रांची : सरना धर्म कोड की मांग को लेकर बुधवार को मोराबादी मैदान में बड़ी संख्या में देश भर से आये आदिवासियों की भीड़ जुटी। कार्यक्रम में आदिवासी सेंगेल संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ओडिशा से पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि जो आदिवासियों को सरना धर्म कोड देगा, आदिवासी उसको वोट देंगे। उन्होंने कहा कि 1871 से जब भारत में ब्रिटिश शासन था उस समय से लेकर आजादी के बाद 1951 के जनगनणा तक आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म कोड की व्यवस्था होती थी, जिसमें अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता था, आजादी के बाद इन्हें शेड्यूल ट्राइब्स कहा जाने लगा, लेकिन इस संबोधन पर लोगों की अलग-अलग राय थी।
इसी कारण उस समय विवाद हुआ तभी से आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड को खत्म कर दिया गया। अब आदिवासी समाज के लिए कोई कोड बचा ही नहीं, जिससे लोग दूसरे धर्मों में जाने लगे जैसे कि हिंदू, मुस्लिम, इसाई, जैन धर्म में परिवर्तित हो गये, जिससे कि आदिवासी समाज की संख्या कम हो गयी। कार्यक्रम में आदिवासी सेंगेल संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि हम ये उम्मीद करते हैं कि जब प्रधानमंत्री मोदी और महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर, जो झारखंड प्रदेश के स्थापना दिवस भी है, के शुभ अवसर पर बिरसा मुंडा के जन्मस्थली खूँटी के उलिहातू में आ रहें हैं।
हो सकता है कि यहां से पीएम मोदी सरना धर्म कोड की घोषणा कर दें। अगर 20 दिसंबर तक घोषणा नहीं करते हैं तो इस अभियान को पूरे देश के जितने भी आदिवासी है सब मिलकर दिल्ली की ओर कूच करेंगे। इसके पहले सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड विधानसभा से 11 नवंबर 2020 को ही एक विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग का प्रस्ताव को सर्वसम्मति मत से पारित किया और इस प्रस्ताव को केंद्र के मंजूरी के लिए भेजा गया, लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं आया है।