यह पूछे जाने पर कि उन पर जेल में मोबाइल रखने से जुड़ी एक प्राथमिकी पिछले वर्ष दर्ज की गई थी, इस संबंध में मुख्य सचिव ने जानकारी होने से अनभिज्ञता जाहिर की। एक प्रश्न के उत्तर में मुख्य सचिव ने कहा कि नियम के तहत प्रोबेशन अफसर अपराधी के गांव जा कर यह पता लगाते हैं कि उस कैदी के छूटने से सामाजिक माहौल पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। इस आकलन को भी नियम में शामिल किया गया है और इसका पालन भी आनंद मोहन के मामले में किया गया है। केंद्रीय आईएएस एसोसिएशन द्वारा आनंद मोहन की रिहाई का विरोध किए जाने पर मुख्य सचिव ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को या किसी संगठन को अपनी मांग रखने का या अपनी बात कहने का पूरा अधिकार होता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य सचिव के साथ ही गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव चैतन्य प्रसाद और कारा महानिरीक्षक शीर्षत कपिल अशोक भी मौजूद थे