Vice President Dhankhar:
नई दिल्ली, एजेंसियां। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को बच्चों के लिए माता-पिता की तुलना दी है और कहा है कि इसे बदला नहीं जा सकता, चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले। उन्होंने यह बात कोच्चि स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज (एनयूएएलएस) में छात्रों और संकाय सदस्यों से बातचीत के दौरान कही।
Vice President Dhankhar:उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की तरह है। आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, आप अपने माता-पिता की भूमिका को नहीं बदल सकते। यह संभव नहीं है।” उन्होंने यह भी बताया कि ऐतिहासिक रूप से दुनिया के किसी भी देश के संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन भारत में आपातकाल के दौरान एक बार इसका संशोधन किया गया था। उन्होंने बताया कि आपातकाल के समय संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया गया था, जब हजारों लोग जेल में थे और देश का लोकतंत्र अंधकारमय दौर से गुजर रहा था।
धनखड़ का यह बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा हाल ही में संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा की मांग के संदर्भ में आया है। आरएसएस का दावा है कि ये शब्द डॉ. भीमराव आंबेडकर के मूल संविधान में नहीं थे, बल्कि इन्हें आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था।
Vice President Dhankhar:आपातकाल के 50 साल पूरे
आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी कहा था कि आपातकाल लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात था, जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी और न्यायपालिका भी पंगु हो गई थी। उन्होंने कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ जबरन जोड़े गए थे और अब इस पर पुनर्विचार होना चाहिए।
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